अपनी बात

सीधा सा सवाल है, क्या इन प्रश्नों के उत्तर प्रभात खबर के प्रधान, कार्यकारी व स्थानीय संपादक दे पायेंगे?

सीधा सा सवाल है, उसका उत्तर आप बताओ प्रभात खबर के सभी संपादकों, आपने जो कल धनबाद संस्करण में कोयले के अवैध व्यापार व उत्खनन को लेकर जो हवा-हवाई खबरें बनाकर अपनी पीठ थपथपाई, क्या उसमें एक भी ऐसे कोयला तस्कर का नाम था, जिसकी धनबाद या कोयला जगत् में कोयला तस्करी को लेकर तूती बोलती हो, नहीं न।

आपने तो जितने के नाम छापे, वे सारे के सारे नाम मच्छड़ टाइप कोयला तस्करों के हैं, क्यों आपकी इतनी भी आज हिम्मत नहीं रही, कि एक नेता का भी आप नाम छाप सको। चलिये जिनके नाम आप छापे भी, उनके नाम आप पूरा नहीं दे सकें, सभी के अंग्रेजी स्टाइल वाले नाम छापे, क्यों बहुत डर था न। डर तो होना भी चाहिए, क्योंकि उन्हें डरना जरुरी है, जो ऐसे लोगों से बहुत प्यार करते हैं।

कभी आपके ही अखबार में एक विधायक के नाम हमेशा डंके के चोट पर छापे जाते थे, इस बार तो वो विधायक का नाम भी गायब है, क्या उस विधायक ने इस प्रकार के काम से संन्यास ले लिया, वो हिमालय के गोद में जाकर ध्यान में चला गया या बात कुछ और हैं, अरे भाई आप अखबारवालों जनता को इतना बेवकूफ क्यों समझते हो, पहले तो नेता जनता को बेवकूफ समझते थे, पर अब आप भी इन्हें बेवकूफ समझने लगे।

समझिये, आपको भी जनता को बेवकूफ समझने का पूरा अधिकार है। लेकिन जनता जब सनकती हैं तो क्या होता है, मालूम ही होगा, पटना का आर्यावर्त, रांची का आज और रांची एक्सप्रेस, देख लीजिये क्या हो गया? आप का अखबार जहां छपता है, उसी इलाके में कुछ दिन पहले राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी ने रणधीरवर्मा  चौक पर भाषण के क्रम में कहा कि आजकल पत्रकार भी इस कोयले के धंधे में हाथ काले कर रखे हैं।

तो क्या, आपको एक भी ऐसा पत्रकार नहीं दिखा कि इस अवैध धंधे में लिप्त होकर, उसने बड़ी तेजी से कैसे फ्लैट खरीद लिये। वह भी तब जब जहां वो जिस संस्थान में काम करता है, उसे तो उसका संस्थान मात्र 20-22 हजार से ज्यादा नहीं थमाता। समझ रहे हैं न। अब जरा बताइये, कि जिसे मात्र हर महीने 20-22 हजार रुपये मिलते हो, वो देखते ही देखते मात्र कुछ वर्षों में फ्लैट, अपने बाबूजी के जमीन पर बड़ा महल, खुद के लिए बेहतरीन कार कैसे खरीद लेता है?

जरा पता लगाइये न, कि ऐसे कितने संस्थान रांची में हैं, जहां के पत्रकार को मात्र 20-22 हजार से ज्यादा नहीं मिलता, फिर भी वे कई आलीशान फ्लैटों व कई कारों व हाइवा के मालिक है। भला 20-22 हजार कमानेवालों को ये सब संभव हैं क्या? जाहिर है नहीं, तो फिर आपको एक भी न नेता दिखा, न एक पत्रकार दिखा, न एक पुलिसकर्मी दिखा और न ही कोई प्रशासनिक अधिकारी, जबकि कौन ऐसा झारखण्ड का पुलिसकर्मी हैं, जो अपने जीवन में एक बार भी धनबाद आने की तमन्ना न रखता हो।

मैं जब ईटीवी धनबाद में कार्यरत था तो एक न्यूज ही चला दी थी कि एक दारोगा से एक एसपी ने घूस लिये, वो इस बात के लिए कि उसे एक अच्छे जगह थाने में पोस्टिंग करा देगा, पर हुई नहीं, लीजिये बवाल हो गया, इस खबर को लेकर सारे धनबाद के अखबारों ने चुप्पी लगा दी, पर मैने उसे दिखाया, समाचार चली, उस दारोगा ने लंबी लड़ाई लड़ी, हालांकि वो उच्चाधिकारियों से ज्यादा दिनों तक नहीं लड़ सका, पर इस समाचार को कोई झूठला नहीं सकता।

मैं सोचता हूं कि आखिर धनबाद के पत्रकारों, मीडिया संस्थानों को ये सब क्यों नहीं दिखता, अपना दीदा क्यों नहीं दिखता, उसे बड़े-बड़े चोर क्यों नहीं दिखते, केवल छोटे-छोटे चोर को देखकर अपनी पत्रकारिता की इतिश्री वो कैसे कर लेता हैं, आप तो बड़े लोग हैं, आपके शरीर में तो बड़ी-बड़ी आत्मा हैं, जरुर अपनी आत्मा से पूछियेगा कि हमने जो आपके समक्ष सवाल उठायें हैं, उसमें कहां तक सत्यता हैं?

रही बात, राज्य में कोई हेमन्त सरकार हैं, उस सरकार ने घोषणा की है कि वो एक जून से पन्द्रह जून तक स्पेशल ड्राइव चलायेगी, पर मैंने पहले ही घोषणा कर दी है कि इस राज्य सरकार और यहां के किसी भी आईएएस/आईपीएस अधिकारियों में इतनी क्षमता ही नहीं कि वो बड़े-बड़े कोयला तस्करों और उनसे लाभान्वित होनेवाले पत्रकारों के गिरेबां को पकड़ लें।

जिस दिन ये पकड़ने शुरु कर देंगे, निश्चय ही कोयला तस्करी का नाम लेनेवाले मच्छड़ क्या, खुद को शेर समझनेवाले जंगल का रुख कर लेंगे, पर इसके लिए सुमन गुप्ता जैसी आईपीएस की आवश्यकता होगी, जो इस सरकार में संभव नहीं, इस हेमन्त सरकार में सुमन गुप्ता जैसी ईमानदार अधिकारी का शंटिग पोस्ट देना बताता हैं कि इस राज्य में क्या चल रहा है?