अपनी बात

सवाल तो पत्रकार से भू-माफिया बने कमलेश से है, ED की छापेमारी में जो उसके घर से एक करोड़ नकद मिले वो तो ऐश-मौज के लिए थे, लेकिन 100 कारतूस किसकी छाती पर उतारने के लिए उसने इक्ट्ठे किये थे?

सवाल तो सीधा पत्रकार से भू-माफिया बने कमलेश से है, ईडी की छापेमारी में जो उसके घर से एक करोड़ नकद मिले वो तो ऐश-मौज के लिए उसने इक्टठे किये थे, लेकिन जो 100 कारतूस उसके घर से मिले, वो किसकी छाती पर उतारने के लिए उसने इक्ट्ठे किये थे। सवाल तो रांची से प्रकाशित होनेवाले बड़े-बड़े अखबारों से भी हैं।

उन्हें किस बात का भय था कि एक पत्रकार से भू-माफिया बने कमलेश की खबर को अपने अखबारों में जगह देने के पहले उसकी खबर के साथ न्याय नहीं किया। आधी-अधूरी खबर जनता के सामने पेश किये। जनता को यह जानने ही नहीं दिया कि जिसकी वे खबर पढ़ रहे हैं, वो भू-माफिया से पहले पत्रकार था और इसी रांची में कई बड़े-बड़े अखबारों, बड़े-बड़े संपादकों के नाक के नीचे काम किया।

कई तो पत्रकार यह भी कहते हैं कि कमलेश कई पत्रकारों का चलता-फिरता एटीएम भी था। सच्चाई यही है कि झारखण्डियों की आपको लूटनेवालों में केवल नेता नहीं, केवल बड़े-बड़े अपराधी ही नहीं, बल्कि आपको लूटनेवालों में पत्रकार भी शामिल है। इसलिए जब ये पत्रकार आपके समक्ष पहुंचे तो उनकी सारी जन्मकुंडली जान लें तब जाकर उनसे बात करें, नहीं तो वो कब अपना भयावह रूप दिखाकर आपको ही डंस लेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। बाकी की खबरें तो सभी अखबारों में दिया ही हुआ है।

खुशी इस बात की है कि प्रवर्तन निदेशालय ने पत्रकार से भू-माफिया बने कमलेश के घर पर छापा मारी की है। यह छापामारी कांके रोड चांदनी चौक स्थित एस्टर ग्रीन अपार्टमेंट के फ्लैट नं. 603 सी में हुई है। जहां से ईडी को एक करोड़ रुपये नकद, जमीन व फ्लैट से संबंधित कागजात तथा राइफल में इस्तेमाल होनेवाली 100 कारतूस मिले हैं।

बताया जाता है कि फर्जी दस्तावेज के सहारे जमीन खरीद-बिक्री मामले में पूछताछ के लिए ईडी ने उसे कई बार समन जारी किया था। लेकिन वो बार-बार ईडी से समय मांग रहा था और अंततः फरार हो गया। इसी बीच फरार होने के बावजूद वो कई राजनीतिक कार्यक्रमों में देखा गया।

हाल ही में केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जब रांची आई थी, तो उनके कार्यक्रम में भी दिखा था। एक मामूली प्रेस छायाकार/पत्रकार से बड़े भू-माफिया बनने की कहानी कमलेश की निराली है। इस कमलेश को पता नहीं यहां के अखबारों के संपादकों में क्या दिखा कि उन्होंने इसे हाथों-हाथ लिया।

यह भी कभी आई-नेक्सट तो कभी खबर मंत्र तो कभी आजाद सिपाही में अपनी सेवा देते हुए, अपनी ख्वाबों की भारी-भरकम दुनिया खड़ी कर ली। इसी दरम्यान कइयों ने इससे कई फायदा उठाएं। रांची के अखबारी दुनिया में कमलेश केवल अकेला नहीं हैं। ऐसे कई पत्रकार हैं, जो पत्रकारिता के नाम पर गंदगियां फैला रहे हैं।

देखते ही देखते करोड़ों में खेल रहे हैं। मंहगी गाड़ियों की सैर कर रहे हैं। लेकिन ऐसे लोगों पर मीडिया जगत या अन्य जांच एजेंसियों की नजर नहीं पड़ती। शायद वो लोकोक्ति उन्हें ऐसा करने से मना करती है – कौवा- कौवे की मांस नहीं खाता। मतलब अगर पत्रकार है और वो शैतानी दुनिया में कदम रख चुका है, फिर भी भाई-भाई है। यही सब झारखण्ड को बर्बाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। राजनीतिक पंडितों की मानें, पूरी कुएं में भंग पड़ी हैं तो लोग बचे कैसे?