बयानवीर CM केवल बोलना, श्रीरामचरितमानस की चौपाइयां गाना जानते है, उस पर अमल करना नहीं जानते
याद करिये, दो साल पहले रांची के विभिन्न चौक-चौराहों पर बड़े-बड़े बैनर-पोस्टर लगे थे, जिसमें हुनरमंद मुख्यमंत्री रघुवर दास के बड़े-बड़े फोटो लगे थे, और उस पर श्रीरामचरितमानस की बहुत ही खुबसूरत चौपाइयां लिखी थी, उसके बोल थे – रघुकुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाय पर बचन न जाई, यानी ये कहकर वे अपने विरोधियों को खुली चुनौती दे रहे थे, देखो मैं जो कहता हूं, वहीं करता हूं, पर सच्चाई क्या है? पूरे देश में हाथी उड़ाने के लिए जाने-जानेवाले ये मुख्यमंत्री आज तक हाथी नहीं उड़ा सकें और राज्य की जनता आज भी ये देखने को लालायित है कि वह दिन कब आयेगा, जब वे हाथी को उड़ता हुआ देखेंगे।
जरा पूछिये, मुख्यमंत्री रघुवर दास से जनवरी 2016 में उन्होंने क्या कहा था? उन्होंने कहा था कि इस 39 एकड़ भूमि पर 290 करोड़ रुपये की लागत से जो नया विधानसभा भवन बन रहा हैं, वह जनवरी 2019 तक तैयार हो जायेगा और वे स्वयं 2019 में इसी नये विधानसभा में बजट सत्र आहूत करायेंगे, जरा पूछिये कि जनवरी 2019 तो आ चुका, फिर भी 2019 का बजट सत्र पुराने विधानसभा में ही क्यों चल रहा हैं, क्या हुआ उनके प्रण का? क्या हुआ उनके संकल्प का?
हाल ही में मधुपुर में उन्होंने फिर ग्रामीणों को सपना दिखाया है कि अक्टूबर 2019 तक राज्य के सभी गांवों में 24 घंटे बिजली होगी, जबकि सच्चाई यह है कि इन्होंने 2017 में एक पलामू में आयोजित एक सभा में कहा था कि अगर वे 2018 तक 24 घंटे बिजली नहीं दे पाये, तो वे वोट मांगने तक नहीं आयेंगे, यहां 2018 भी बीत गया और लोग आज भी बिजली के लिए तरस रहे हैं, गांवों की तो बात ही छोड़ दीजिये, अभी भी कई इलाके हैं, जहां बिजली पहुंची ही नहीं हैं, जबकि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व में ही पूरे भारत के गांवों में बिजली पहुंच गई, इसकी घोषणा कर अपनी पीठ थपथपा चुके हैं, जबकि उन्हें इस बात का पता था कि उनके सर्वाधिक काबिल मुख्यमंत्री रघुवर दास के राज्य में आज भी कई गांवों में बिजली नहीं पहुंची है, यानी इतना सफेद झूठ, आज तक देश में न तो सुना गया और न ही देखा गया।
अब सवाल उठता है कि जिस राज्य का मुख्यमंत्री बोले कुछ और करे कुछ, जिसकी बातों का कोई वजूद ही न हो, जो अपनी बातों को तय समय पर जमीन पर उतारने की क्षमता नहीं रखता हो, वह क्या सही मायनों में राज्य का प्रतिनिधित्व करनेलायक हैं, अगर नहीं तो दिसम्बर 2019 नजदीक हैं, जनता को निर्णय करना चाहिए, और ऐसे लोगों को राज्य से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए।
कहने को तो ये बार-बार कहते है कि झारखण्ड के अंतिम व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान लाना हमारी प्राथमिकता है, पर सच्चाई यह है कि जितनी मुस्कान इन्होंने राज्य के भ्रष्ट आइएएस और आइपीएस के मुख पर लाई है, ठेकदारों व अभियंताओं पर लाई हैं, वैसा मुस्कान आज तक किसी मुख्यमंत्री ने लाने की कोशिश नहीं की होंगी।
कोई एक्सटेंशन पर एक्सटेंशन और कोई को सम्मान तक नहीं, क्योंकि उसके पास पैरवी नहीं और न वो काम कभी कर सकता हैं, जो उनके कनफूंकवे कराना चाहते हैं, ऐसे में इस राज्य का कितना भला होगा, भगवान मालिक, क्या राज्य के प्रमुख विपक्षी दल वर्तमान में चल रही बजट सत्र के दौरान राज्य के सर्वाधिक झूठ बोलनेवाले मुख्यमंत्री को सदन में घेरेंगे और उनसे सवाल पूछेंगे कि क्या हुआ तेरा वादा, वो श्रीरामचरितमानस की चौपाइयां, ये केवल बोलने के लिए हैं, या कुछ करने के लिए भी हैं।
पूंजीपतियों के लिए, मोमेंटम झारखण्ड में आये अतिथियों के लिए हजारों रुपये के प्रतिप्लेट नाश्ते और भोजन तथा गरीबों के बच्चों के एक दिन की थाली से अंडा गायब कर देनेवाला, पारा टीचरों को भूखमरी के शिकार पर लानेवाला तथा महिला पारा टीचरों को जेल में डाल देनेवाला, निहत्थे पत्रकारों पर लाठी चार्ज करा देनेवाला, बकोरिया में निहत्थे बच्चों को नक्सली कहकर मौत की नींद सुला देनेवाला भला झारखण्ड का मुख्यमंत्री कैसे हो सकता है?