बदलता संघ, बदलते उसके प्रचारक और इसका फायदा उठाते ले-दे संस्कृति के आधार पर चालाक लोग और उसके पदाधिकारी तथा किंकर्तव्यविमूढ़ होकर देखता सामान्य स्वयंसेवक
जिनको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (संघ) के माध्यम से अपने परिवार का भरण पोषण करना है। जिनको संघ के माध्यम से अपना चेहरा चमकाना या लोकसभा या राज्यसभा या विधानसभा पहुंचना है या कभी भाजपा की सरकार बनी तो किसी आयोग का अध्यक्ष बनना है, वे संघ से भय खायेंगे ही, क्योंकि उनको पता है कि अगर संघ के लोग नाराज हो गये तो उनकी जो महत्वाकांक्षा है, वो धरी की धरी रह जायेगी।
इसलिए जो चालाक लोग होते हैं। उन्हें जब किस्मत से किसी विश्वविद्यालय का केयर-टेकर बना दिया जाता है। तो वे इसका लाभ बखूबी निभाते हैं। वे तलाश करते हैं उनकी, जो संघ तथा संघ से जुड़े एक राजनीतिक दल जैसे भाजपा के संपर्क में हो। जैसे ही वो तलाश पूरी हो जाती है। उनसे वे निकटता व गहरा प्रेम बनाते हैं, ताकि समय आने पर वे इसका पूरा-पूरा अपने हित में फायदा उठा लें।
जब ये चालाक लोग इस चालाकी में निपुणता पाकर अपना हित साधने में लगते हैं, तो कहा जाता है न कि दिल से लगाकर कोई काम करो, तो उसमें सफलता मिल ही जाती है। इन चालाक लोगों को भी सफलता मिलती है। वे जल्द ही पार्टी विशेष के महामंत्री बना दिये जाते हैं। जो पार्टी का संगठन मंत्री होता है, वो संघ से ही जुड़ा होता है। पार्टी उसकी मुट्ठी में होती है।
वो निवर्तमान सांसद जिसका दावा होता है, पार्टी टिकट का, उसे दरकिनार कर महामंत्री को पार्टी का टिकट मिले, इसके लिए दांव चल देता है और जब उपर बैठे व्यक्ति को इस प्रकार के दांव-पेंच का पता चलता है, तो उसे मुंहकी खानी पड़ती है। लेकिन है तो वो भी संगठन मंत्री एक दाव फेल होने पर वह चालाक व्यक्ति को कहता है कि तुम चिन्ता मत करो।
तुमने बड़ी प्रेम व ईमानदारी से अपना सर्वस्व पार्टी और संघ को दिया हैं। तुम्हें ले और दे की संस्कृति के अनुसार वो चीज अवश्य मिलेगा, जो तुम्हारे दिल में है। दिल्ली ही जाना चाहते हो न। अरे लोकसभा नहीं तो राज्यसभा ही सही। किसकी मजाल है कि वो ऐसा करने से रोक दे। अब तो तुम्हारी सेवा भक्ति का स्वाद रांची से नागपुर भाया दिल्ली ने भी चख लिया है। इसलिए तुम राज्यसभा जरुर जाओगे।
लीजिये वो राज्यसभा भी पहुंच जाता है। अब बारी थी, सेवा लेनेवाले की। सेवा लेनेवाले ने कहा कि भाई तुम तो अपनी सेवा का फल प्राप्त कर चुके हो। इस बार अखिल भारतीय स्तर पर एक संघ का कार्यक्रम है। अपना विश्वविद्यालय मुझे कुछ दिन के लिए दे दो। केयर-टेकर ने कहा कि जब हम कुछ नहीं थे, तब हमने सेवा में अपना सर्वस्व लूटा दिया तो आज तो आपकी कृपा से में मैं सांसद हूं। कोई कमी होने नहीं दी जायेगी। सरसंघचालक आयेंगे हम उन्हें अपनी पलकों पर बिठायेंगे। हुआ भी ऐसा ही।
ये है आज का संघ और आज के चालाक स्वयंसेवक की कथा। अब साधारण स्वयंसेवक की तो इतनी औकात नहीं कि वो किसी ऐसे विश्वविद्यालय का केयर-टेकर बन जाये और अपनी महत्वाकांक्षा पूरी कर लें। लेकिन उसके दिल के किसी कोने में ये रहता है कि जब संघ का कोई कार्यक्रम हो तो वो भी दिल से अपना सेवाभाव प्रदर्शित कर सकें। लेकिन ये क्या? अब इसकी भी जरुरत नहीं। वो कहा जाता है न कि जूता सिलाई से लेकर चंडी पाठ करने का संकल्प जब एक ही व्यक्ति कर लिया है तो दूसरे से सेवा लेने का क्या मतलब? इसलिए इस पर भी रोक लगा दिया गया।
पुराने स्वयंसेवक कहते हैं कि एक समय था। जब संघ का कोई कार्यक्रम होता था। चाहे वो अखिल भारतीय स्तर का कार्यक्रम हो या प्रांतस्तरीय या कोई भी छोटा-मोटा कार्यक्रम। कोशिश किया जाता था कि उस कार्यक्रम से हर स्वयंसेवक जुड़े और उस स्वयंसेवक के माध्यम से पूरा हिन्दू समाज जुड़ जाये। लेकिन आज क्या है? एक ही धन्नासेठ जो येन-केन प्रकारेन अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए ले-दे संस्कृति को अपना रखा है।
उसके आगे संघ के बड़े-बड़े प्रांत प्रचारक से लेकर अन्य पदाधिकारी नतमस्तक हो जाते है और अन्य सामान्य स्वयंसेवकों को कह दी जाती है कि आप घर पर आराम करिये। लेकिन पहले क्या होता था, एक-एक स्वयंसेवक को जिम्मेदारी दी जाती थी और कुछ नहीं होता तो कह दिया जाता कि आपको प्रत्येक घर से चार-चार या पांच-पांच पैकेट रोटियां या पूड़ियां तथा सब्जी या उसकी जगह पर अचार का प्रबंध करना है।
स्वयंसेवक पूरी तन्मयता से लग जाते। सारा हिन्दू समाज इनके माध्यम से समझ जाता है कि कुछ अच्छा होने जा रहा है। वो भी इसे एक यज्ञ समझ कर पूरा करने की ठान लेता। लेकिन अब तो इस पर भी प्रतिबंध है। संघ के पास तो अब एक से एक धन्नासेठ स्वयंसेवक है, जो एक सांसद बन जाने के लिए या सांसद बनने के बाद सब कुछ लूटाने को तैयार है तो क्या जरुरत साधारण स्वयंसेवकों से सेवा लेने की और उनके माध्यम से हिन्दू समाज को उसमें जोड़ने की।
अरे केशव बलिराम हेडगेवार जी ने ऐसा प्रबंध कर दिया कि आज 100 साल होने को आये, सत्ता सुख प्राप्त कर रहे हैं। इतने दिनों से दुख खाये अब मेवे खाने के समय में भी सूखी रोटियां ही खायें, ये बर्दाश्त से बाहर है। पहले तो शाखाएं लगती ही थी, अब आओ ऑनलाइन ही शाखा लगाये, फेसबुक पर एक केले देते हुए पांच लोगों की फोटो लगाये और कह दें भारत माता की जय। हो गया हिन्दू समाज की एकता। हो गया भारत सशक्त।
अब जो समझना चाहते हैं। समझते रहिये कि हमने क्या लिखा और आपने क्या समझा? प्रबुद्ध जनों की बैठक बुलाइये और उसमें सारे के सारे भाजपा के नेता को बुला लीजिये और कहिये ये है प्रबुद्ध जनों की बैठक, पत्रकारों से मिलने का कार्यक्रम रखना हो तो सिर्फ उसे ही बुलाइये जो आपके चरण कमल पर बलिहार जाता हो अगर कबीर टाइप्ड पत्रकार को बुलायेगा तो फिर हो गया कार्यक्रम का बंटाधार, कबीर तो राष्ट्रीय एकात्मतास्रोत के लिए है ही, उसमें हर सुबह उन्हें याद कर ही रहे हैं।
यहां के प्रांत प्रचारक और यहां के संघ के अधिकारी क्या कर रहे हैं, क्या हमें पता नहीं या यहां के स्वयंसेवकों और जनता को पता नहीं। चावल का एक कण मींजकर हमारी मां-बहनें बता दिया करती हैं कि चावल पका या नहीं। खानेलायक हुआ या नहीं। उसी प्रकार जो यहां की स्थिति हैं। वो बताने के लिए काफी है कि यहां संघ और अखिल भारतीय स्तर पर संघ की क्या स्थिति है? अरे सच्चाई तो यह है कि आपके प्रांत प्रचारक से ज्यादा कही अच्छी तो राष्ट्रीय जनता दल के जिलाध्यक्षों की है, जिनकी कम से कम अपने लोगों पर पकड़ तो हैं।