राजनीति

जनता जानना चाहती है कि दो-दो मुख्यमंत्री और कई मंत्री देनेवाले जमशेदपुर में आज तक क्यों न बन सका एयरपोर्ट, आखिर कौन देगा इसका जवाब? – अन्नी अमृता

यह बड़े दुख की बात है कि जो जमशेदपुर शहर झारखण्ड की औद्योगिक राजधानी कहलाता है, जो शहर देश की इकोनॉमी में अहम रोल प्ले करता है, जहां टाटा जैसा बड़ा घराना है वह शहर एक अदद एयरपोर्ट के लिए तरस रहा है। शहर ने दो दो मुख्यमंत्री और कई मंत्री दिए, यानी राज्य की राजनीतिक कमान भी एक तरह से इसी क्षेत्र के पास रही फिर भी हर चुनाव के पहले एयरपोर्ट मुद्दे का उठना और फिर राजनेताओं द्वारा इसे ठंडे बस्ते में डालना अत्यंत ही दुखद है।

इससे साफ जाहिर होता है कि यहां कोई गठजोड़ चल रहा है जिसके तहत एयरपोर्ट न बनने देने की कोई उनकी मंशा है। यह वक्तव्य है झारखण्ड की तेजतर्रार पत्रकार सह राजनीतिज्ञ अन्नी अमृता के, जो उन्होंने विद्रोही24 से कही। अन्नी अमृता अपने पत्रकारीय अनुभवों को शेयर करते हुए बताती है कि इस मुद्दे पर मीडिया का क्या रोल रहा? इसलिये इस तस्वीर को ध्यान से देखिये।

जमशेदपुर से साठ सत्तर किलोमीटर दूर अंग्रेजों के जमाने की चाकुलिया और 45 किलोमीटर दूर धालमूमगढ़ एयरपोर्ट की तस्वीरें है जिनमें वो यानी अन्नी अमृता, अन्य मीडियाकर्मी और पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी दिख रहे हैं। ये वो दौर था जब बतौर ईटीवी/न्यूज 18 संवाददाता सह ब्यूरो चीफ अन्नी अमृता और अन्य मीडिया के साथियों ने अंग्रेजों के जमाने के चाकुलिया और धालमूमगढ़ एयरपोर्ट को लगातार उजागर किया कि कैसे एक बना बनाया एयरपोर्ट है जिसे आधुनिक रुप देकर जीर्णोद्धार किया जा सकता है।

पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी इस मुद्दे पर लगातार मुखर रहे और काफी प्रयास किया। सांसद विद्युत वरण महतो ने भी इस मुद्दे पर दिलचस्पी दिखाई और पिछले चुनाव से पहले (2018-19) एक बार फिर एयरपोर्ट के वायदे को दुहराया लेकिन अब फिर एक नया चुनाव सामने है और एयरपोर्ट अब भी नहीं बना। इसको लेकर लोग सांसद से काफी नाराज भी हैं।

मीडिया के अभियान के असर से रघुवर दास के मुख्यमंत्रित्व काल में एयरपोर्ट का मुद्दा छाया रहा। उनके कार्यकाल के चार सालों के दौरान उम्मीद के उलट सरकार के स्तर पर इस मुद्दे को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं दिखी। जब चुनाव को दस-ग्यारह महीने शेष थे तब जनवरी 2019 को धालभूमगढ़ एयरपोर्ट का शिलान्यास बड़े जोर शोर से हुआ। जिसकी रिपोर्टिंग की तस्वीरें नीचे दिये गये चित्र में नजर आ रही हैं। तब लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई।

यह एयरपोर्ट न सिर्फ जमशेदपुर, घाटशिला और बहरागोड़ा क्षेत्र के लिए सुविधाजनक था बल्कि झारखंड से सटे उड़ीसा के सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों के लिए भी एक बेहतर और नजदीकी विकल्प के रुप में मौजूद था। साथ ही बड़े पैमाने पर रोजगार के सृजन की संभावना से क्षेत्र में उम्मीद की लहर फैल गई थी। मगर अफसोस कि चुनाव के बाद आई हेमंत सोरेन की सरकार के समय भी यह मुद्दा ठीक वैसे ही हाशिए पर रहा।

जैसे पूर्ववर्ती सरकारों के दौरान रहा। हां बीच-बीच में यही अपडेट आता रहा कि एलीफेंट कॉरिडोर होने की वजह से यह एयरपोर्ट नहीं बन सकता, कभी कभी एक-दो गांवों के विरोध और कभी अन्य कारण बताकर प्रोजेक्ट को लटका कर ही रखा गया। कारण जो भी हो पर नतीजा यही कि आज तक जमशेदपुर एयरपोर्ट से वंचित है। खानापूर्ति के लिए एक साल पहले टाटा के सोनारी एयरपोर्ट पर कोलकाता और भुवनेश्वर के लिए नौ सीटर विमान सेवा शुरु की गई।

कुछ साल पहले भी दिल्ली के लिए छोटे विमान की सेवा शुरु हुई थी जिसे बाद में सुरक्षा कारणों का हवाला देकर बंद कर दिया गया। एक तरफ जमशेदपुर में ये खेल चलता रहा। वहीं झारखण्ड के देवघर और बिहार के दरभंगा समेत देश के कई छोटे शहरों में ‘उड़ान’ योजना के तहत एयरपोर्ट बनाकर विमान सेवा शुरु कर दी गई।

अन्नी अमृता विद्रोही24 से कहती हैं कि पूर्व में एक मीडियाकर्मी होने के नाते पिछले 21 सालों से एयरपोर्ट के लिए वो आवाज उठा रही है। जमशेदपुर के अन्य मीडियाकर्मी भी ऐसा करते रहे हैं, लेकिन जिन माननीयों के हाथ में पावर था, न जाने उनके हाथ क्यों बंधे थे कि एक ऐसा काम जो देवघर और दरभंगा तक में हो जा रहा लेकिन स्टील सिटी कहे जानेवाले जमशेदपुर में नहीं हो पाया।

अन्नी कहती है कि वो यह सारी जानकारी साझा कर रही है ताकि उनके जमशेदपुर पश्चिम से विधानसभा चुनाव लड़ने के फैसले पर जो लोग ये पूछ रहे कि पत्रकारिता से राजनीति में क्यों आना तो यही कहना है कि सवाल बहुत उठाए हैं। अब जवाब देने के काबिल बनना है। बहुत से मुद्दे हैं जो जमशेदपुर के वृहद विकास से जुड़े हैं, जिस पर काम करना है।

अन्नी खुद ही प्रश्न करती हुई कहती है कि क्या लगता है कि कौन लोग या संस्थान हैं जो एयरपोर्ट बनने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से रोड़ा बनने का काम कर रहे है? कौन लोग नहीं चाहते कि जमशेदपुर का बड़े पैमाने पर विकास हो? आखिर एयरपोर्ट के मुद्दे पर चंद नेता ही समय आने पर क्यों मुखर होते हैं? इस मुद्दे पर इतनी राजनीतिक खामोशी क्यों है?