CM रघुवर और कृषि मंत्री रणधीर सिंह के अंदर छुपी ‘नाच’ के हुनर को जनता कर रही पसन्द
नाचना बुरी बात थोड़े ही हैं, नाचे तो हमारे भोलेनाथ भी हैं, नाचे तो भगवान श्रीकृष्ण भी हैं, नाची तो मीरा भी है, अपने श्रीकृष्ण के लिए, ऐसे में हमारे मुख्यमंत्री रघुवर दास या उनके कैबिनेट में शामिल झाविमो से दल बदलकर आये कृषि मंत्री रणधीर कुमार सिंह नाच दिये तो क्या हुआ? नाचना–गाना तो हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार हैं। हमारे झारखण्ड में तो प्रकृति भी नाचती हैं, सरहुल में अगर नहीं नाचे तो सरहुल पर्व ही संपन्न नहीं होगा।
कभी राम दयाल मुंडा जी ने भी कहा था कि “जे नांची से बांची” बात भी सही हैं, जो नाचेगा, वहीं बचेगा। संस्कृति साहित्य में भी कहा गया हैं – साहित्य संगीत कलाविहीनः साक्षात पशु पुच्छ विषाणहीनः, इसलिए मैं तो जब से देखा हूं कि हमारे मुख्यमंत्री रघुवर दास और कृषि मंत्री रणधीर कुमार सिंह विभिन्न कार्यक्रमों में नाचना शुरु कर दिये हैं, मैं उनका फैन हो गया हूं, क्योंकि नाचना कोई मजाक बात नहीं हैं, हर कोई नाच नहीं सकता, जिनके पास ये अभुतपूर्व कला होगी, वहीं नाचेगा।
अब सवाल उठता है कि नाचने की कला–कौशल सिर्फ मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री रणधीर कुमार सिंह के पास ही क्यों हैं? ये नृत्य कला तो झारखण्ड के सभी मंत्रियों में होना चाहिए, ताकि वे इस कला–कौशल से राज्य के संस्कृति छटा का सबको भान करवा सकें। हमारे विचार से इतना सुंदर हुनर को छिपा कर रखने की जरुरत ही नहीं, इसका तो खुलकर प्रदर्शन होना चाहिए, जैसा कि हमारे मुख्यमंत्री कभी वनभोज कार्यक्रम में तो कभी कृषि मंत्री सरस्वती पूजा विसर्जन में करते हैं।
कितना अच्छा रहेगा, कि एक नाच–गाने का कार्यक्रम किसी स्टेडियम में आयोजित होता, जनता स्टेडियम की कुर्सियों से चिपकी रहती और झारखण्ड के एक–एक मंत्री, अपने मुख्यमंत्री के साथ, अपने अंदर छुपी इस हुनर का प्रदर्शन करते, जनता उक्त प्रदर्शन को देख, सीखती तथा इस कला से स्वयं को जोड़ती। भारत सरकार का कला–संस्कृति विभाग भी इसमें रुचि लेता तथा पूरे विश्व में झारखण्ड के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के इस छुपे हुनर का प्रदर्शन करता।
इससे विश्व के दूसरे देश के लोग इस हुनर को देखने झारखण्ड आते और झारखण्ड का पर्यटन विभाग भी समृद्ध होता जाता, विदेशी मुद्रा का भंडार भी बढ़ता, क्योंकि इतनी बारीकी से नाच, हर कोई नहीं कर सकता, दिल खोलकर, स्वयं को भूलकर, नाच में डूब जाना, वह भी “तेरी आंखों का ये काजल” के धुन पर शृंगार रस में स्वयं को डूबाना मजाक थोड़े ही हैं।
कल की ही बात है, एक सज्जन जो राज्य के मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री के अंदर छुपी इस हुनर के बारे में हमसे बात कर रहे थे, और थोड़ा भावुक थे, कि मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री को इन सभी चीजों से बचकर रहना चाहिए, ये सब जिम्मेदार व्यक्तियों को शोभा नहीं देता। मैने तपाक से, उन्हें जवाब दिया कि भाई, कहने का क्या मतलब, इसका मतलब भोलेनाथ और भगवान श्रीकृष्ण जिम्मेदार नहीं थे, हमारे राम दयाल मुंडा जी जिम्मेदार नहीं थे।
अरे नाचने दीजिये, पहली बार कोई रघुवर दास नामक व्यक्ति मुख्यमंत्री बना है, रणधीर कुमार सिंह नामक व्यक्ति कृषि मंत्री बना हैं, उसे भी खुश होने का उतना ही अधिकार है, जितना की अन्य को हैं, और नाच तो तभी होता है, जब सही में लोग अंदर से खुश हो, देखिये पहली बार ये लोग कितने खुश हैं, बाकी एक साल के बाद तो इनका हाल वहीं होना है, जो अभी विपक्ष के नेताओं का हैं।
रही बात किसानों–मजदूरों के आत्महत्या की, विभिन्न योजनाओं के मिट्टी में मिल जाने की, तो यहां की जनता तो इसी के लिए बनी है, कल अंग्रेज लूटते थे, आज उनके हमदर्द बनकर अपने लूट रहे हैं, ये लूट का सिलसिला तो चलता रहेगा, आप भी खुश रहिये और इनके जैसे नाचते रहिये, मौका जहां मिले, खुश हो जाइये।
हम तो कहेंगे कि मुख्यमंत्री रघुवर दास को चाहिए कि कौशल विकास मिशन के तहत इस ‘नाच’ को भी हुनर कार्यक्रम में शामिल कर लेना चाहिए, और खुद तथा कृषि मंत्री को जो इस कला में हुनरमंद हैं, यहां के युवाओं को कौशल विकास मिशन की तरह नाचने की कला को सीखाना चाहिए ताकि यहां के बेरोजगार इस रोजगार में भी पारंगत हो, बेरोजगारी से दूर हो सकें तथा खुद के नाचने की दुकान खोलकर, अपनी बेरोजगारी खत्म कर, अपने परिवार को खुशियां दे सकें।
शानदार सुझाव..नाच झारखण्ड ।।