अपनी बात

सवाल उठता है कि इतने छोटे और दकियानूसी विचारों को अपनाकर क्या भारत जुड़ेगा या कांग्रेस रांची सीट निकाल पायेगी या भाजपा को जीत दिलाने का ये सब प्रयास है?

सवाल उठता है कि इतने छोटे और दकियानूसी विचारों को अपनाकर भारत कैसे जुड़ेगा और जीतेगा? सिर्फ परिवार को ही प्रतिष्ठित करने का सपना रखनेवाले ये क्यों नहीं सोचते, कि अब उनके दिन लद गये, आज का युवा हर प्रकार से अपने सामने आये राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को जांचता-परखता हैं, तब जाकर स्वयं और अपने परिवार के सदस्यों तथा समाज को भी उसे वोट देने के लिए प्रेरित करता है।

ऐसा नहीं कि आप किसी प्रेस क्लब में अथवा किसी भी सामाजिक या सांस्कृतिक संगठनों के संस्थानों में विभिन्न सामाजिक संगठनों या उनके सदस्यों को बुला लेंगे। उसमें खुद शामिल हो जायेंगे। राय व्यक्त करेंगे और लोग आपके या उनके कहने पर आपको वोट डालकर चल आयेंगे। ये कभी ऐसा किसी कालखण्ड में होता होगा। लेकिन अब वैसा नहीं हैं। वो भी तब जबकि आप जानते है कि आपके सामने भारतीय जनता पार्टी जैसा राजनीतिक संगठन हैं। जिससे जुड़े कई ऐसे संगठन हैं। जो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से उसकी मदद करते हैं और इसके लिए वे हरदम तैयार रहते हैं।

हाल ही में रांची प्रेस क्लब में सुबोधकांत सहाय की बेटी यशस्विनी सहाय के समर्थन में कुछ राजनीतिक व सामाजिक संगठनों का भारत जोड़ो अभियान के तहत जुटान हुआ। उसके बाद वासवी कीड़ो के हस्ताक्षर से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी हुआ। जिसमें रांची लोकसभा से घोषित कांग्रेस की प्रत्याशी यशस्विनी सहाय का यशोगान व परिचय था। साथ ही संविधान को बचाने, लोकतंत्र की रक्षा करने और जंगलों को बचाने के लिए इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार को भारी बहुमत से जिताने का निर्णय लिया गया। अब सवाल उठता है कि रांची लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी घोषित होने के पूर्व यशस्विनी सहाय को कौन जानता था? उत्तर है – कोई नहीं।

आज जो उनका यशोगान और परिचय दिया जा रहा है। इसकी जरुरत क्यों हैं? जब आप महान है। दरअसल ये सवाल इसलिए उठ रहा है कि क्या सुबोधकांत सहाय की बेटी के अलावे कांग्रेस में कोई ऐसी महिला या पुरुष नहीं था जो कांग्रेस को रांची लोकसभा सीट पर जीत दिला सकें? उत्तर है – था। लेकिन वर्तमान में राजनीतिक दलों में जिस प्रकार से टिकट लेने/देने की प्रवृत्ति जगी हैं। वो हर ऐसे व्यक्ति को दुखी करता है, जो सत्य को लेकर आगे चलना चाहता है या जिसने सत्य को ही प्रतिष्ठित करने की कसम खा रही है।

राजनीतिक पंडित तो सीधे सवाल उठाते है कि जो वासवी कीड़ो, यशस्विनी सहाय का परिचय दे रही हैं। वो खुद क्यों नहीं रांची की लोकसभा प्रत्याशी हुई। उनमें क्या कमी है? क्या वो यशस्विनी सहाय से कम है? या वासवी किसी परिचय की मोहताज है? दरअसल सभी वासवी से फायदा उठाना चाहते हैं। लेकिन वासवी को उस स्थान पर देखना नहीं चाहते, जहां उन्हें होना चाहिए। अगर वो वहां जायेगी तो फिर तो उनलोगों को दिक्कत हो जायेगी। जिन्होंने सत्ता को सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए दुकान मात्र बनाकर रख दिया है।

वासवी जैसी कई महिला व पुरुष कांग्रेस में हैं। लेकिन वे आर्थिक रुप से कमजोर है। आजकल तो चुनाव पैसों पर ही होते हैं। बेचारी वासवी और उन जैसे लोग जो आर्थिक रुप से कमजोर हैं। कहां से पैसे लायेंगे। लेकिन सवाल उठता है कि सुबोध कांत सहाय जैसे लोग अपनी बेटी को चुनाव लड़ाने में जो पैसे खर्च कर सकते हैं तो यही उदारता अन्य की बेटियों पर खर्च करने की उनकी क्यों नहीं होती या कांग्रेस में और जो धनकुबेर हैं। जिनके पास पैसों की कोई कमी नहीं। वे ऐसे लोगों की सहायता के लिए क्यों आगे नहीं आते।

सच्चाई यही है कि न तो अब कांग्रेस में वैसे धनकुबेर मौजूद हैं। जो देश व समाज के लिए अपने धन को दांव पर लगा दें और न ही वैसे लोग हैं, जो ऐसे लोगों की मदद करें। अब तो विशुद्ध व्यापारी है। जैसे व्यापारी हर सौदे में अपना नफा-नुकसान देखकर पूंजी लगाता है। वैसे ही अब कांग्रेसी भी करते हैं। ऐसे में कांग्रेस यहां कुछ भी कर लें। परिणाम क्या आयेगा। उन कांग्रेसियों को भी पता है और पता विद्रोही24 को भी। रही बात राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा के नाम पर इस प्रकार की बैठकों की तो जिस दिन यशस्विनी सहाय का नाम रांची से कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के रूप में घोषित हुआ था। उसी दिन पता चल गया था कि झारखण्ड में कांग्रेस की स्थिति क्या है? पिछली बार तो एक सीट मिल भी गई थी। इस बार तो लगता है कि सफाया न हो जाये।