अपनी बात

भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेता एक बार फिर रायशुमारी के नाम पर भाजपा कार्यकर्ताओं की आंखों में धूल झोंकने को तैयार, टिकट उसी को मिलेगा जो धनबल से मजबूत या उन्हें उपकृत किया होगा

झारखण्ड में भाजपा ने राज्य की सभी 81 विधानसभा सीटों के लिए आज रायशुमारी करवाई। किस विधानसभा सीट पर कौन सा प्रत्याशी कार्यकर्ताओं/नेताओं की नजर में सही होगा, इसकी राय कार्यकर्ताओं से ली गई। इस रायशुमारी में जिला के पदाधिकारी, जिला कार्यसमिति सदस्य, निवर्तमान जिला पदाधिकारी, मंडल पदाधिकारी व कार्यसमिति सदस्य, मंडल मोर्चा के अध्यक्ष, महामंत्री, शक्तिकेन्द्र संयोजक, सहसंयोजक, प्रभारी, अब तक के पूर्व जिलाध्यक्ष, व पूर्व मंडल अध्यक्ष, प्रदेश पदाधिकारी एवं कार्यसमिति सदस्य, प्रदेश मोर्चा के पदाधिकारी एवं कार्यसमिति सदस्य, प्रदेश प्रकोष्ठ व विभाग के संयोजक, सह संयोजक, जिला मोर्चा के पदाधिकारी आदि शामिल थे।

राजनीतिक पंडितों की मानें, तो ये रायशुमारी दरअसल भाजपा कार्यकर्ताओं/नेताओं के आंखों में धूल झोंकने के सिवा दूसरा कुछ है ही नहीं। ये रायशुमारी लेने की परम्परा भाजपा में कोई नई नहीं हैं। जब भी विधानसभा या लोकसभा के चुनाव आते हैं तो भाजपा दूसरे दलों को दिखाने के लिए तथा अपने कार्यकर्ताओं के आंखों में धूल झोंकने के लिए इस परम्परा का निर्वहण करती हैं, तथा इसे खुब बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती हैं, ताकि लोग जाने की दुनिया में अगर कोई शानदार, जानदार पार्टी हैं तो वो सिर्फ भाजपा हैं।

लेकिन जो भाजपा को निकट से जानते हैं, वे जानते हैं कि भाजपा वहीं करेंगी, उसका उम्मीदवार वहीं होगा, जो उसने पहले से ही ठान रखा है। राजनीतिक पंडित तो साफ कहते हैं कि यहां अब रायशुमारी नहीं चलती, दादागिरी चलती है। टिकट उसी को मिलेगा, जो धनबल से मजबूत होगा या जिसने अपने धनबल से भाजपा में रह रहे धनलोलूप नेताओं की भरपूर सेवा की है या उनके हर प्रकार के सुखों का ख्याल रखा है।

राजनीतिक पंडित तो इसका सबसे सुंदर उदाहरण देते हैं कि रायशुमारी तो लोकसभा चुनाव के दौरान भी इन भाजपा के महान प्रकांड तथाकथित विद्वानों/राजनीतिबाजों ने लिया था, तो क्या उस रायशुमारी की बात मानी गई थी। नहीं न। जरा पूछिये। इन रायशुमारी करानेवाले नेताओं से कि रांची से लोकसभा में किसका नाम टिकट देने के लिए भेजा गया था। बाद में क्या हुआ कि टिकट अंत में संजय सेठ को देना पड़ा। रायशुमारी में तो संजय सेठ का भी नाम कार्यकर्ताओं ने दिया था।

लेकिन रांची के इन रायशुमारी लेनेवाले तथाकथित नेताओं ने तो संजय सेठ का नाम तक उड़ा दिया था। संजय सेठ का नाम दिल्ली भेजा ही नहीं था। इन सब की पहली और अंतिम पसंद प्रदीप वर्मा थे। लेकिन दिल्ली को जब इन सब की हरकतों को पता चला तो अंत में संजय सेठ का नाम ही रांची से लोकसभा के लिए प्रस्तावित किया गया। ये खबर उस वक्त रांची के कई अखबारों की सुर्खियां भी बनी थी।

दूसरा उदाहरण जमशेदपुर का हैं। वहां जब रायशुमारी कराई गई। तो लोकसभा में दो ही नाम वहां से भेजे गये थे। एक नंबर पर नाम था – कुणाल षाड़ंगी का और दूसरा नाम विद्युत वरण महतो का था। चूंकि विद्युत वरण महतो सीटिंग कैंडिडेट थे। इसलिए उनका नाम भेजा गया। जमशेदपुर के सारे कार्यकर्ताओं/नेताओं की पहली पसंद कुणाल षाड़ंगी थे। लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया। विद्युत वरण महतो को टिकट थमा दिया गया।

तीसरा उदाहरण धनबाद लोकसभा का ले लीजिये। वहां से रायशुमारी के दौरान भाजपा के टिकट के लिए पशुपति नाथ सिंह, राज सिन्हा, सत्येन्द्र कुमार आदि का नाम भेजा गया था। सजायाफ्ता ढुलू महतो को तो नाम ही नहीं संप्रेषित किया गया था तो फिर ढुलू महतो का नाम टिकट के लिए कैसे फाइनल हो गया। आखिर यह सब क्या बताता है।

चूंकि ढुलू महतो धनबल-बाहुबल से मजबूत है। मोदी व शाह की जाति का है। प्रदेश के नेताओं को भी उपकृत करता रहता है। इसलिए उसकी हर जगह बन गई। ढुलू का टिकट फाइनल हो गया। धनबाद के कार्यकर्ता मुंह ताकते रह गये और फिर सजायाफ्ता ढुलू को अपने कंधे पर बिठाकर उसे लोकसभा तक पहुंचा दिया। आज यही ढुलू महतो पूर्व सांसद पशुपति नाथ सिंह के बारे में अल-बल बकता रहता है और वे बेचारे चुप-चाप अपना अपमान होता देखते रहते हैं। ये है आज की भाजपा।

अब फिर सवाल उठता है कि जब रायशुमारी आप लेते हैं और उस रायशुमारी को अंत में कूड़ेदान में फेंक देते हैं और करते हैं वहीं जो आपको अच्छा लगता है तो फिर ये रायशुमारी का नाटक क्यों? इस बार जो रायशुमारी ली गई हैं। वो रायशुमारी की नौटंकी देखिये। किसी भी रायशुमारी में भाग लेनेवालों को यह नहीं बताया गया है कि उनके विधानसभा सीटों से कौन-कौन लोग टिकट के दावेदार हैं। बस उनसे कहा गया कि आपकी पसंद के कौन-कौन तीन उम्मीदवार हैं, बस आप अपनी पसंद का तीन नाम लिखकर दे दीजिये।

अब सवाल उठता है कि किस विधानसभा सीट से कौन व्यक्ति भाजपा के टिकट के लिए अपना आवेदन दिया है। रायशुमारी में भाग लेनेवाले व्यक्ति को जब यह पता ही नहीं हैं, तो फिर वो अपनी राय कैसे देगा। ठीक उसी प्रकार जब लोकसभा या विधानसभा चुनाव में मतदान में भाग लेनेवाले मतदाता को यह पता ही नहीं हो कि जिस मतदान में वो भाग लेने जा रहा हैं, उसका प्रत्याशी कौन हैं? तो वो वोट किसे करेगा? मतलब इसे ही कहते हैं शत प्रतिशत धूर्तई। मतलब हमने रायशुमारी भी करा ली और अपने मन का कैंडिडेट भी दे दिया और कह दिया कि लो अब इसे जिताना तुम्हारा काम।

सूत्र बता रहे है कि पहले भाई-भतीजावाद होता था, बाद में मामा-भांजा हुआ, फिर बेटा-बेटी, बहू-दामाद, पति-पत्नी, अब तो भाजपा में जीजा-साला भी आ चुका है। जीजा-साला भी इस बार चुनाव लड़ने के मूड में हैं। हो भी क्यों न। महत्वाकांक्षा पालना तो हर जीजा -साला का धर्म भी बनता है। देश-समाज से क्या मतलब? जीजा- साला खुश तो सब खुश। देखियेगा जो स्थिति हैं कहीं, जीजा – साला दोनों टिकट लेने में कामयाब न हो जाये, क्योंकि दोनों मजबूत स्थिति में हैं।

इसी भाजपा में एक बहुत बड़े, बहुत बड़े मतलब समझते हैं न। वो अपनी बहू को टिकट दिलाने के लिए भी माथापच्ची कर रहे हैं। आपको क्या लगता है कि कोई रायशुमारी में उनकी बहू का नाम नहीं लेगा तो उसे टिकट नहीं मिलेगा। ये तो उनके सिर्फ चाह लेने भर की हैं। चाह समझते हैं न। वो भी नेता कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं हैं। एक नेता जी तो अपना सारा कर्म करवा चुके हैं, फिर भी टिकट की लालच छोड़ ही नहीं रहे। वो चाहते है कि मरे तो विधायक रहते हुए मरे, उन्होंने भी अंतिम दांव लगा दिया है। लोग उनकी इस हरकत पर कहने भी लगे है कि – बुढ़वा बेईमान मांगे करेला का चोखा।

राजनीतिक पंडित तो ये भी कहते हैं कि पूरे प्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हाय-तौबा मची है। क्या कोल्हान, क्या संताल, क्या रांची, क्या गुमला, क्या पलामू हर जगह बवाल है। कार्यकर्ताओं में इतना असंतोष हैं, कि इतना अंसतोष पहले कभी देखा नहीं गया। आज भी जिधर देखिये, सभी जगह पर कार्यकर्ता जिलाध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।

लेकिन इन सबसे बेखबर ये भाजपा के मठाधीश को लगता है कि इस बार के चुनाव में वे कम से कम झारखण्ड की सभी 81 सीट जीत ही लेंगे। ऐसे भी सपने देखने का सभी को अधिकार हैं। देखें। लेकिन जो किलाबंदी झामुमो ने इनकी कर दी है। उस किलाबंदी को तोड़ पाना वर्तमान में भाजपा के किसी नेता की औकात नहीं और इस किलाबंदी को मजबूती मिला है, खुद भाजपा के ही कार्यकर्ताओं से। जिनका आक्रोश बुलंदी पर है। भाजपा के कई संगठन से जुड़े लोग तो अब खुलकर झामुमो में शामिल हो रहे हैं।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा के कई प्रदेशस्तरीय नेता जो टिकट की चाह रखते हैं, अपने ही नेताओं की घटिया स्तर के हरकतों से घृणा करने लगे हैं और वे झामुमो के कई बड़े नेताओं के संपर्क में हैं और वे चाहते हैं कि झामुमो आज हरी सिग्नल दें और वे उसमें शामिल हो जाये। लेकिन झामुमो की ओर से सिग्नल ही नहीं मिल रहा, क्योंकि झामुमो जानता है कि वो अपनी सीटों पर किसी को भी खड़ा करेगा, वो जीतेगा।

अभी जो चम्पाई सोरेन और लोबिन हेम्ब्रम को अपनी पार्टी में मिलाकर जो भाजपा उछल रही हैं। सूत्र बता रहे हैं कि जहां से चम्पाई सोरेन चुनाव लड़ेंगे, वहां से उन्हें हराने के लिए भाजपा के कार्यकर्ताओं ने ही कमर  कस ली और कह दिया है कि अभी नहीं तो कभी नहीं। मतलब कुल मिलाकर भाजपा की रायशुमारी गई तेल लेने, यहां होगा वहीं जो भाजपा के प्रदेश स्तर के मठाधीश चाहेंगे। लेकिन रिजल्ट वहीं होगा, जो हेमन्त सोरेन चाहेंगे।