सवाल तो यह है कि क्या सचमुच सुरक्षा के नाम पर की गई इस वर्तमान व्यवस्था से झारखण्ड विधानसभा सुरक्षित हो जायेगी या सुरक्षित होने की संभावना है!
देश की संसद में चल रहे वर्तमान शीतकालीन सत्र के दौरान कुछ दिग्भ्रमित युवकों-युवतियों ने कुछ ऐसी घटनाएं घटित कर दी कि उस घटना से देश की संसदीय व्यवस्था में विश्वास रखनेवाले व इसका सम्मान करनेवालों को बहुत ही गहरा आघात लगा है। इस घटना से लोग इतने मर्माहत हैं कि इन दिग्भ्रमित युवकों/युवतियों को माफ करने की स्थिति में नहीं हैं। देश/समाज का हर तबका इनके साथ ऐसा कठोर बर्ताव चाहता है कि पूरे देश के लिये एक नजीर बनें, फिर कोई ऐसा दिग्भ्रमित युवक/युवती ऐसी घटना को अंजाम देने के पहले दस बार सोचें कि ऐसी घटना को घटित करानेवालों का क्या अंजाम हुआ था?
हालांकि इसके नाम पर विपक्षी दलों के नेताओं का समूह अपने स्वभावानुसार राजनीति कर रहा है। वह चाहता है कि चूंकि अब कुछ महीनों में ही लोकसभा के चुनाव होने हैं तो उसका राजनीतिक माइलेज ले लें। लेकिन शायद उन्हें नहीं पता कि आज का मतदाता उनसे ज्यादा चालाक है और उनकी इस हाय-तौबा मचाने से उन मतदाताओं के मन-मस्तिष्क पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे मन बना चुके हैं कि आगामी 2024 में किसे संसद में बिठाना है।
जो राजनीतिक दल इस मामले को लेकर शोर-गुल मचा रहे हैं, हालांकि उन पर लोकसभाध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा कठोर कार्रवाई भी हो रही है, फिर भी उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा। इधर कांग्रेस पार्टी के वरीय नेता पी चिदम्बरम ने एक कार्यक्रम में साफ कह दिया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में किसकी सरकार बनने जा रही हैं और वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए कांग्रेस को क्या करना चाहिए, फिर भी कांग्रेस पार्टी के सोनिया-राहुल व अधीर रंजन चौधरी और खड़गे को बात समझ नहीं आ रही।
शायद इन्हें लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद समझ आये। लेकिन सच्चाई यह भी है कि देश की संसद में पिछले दिनों हुई घटना को लेकर सुरक्षा पर एक नई बहस छेड़ दी है। इस सुरक्षा का प्रभाव झारखण्ड विधानसभा के शीतकालीन सत्र पर भी पड़ रहा है। भारी सुरक्षा बंदोबस्त के नाम पर ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी गई है कि एक सामान्य व्यक्ति भी यह स्वयं से प्रश्न पूछ रहा है कि क्या सचमुच इस प्रकार की व्यवस्था से झारखण्ड विधानसभा सुरक्षित हो जायेगी या सुरक्षित होने की संभावना भी है।
वो स्वयं से इसलिये पूछ रहा है क्योंकि एक सामान्य व्यक्ति को इतनी ताकत कहां है कि वो भारी-भरकम वाले पदधारियों के पास खड़ा भी हो सकें। स्थिति तो यह भी है कि जो पत्रकार या अन्य लोग इस सुरक्षा के नाम पर जलील हो रहे हैं, उन्होंने भी अपने अखबारों में इस पर एक पंक्ति तक नहीं लिखी है। आखिर किसकी डर इन्हें सता रही है। समझ नहीं आ रहा।
अब जरा कल की घटना देखिये …
विधानसभा की प्रेस दीर्घा का प्रवेश द्वार – भारी भरकम पुलिस व्यवस्था लगा दी गई है। मेटल डिटेक्टर के साथ स्पेशल ब्रांच के पुलिसकर्मी लगे हैं। लेकिन पत्रकारों के साथ उनका व्यवहार कैसा है? एकदम अव्यवहारिक, रे-ते करके बातचीत। कुछ पत्रकार जो सहनशील है। वे कुछ भी नहीं बोल रहे। लेकिन आखिर कोई नहीं बोलेगा। यह भी संभव नहीं। एक पत्रकार, नाम- भारत भूषण प्रसाद, जो झारखण्ड विधानसभा प्रेस दीर्घा के सम्मानित सदस्य भी है, इनके चेहरे पर मुस्कान हमेशा बिखरी रहती है।
हर पत्रकार इनके व्यवहार का कायल, ये पत्रकार ही नहीं अन्य विधानसभाकर्मियों के बीच भी उतने ही लोकप्रिय है। लेकिन कल ये हद से ज्यादा उखड़ गये। उखड़ने का कारण भी था। आम तौर पर जैसे ही विधानसभा की घंटी बजनी शुरु होती है। विधानसभा का प्रेस दीर्घा खुल जाता है। पर कल समय पर विधानसभा का प्रेस दीर्घा खुला ही नहीं था। बार-बार पत्रकारों का समूह प्रेस दीर्घा खुलवाने के लिए दबाव बना रहा था। अंत में खुला और खुला तो फिर जांच प्रकिया हुई शुरु।
जो पुलिसकर्मी मेटल डिटेक्टर लेकर जांच कर रहा था। उसके व्यवहार से सभी पत्रकार उखड़े हुए थे। अचानक भारत भूषण जी ने देखा कि एक पत्रकार से मेडल डिटेक्टर लिये पुलिसकर्मी की बहस हो रही है। उन्होंने पास आकर उक्त पुलिसकर्मी को यही कहा कि क्या पत्रकारों से उसका यह सलूक ठीक है। बाता-बाती हुई और देखते ही देखते उक्त पुलिसकर्मी मेटल डिटेक्टर को जमीन पर पटक दिया। अनाप-शनाप बोलने लगा। जैसे ही यह घटना घटी।
वरीय पुलिस अधिकारियों का दल पहुंचा। मौके की नजाकत समझी, पत्रकारों से माफी मांगी तब जाकर मामला शांत हुआ। भारत भूषण प्रसाद विद्रोही24 को बताते है कि वहीं पुलिसकर्मी महिलाओं का भी मेटल डिटेक्टर से जांच कर रहा था, जो पूर्णतः गलत था। महिलाओं की जांच महिला करें तो ठीक है, पर पुरुष पुलिसकर्मी क्यों? बात अंत में स्पीकर कक्ष तक पहुंची। स्पीकर ने पूरे मामले को देखने की बात कही।
अब दूसरी बात …
मैं भी विधानसभा प्रतिदिन जाता हूं। संयोग कहिये, मैं कल अपने पारिवारिक कारणों से नहीं जा सका। परन्तु हमने जो आम-तौर पर देखा हैं कि कुछ-कुछ जगहों पर स्पेशल ब्रांच के पुलिस अधिकारियों की टीम इस प्रकार से पत्रकारों व सामान्य लोगों से व्यवहार करती है, जैसे लगता हो कि पत्रकार या सामान्य व्यक्ति अपराध करके आया हो। परन्तु सच्चाई यह भी है कि मैंने इसी विधानसभा में ऐसे भी स्पेशल ब्रांच के पुलिसकर्मियों को देखा है, जिनकी स्वकर्म के प्रति निष्ठा व सेवा भाव को कोई चुनौती नहीं दे सकता। उनका व्यवहार अति प्रशंसनीय है। आनेवाले समय में उनकी इस निष्ठा व सेवा भाव को जरुर लिखूंगा ताकि स्पेशल ब्रांच के लोग उनसे कुछ सीख सकें। वैसा बन सकें।
तीसरी बात …
जब से झारखण्ड विधानसभा अस्तित्व में आया। मैं तभी से झारखण्ड विधानसभा द्वारा आहुत किये गये सभी सत्रों में भाग लिया हूं। कई चैनलों को हमने सेवा दी। उन चैनलों के माध्यम से भी हमने विधानसभा की रिपोर्टिंग की। कई विधानसभाध्यक्षों का हमने साक्षात्कार भी लिया और उन्हें उचित जगहों पर स्थान भी दिया। सभी विधानसभाध्यक्षों से हमारे मधुर संबंध रहे और उन्होंने मुझे सम्मान भी दिया। मेरा इस वर्ष 2023 का अनुभव बड़ा कटु रहा है। इस बार के बजट सत्र में, मुझे बार-बार जांच के नाम पर बेइज्जत करने का काम हुआ। इसमें विधानसभाकर्मी और स्पेशल ब्रांच के कुछ पुलिसकर्मियों का सर्वाधिक योगदान रहा।
मैं देखता था कि और किसी का नहीं जांच होता था। परन्तु मेरी जांच में प्रतिदिन इन सभी की ज्यादा दिलचस्पी रहती थी। संयोग से एक बार आनन्द मोहन को मैने इस बारे में बताया था। आनन्द मोहन ने उक्त पुलिस अधिकारियों से अनुरोध किया था कि ये सीनियर जर्नलिस्ट हैं, कृपया इनका सहयोग करें। उसके बावजूद भी मेरे साथ उनके व्यवहार में कोई विनम्रता नहीं दिखी। दुर्व्यवहार करते रहे। जो दुर्व्यवहार करते/कराते थे। उनका संयोग से फोटो भी मेरे पास अब तक सुरक्षित है।
चौथी बात …
झारखण्ड विधानसभा में सुरक्षा केवल तभी दिखती है। जब मुख्यमंत्री/मंत्रियों का समूह/विधानसभाध्यक्ष या माननीय सदस्य विधानसभा आनेवाले होते हैं। यानी पूर्वाह्न 10-11 के बीच। इस दौरान आप देखेंगे कि सारे पुलिस पदाधिकारी वे छोटे हो या बड़े अलर्ट होते हैं। जहां-जहां भी इन्हें लगाया जाता है। ये मुस्तैद रहते हैं। पर जैसे ही विधानसभा में सभी माननीयों की इंट्री हो जाती है। ये फिर अपने मोबाइलों में व्यस्त हो जाते हैं। कोई अलर्ट नहीं रहता। इसे आप कभी भी देख सकते हैं। ऐसी स्थिति हमने तो हमेशा योगदा सत्संग महाविद्यालय के पास से लेकर विधानसभा के प्रवेश द्वार संख्या चार तक बराबर देखी है।
पांचवी बात …
झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष की ओर से मीडियाकर्मियों के लिए एक विशेष मंच विधानसभा के नोर्थ पोर्टिकों के पास बनाया गया है। कुछ मीडियाकर्मियों का दल वहां अपना माइक लगाकर रखे भी रहते हैं, परन्तु कोई भी माननीय सदस्य उस बनी हुई मंच का प्रयोग नहीं करते। सभी जहां भी उन्हें मीडियाकर्मी रोकते हैं। अपनी बातें रखनी शुरु कर देते हैं। जिससे नोर्थ पोर्टिकों की स्थिति हास्यास्पद हो जाती है। कई यू-ट्यूबर्सों को मैंने देखा कि विधानसभा के प्रमुख द्वार तक नेताओं से बाइट लेते रहते हैं। जो सुरक्षा के लिए सर्वाधिक खतरा है।
जरा इस दृश्य को आप भी देखिये और अंदाजा लगाइये ….
यहां तो जो सुरक्षाकर्मी तैनात रहते हैं। वे स्वयं किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं कि करें तो क्या करें। एक बार यहीं पर विधानसभाध्यक्ष के आदेश का पालन करने के चक्कर में पत्रकारों और सुरक्षाकर्मियों के बीच मुठभेड़ हो गई थी। तब से लेकर अब कोई सुरक्षाकर्मी कुछ भी नहीं बोलता। सभी भगवान से प्रार्थना करते हैं कि जैसे सभी सत्र आराम से निकल गया। ये भी चला जाये। कुछ न हो। नौकरी बचा रहे। पर यू-ट्यूबर्सों को इन सबसे क्या मतलब?
आश्चर्य तो तब होता है कि कई यू-ट्यूबर्सों को प्रश्न तक नहीं पूछना आता। बस वे अपना बूम पकड़कर किसी भी नेता या विधायक के मुंह के पास ले जाने में सिर्फ विश्वास रखते हैं ताकि दूसरे चैनलों में भी उनका बूम दिखता रहे। कई तो ऐसे भी है, जिन्हें आईपीआरडी झारखण्ड न चैनल मानती है और न ही उन्हें कभी अपने यहां पांव रखने देती हैं, पर यहां तो वे भी आराम से घूमते नजर आ जाते हैं। फील्ड में जमें हैं।
छठी बात …
आज ही देखा कि कांग्रेस पार्टी के कई स्थानीय नेता बिना पास के ही अंदर प्रवेश कर गये थे। उस वक्त दिन के दो बज रहे थे। सदन में अनुपूरक बजट पर चर्चा चल रहा था। जब हमने उनसे पूछा कि आपके पास विधानसभा का पास है। तब उनका कहना था कि हमें यहां आने के लिए पास की कोई जरुरत ही नहीं पड़ती। चूंकि हम यहां बराबर आते हैं। सब हमको विधानसभा का आदमी और पुलिसवाला जानता है।
अंत में …
झारखण्ड विधानसभा की सुरक्षा केवल विधानसभाकर्मियों या पुलिस अधिकारियों की ही ड्यूटी नहीं, बल्कि हम सब की जिम्मेदारी है। यह हम सभी का संवैधानिक मंदिर है। यह हमारे पूर्वजों, देश के महान सपूतों, उनके बलिदानों का उपहार है। इसके सम्मान की रक्षा हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा? मैं चाहूंगा कि जिनमें जो भी गलतियां हैं, वे उन गलतियों को स्वीकार करें और उनमें सुधार लाएं। आखिर वो कौन हैं, गलतियां करता है। आखिर उन गलतियों को सुधारने के लिए कौन सी प्रकियाओं को लाया जाये। ये सभी सोचें।
- जरा सोचियेगा, एक नीलम जो संसद के बाहर तानाशाही मुर्दाबाद का नारा लगाती है और वो गिरफ्तार हो जाती है। लेकिन इसी झारखण्ड विधानसभा में पत्रकारों और सुरक्षाकर्मियों के बीच एक बार संघर्ष हुआ था। उसी में नारा लगा था विधानसभा मुर्दाबाद। आखिर ये असंवैधानिक नारा किसने लगाया था। पूरे विधानसभा में सीसीटीवी लगी थी। क्यों नहीं उसे ढूंढा गया और उसे सजा दी गई। अगर उस व्यक्ति को सजा दी गई होती तो यह एक नजीर बनता।
- आखिर विधानसभा के प्रेस दीर्घा में वे कौन लोग हैं? जो मोबाइल को साइलेंट मोड में नहीं रखते। बार-बार उनकी मोबाइल की घंटिया बजती हैं। जबकि सच्चाई यही है कि प्रेस दीर्घा के प्रवेश द्वार पर ही एक छोटा सा काले रंग का बोर्ड लगा है, जिस पर सफेद स्याही से कुछ लिखा है, क्या लिखा है, जरा पढ़ियेगा – इस दीर्घा में निषिद्ध वस्तुओं के साथ मोबाईल सहित प्रवेश वर्जित है एवं दीर्घा में बैठने के दौरान सदन की गरिमा के अनुरुप व्यवहार अपेक्षित है। – आदेश से, माननीय अध्यक्ष, झारखण्ड विधानसभा। क्या प्रेस दीर्घा में बैठनेवाले पत्रकार अपने ही अध्यक्ष की बात मानते हैं?
- मैंने स्वयं देखा शुक्रवार को एक पुलिसकर्मी जांच के दौरान एक पत्रकार के पॉकेट में छोटी सी डिबिया देखा। उसने बड़ी विनम्रता से कहा कि सर इस डिबिया को मत ले जाइये। पत्रकार ने कहा – ले जायेंगे तो क्या हो जायेगा। बेचारा पुलिसकर्मी मुंह ताकता रह गया। आखिर उसकी गलती क्या थी। अगर यही डिबिया गलती से छूटकर विधानसभा के अंदर चला जाये तो क्या होगा? जरा सोचियेगा। तब तो उस सुरक्षाकर्मी की नौकरी चली जायेगी। क्या उस समय प्रेस दीर्घा में बैठनेवाले लोग उसकी नौकरी दिला देंगे?
- एक बात सुरक्षा में लगे विधानसभा के सभी कर्मियों और वरीय पुलिस पदाधिकारियों और साथ में बड़ी विनम्रता से विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो से भी। विधानसभा से जो पत्रकारों को पत्रकार दीर्घा के लिए तथा दर्शकों को दर्शक दीर्घा के लिए जो पास निर्गत किये जाते हैं। उसमें उस व्यक्ति का फोटो नहीं होता। इसके कारण इस बात का हमेशा खतरा बना रहता है कि इस पास को कोई भी दूसरा व्यक्ति यूज कर सकता है। कई बार ऐसा हुआ भी है। ऐसे में अगर किसी दिन भी गलत व्यक्ति के हाथ में यह पास चला गया तो समझ लीजिये क्या होगा? क्योंकि तब वो पास के आधार पर विधानसभा में इंटर कर जायेगा और देखते ही देखते वो प्रेस दीर्घा ही नहीं, बल्कि उस हर जगह पहुंच जायेगा, जहां किसी को भी पहुंचने की मनाही है। अतः इस पर ध्यान दिया जाये। उदाहरणस्वरुप मैं राजस्थान विधानसभा में कई बार प्रेस दीर्घा में गया हूं। वहां जो प्रेस दीर्घा और प्रेस दीर्घा के बाहर रहने के लिये संवाददाताओं/छायाकारों को जो पास दिये जाते हैं। उन पासों में सभी के फोटो होते हैं। उसमें कोडिंग भी होता है। जिसमें उक्त संवाददाता और छायाकार से संबंधित सारी जानकारी होती है। जब वो संवाददाता या छायाकार जब विधानसभा में जाता है तो वह अपना पास संबंधित मशीन पर रखता है, जिससे पर्दे पर उक्त संवाददाता/छायाकार की फोटो आ जाती है तथा गेट स्वयं खुल जाता है और उसके बाद ही उक्त संवाददाता या छायाकार की इंट्री होती है। संबंधित पुलिसकर्मी भी इससे मिलान कर लेता है और सारी प्रक्रियाएं पूरी हो जाती है, किसी को किसी से कोई कष्ट या तू-तू, में-में होने का खतरा भी नहीं रहता।
- ऐसे तो प्रेस दीर्घा में कौन रहेगा और कौन नहीं रहेगा ये विधानसभाध्यक्ष का विशेषाधिकार है। उसमें किसी को कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं हैं, फिर भी अगर प्रेस दीर्घा में योग्य लोग और विधानसभा के नियमों-उपनियमों तथा विशेष जानकारी रखनेवाले लोग शामिल हो तो विधानसभा की शोभा भी बढ़ेगी। नहीं तो अयोग्यों की संख्या बढ़ने/बढ़ाने से इसकी अहमियत पर प्रभाव पड़ता है।