जो सेवा को व्यापार बनाकर किसी का मतांतरण करा दे, वह धर्म नहीं, महापाप है
जो सेवा को व्यापार बनाते हुए किसी का मतांतरण करा दें, वो कभी धर्म हो ही नहीं सकता, जो दो रोटी खिलाकर, कपड़े देकर, शिक्षा देकर, स्वास्थ्य लाभ कराकर, किसी का मतांतरण कराकर अपना मेहनताना वसूल लें, वह कभी धर्म हो ही नहीं सकता, और ऐसे लोगों की संख्या अगर सर्वाधिक हो भी जाये, तो ये सभी, किसी जिंदगी में धर्म के मूल स्वरुप को नहीं जान सकते, सच्चाई यह है कि जो लोग मतांतरण करते-कराते हैं, उन्हें पता ही नहीं कि धर्म क्या है? और न ही उन्होंने कभी धर्म के मूल स्वरुप को जानने की कोशिश की।
क्या कोई चर्च में बैठा पादरी या विशप यह दावे के साथ कह सकता है कि उसकी प्रार्थना, ईश्वर ठीक उसी प्रकार से सुन लेता है, जैसा कि ईसा मसीह की प्रार्थना को ईश्वर सुन लिया करते थे, और जब ऐसा है नहीं तो फिर संख्या बढाने का क्या मतलब, भीड़ बढ़ाने का क्या मतलब?
ठीक इसी प्रकार की स्थिति इस्लाम मतावलम्बियों की हैं, ये प्रतिदिन नमाज पढ़ते हैं, मस्जिद जाते हैं, पर ये दावे के साथ कभी कह नहीं सकते, कि इनकी नमाज अल्लाह कबूल फरमाता ही होगा, क्योंकि लाखों-करोड़ों में कोई एक सच्चे बंदे की नमाज अल्लाह कबूल फरमाता हैं, भला ऐसा नेक बंदा कौन होगा?
दुनिया में जितने भी मत हैं या जो उनके माननेवाले हैं, वे मतावलम्बी ही कहलायेंगे, न कि धर्मावलम्बी, क्योंकि मैंने पूर्व में ही कहा कि धर्म तो इन सबसे उपर की चीज हैं। क्या ईसा मसीह के इस दुनिया में आने के पहले धर्म नहीं था?
क्या हजरत मुहम्मद के इस दुनिया में आने के पहले धर्म नहीं था? किसी भी शख्स के इस दुनिया में आने या न आने या जाने या न जाने से धर्म को कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वह आदि-अनादि से परे हैं, वह हमेशा से था, और हमेशा रहेगा, चाहे कोई माने या न माने।
धर्म क्या है? धर्म दरअसल धृ धातु से बना है, जिसका अर्थ है – धारण करना, क्या धारण करना चाहिए, आसान सा शब्द है कि सत्य धारण करना चाहिए और बाकी असत्य का परित्याग कर देना चाहिए, बस इसी को समझिये, इससे ज्यादा समझने की जरुरत भी नहीं, इतना समझ लीजियेगा, धर्म अपने आप समझ में आ जायेगा।
अब धर्म को ऐसे समझिये, रांची में ही एक फादर कामिल बुल्के हुए, जो बेल्जियम में जन्मे और जब धर्म के मर्म को समझे, तो वे धर्म को राम में ढूंढने लगे, उन्होंने तुलसीदास पर शोध किया, यहीं नहीं उन्होंने राम कथा और श्रीरामचरितमानस को बौद्धिक जीवन प्रदान किया। कहा जाता है कि फादर कामिल बुल्के को श्रीरामचरितमानस की एक चौपाई बहुत विचलित कर दी थी। वह चौपाई है – परहित सरिस धर्म नहीं भाई। परपीड़ा सम नहीं अधमाई।। यानी परोपकार से बढ़कर दूसरा धर्म नहीं है, और किसी को दुख पहुंचाने से बढ़कर कोई दूसरा अधर्म नहीं है, इससे बढ़िया धर्म का सुंदर उदाहरण और कोई हो सकता हैं क्या?
शायद यहीं कारण रहा कि फादर कामिल बुल्के इस एक चौपाई से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भारत आने का सदा के लिए मन बना लिया और जब वे भारत आये तो फिर भारत के होकर ही रह गये, सही मायनों मे देखा जाये तो असली धर्म के मर्म को फादर कामिल बुल्के ने ही पहचाना, बाकी तो धर्म के नाम पर, जो धर्म नहीं होता, मत होता है, उसके मतांतरण कराने के लिए, एड़ी-चोटी एक किये हुए हैं।
भला किसी गरीब को जो भूख से बिलबिला रहा हैं, जो कपड़े के लिए तरस रहा है, जो अपनी बीमारी से मुक्त होने के लिए आपकी ओर नजरें गड़ाए हुए हैं, उसे आप मतातंरण करा देंगे तो आपको मुक्ति मिल जायेंगी, ये किसने कह दिया, ये महापाप हैं, किसी भी व्यक्ति को जिस रास्ते से वो जाना चाहे, उसे जाने दे, आप उसका पथ प्रदर्शक बने, न कि पथ अवरोधक। यकीन मानिये, अगर आप ने किसी को धोखा देकर, लोभ देकर, मतातंरण कराया है, तो आप उस पाप के भागी है, जिसके लिए कोई क्षमा ही नहीं।
ईश्वर के पास जाने के कई रास्ते हैं, कई मत हैं, आप सभी को अपने- अपने रास्ते से जाने दें। हमें आज भी भारत के स्वामी विवेकानन्द द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन और स्वामी योगानन्द द्वारा स्थापित योगदा सत्संग समिति के संन्यासियों को देख गर्व होता है, कि वे किसी का मतांतरण नहीं कराते, वे तो सिर्फ यहीं कहते है कि आप जैसे भी जाओ, पहुंचोगे वहीं, जहां आपको पहुंचना हैं, स्वयं को प्रकाशित करो, जितना आप स्वयं को प्रकाशित करोगे, धर्म के मूल स्वरुप को स्वयं पहचानते चले जाओगे, फिर तुम्हें कोई मतांतरण की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
ये आर्टिकल हमनें आज इसलिए लिखी, क्योंकि मेरे परम मित्र एवं दैनिक भास्कर में कार्यरत विनय चतुर्वेदी ने अपने फेसबुक पर धर्म के बारे में कुछ लिखा हैं, जिसमें कई लोगों ने कमेन्ट्स दिये हैं, कमेन्ट्स मैं भी देना चाहता था, पर ये कमेन्ट्स कुछ लंबा होता, उसमें समा नहीं पाता, इसलिए मैंने लिख दिया, आशा ही नहीं, बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आप महानुभावों को अच्छा लगेगा।
ओ3म् शांति, शांति, शांति।
फोटो तो चर्च का लगाते , सबसे ज्यादा मत नहीं धर्मांतरण वहीं करते.है , इ मताअतरंण होता रहता है ।