अपनी बात

ये हाथी उड़ानेवाला नेता रघुवर से भाजपा जितना जल्द तौबा कर लें, उतना अच्छा रहेगा, नहीं तो इसके शीर्षस्थ नेता श्रीरामचरितमानस की वो चौपाई याद कर लें – राम विमुख अस हाल तुम्हारा। रहा न कोऊ कुल रोवन हारा।।

प्रथम ग्रासे मक्षिकापातः यानी जनाब रघुवर दास चले हैं फिर से स्वयं को भाजपा में मजबूत करने, लेकिन दिखावा क्या कर रहे हैं कि वे भाजपा को मजबूत करने के लिए फिर से भाजपा की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। लेकिन उनके भाजपा ज्वाइन करने के पहले ही दिन, जो लक्षण दिखे, वो शुभ नहीं दिख रहे। उनके ज्वाइन करने के पहले ही दिन जिस प्रकार के दृश्य दिखाई पड़े, वो बताने के लिए काफी है कि भाजपा का राज्य में पतनोन्मुख होना तय है।

कल पहले ही दिन उनके चेले इतने उत्साहित थे कि जमकर आतिशबाजी करने लगे और उस आतिशबाजी के चक्कर में एक बेचारे की स्कूटी ही आग के हवाले हो गई। रघुवर दास के चेलों ने शहर के प्रमुख स्थानों पर लगे अपने बैनर-पोस्टर व होर्डिंगों से उस शख्स का नाम व फोटो गायब कर दिया था, जिस शख्स के आगे रघुवर दास भाजपा ज्वाइन करने गये थे। यानी किसी भी होर्डिंग व बैनर में बाबूलाल मरांडी नहीं दिखाई पड़े।

बाबूलाल मरांडी सिर्फ उसी बैकड्रॉप में दिखें, जो बैकड्राप भाजपा प्रदेश कार्यालय में लगा था। शायद उस बैकड्रॉप में रघुवर दास और उनके चेलों को बाबूलाल मरांडी का नाम और फोटो देना मजबूरी थी, अगर मजबूरी नहीं होती तो बाबूलाल मरांडी भाजपा प्रदेश कार्यालय में लगे बैकड्रॉप से भी गायब दिखते। हालांकि आम तौर पर बाबूलाल मरांडी को इन सभी चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता और न वे रघुवर दास के चेलों या कनफूंकवों की कृपा से राजनीति करते रहे हैं। आज भी इनकी इतनी ताकत तो जरुर हैं कि वे विपक्ष में अन्य दलों के नेताओं की अपेक्षा ज्यादा स्वीकार्य और ग्राह्य हैं। ये सम्मान भाजपा में किसी नेता को आज भी प्राप्त नहीं, चाहे रघुवर और उनके चेले कितना भी पापड़ क्यों न बेल लें।

राजनीतिक पंडितों की मानें, तो उन अखबारों-चैनलों और यहां काम करनेवाले उन पत्रकारों को कल बहुत ही निराशा हाथ लगी, जो रघुवर की कृपा से कभी ऊर्जान्वित रहे हैं। जिन्होंने जमकर रघुवर के इशारे पर स्तुति गान की और आज भी स्तुतिगान करने  से अघा नहीं रहे हैं। कल तक जो ये कह रहे थे कि रघुवर दास को केन्द्र की राजनीति करने का मौका मिलने जा रहा हैं, राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने जा रहे हैं, बाद में वे प्रदेश अध्यक्ष तक की भी बात करने लगे। वे ये बताने में असमर्थ रहे कि जो व्यक्ति राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रदेश अध्यक्ष का दावेदार रहेगा, वैसे व्यक्ति के पार्टी में शामिल होने के अवसर पर केन्द्र का कोई भी शीर्षस्थ नेता क्यों नहीं मौजूद रहा? उसी के कोल्हान क्षेत्र के तीन-तीन मुख्यमंत्रियों का समूह क्यों गायब रहा?

राजनीतिक पंडितों का तो साफ कहना है कि रघुवर दास को आज तक बात करने की तमीज तक नहीं आई, वो पार्टी और खुद को क्या बेहतर स्थिति में लायेंगे। लोग क्या भूल गये कि कैसे इस व्यक्ति ने दीपक प्रकाश के सामने एक ऐसे पिता की बेइज्जती की थी, जो अपनी बेटी की मौत के जिम्मेवार लोगों को सजा दिलाने के लिए उनके पास न्याय मांगने गया था? क्या लोग भूल गये कि 2014 में मुख्यमंत्री बनने के बाद ही इस व्यक्ति ने कैसे अपने ही कार्यकर्ताओं के लिए मुख्यमंत्री के दरवाजे पर आने तक की रोक लगा दी थी।

भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के साथ उनका व्यवहार कभी संतोषजनक नहीं रहा। ये उसी भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों को सम्मान देते, जो उनकी जाति या समुदाय के होते। इनके शासनकाल में तो जातीयता ने वो सिर उठाई, जिसका दंश झारखण्ड आज भी झेल रहा है।

इनके शासनकाल में तो कनफूंकवें जैसे पाये, वैसे प्रशासनिक अधिकारियों को अपने अंगूलियों पर नचाते थे। अखबार व मीडिया में काम करनेवाले लोग तो इनके कनफूंकवों के कहने पर किसी का भी इज्जत उतारने में सबसे आगे रहते और उसके बदलें में उन्हें उपकृत भी किया जाता। विश्व में शायद ये पहले व्यक्ति और राजनीतिक दल के नेता है, जो हाथी उड़ाने के लिए विश्वविख्यात है। भला, भारी-भरकम, विशालकाय हाथी कहीं उड़ता है। लेकिन, इनकी दिमागी उपज को साकार करने के लिए इनके कनफूंकवें और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पूरे राज्य के लोगों को बताने में लगे रहे कि हाथी उड़ता हैं और हाथी को उड़ाने की कला सिर्फ और सिर्फ रघुवर दास जानते हैं।

ये व्यक्ति पार्टी की वो दुर्दशा कर दी कि 2014 में इसके कहने पर भाजपा के शीर्षस्थ नेता सरयू राय तक को जमशेदपुर पश्चिम से टिकट नहीं दिया और नतीजा यह निकला कि सरयू राय ने इनकी ऐसी खटिया खड़ी की कि ये खुद तो बर्बाद हुए ही यानी विधानसभा चुनाव हारे ही, पार्टी का भी सत्यानाश करा दिया। ऐसा सत्यानाश की पार्टी अब लगातार हारने का, सत्ता गंवाने का रिकार्ड बनाने को आतुर है। सच्चाई यह भी है कि सरयू राय आज भी चाहे तो इनकी राजनीति में सदा के लिए ताले लगा सकतें हैं, कई प्रमाण और दस्तावेज उनके पास हैं, जो रघुवर दास की मिट्टी पलीद कर सकते हैं, ये तो वर्तमान राजनीतिक का कमाल है कि बेचारे सरयू राय ने चुप्पी साध ली हैं। मतलब ये चुप्पी कभी भी टूट भी सकती है। बस चुप्पी टूटने का इंतजार करना है।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अगर यह व्यक्ति नहीं सुधरा, अपने बोलचाल में परिवर्तन नहीं लाए, अपने कार्यकर्ताओं के साथ सही व्यवहार करना नहीं शुरु किया, अपने कनफूंकवों और चेलों तथा हाथी उड़ानेवाली जैसी बेतुकी हरकतों पर लगाम नहीं लगाया, तो यह तो कब का बर्बाद हो चुका हैं, पार्टी भी निरन्तर बर्बाद होनी की राह तय करती रहेगी। अच्छा रहेगा कि पार्टी इस व्यक्ति से तौबा कर लें, नहीं तो पार्टी की स्थिति श्रीरामचरितमानस के उस चौपाई की तरह हो जायेगी – राम विमुख अस हाल तुम्हारा। रहा न कोऊ कुल रोवन हारा।।

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