अपनी बात

AISMJWA द्वारा पत्रकारों के हितों के लिए किया जा रहा संघर्ष रंग लाया, चारों ओर पत्रकारों के हितों की ही चर्चा

कोरोना काल में जहां पत्रकारों के हितों का दंभ भरनेवाले कुकुरमुत्ते की तरह उगे पत्रकारों के एसोसिएशन अपने-अपने घरों में बैठ कर कोरोना से खुद को मुक्त करने के प्रयास में लगे हैं, वही आल इंडिया शार्ट एवं मीडियम जर्नलिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन AISMJWA ने अपने प्रयासों से सत्तापक्ष और विपक्ष ही नहीं, बल्कि सामाजिक संगठनों/पत्रकार संगठनों की नींद तक उड़ा दी है।

ये AISMJWA का ही प्रभाव है, कि पत्रकारों के हितों के लिए भाजपा के बड़े-बड़े नेता जैसे बाबू लाल मरांडी, रघुवर दास, दीपक प्रकाश आदि नेता अब खुलकर बोलने लगे है, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के समक्ष पत्रकारों के हितों के लिए बयान दे रहे हैं। अब तो भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी जैसी वामपंथी पार्टियां भी मुखर हो रही है, जबकि एक सामाजिक व्यक्ति ने तो पत्रकार हित के लिए धरना पर बैठने तक की घोषणा कर दी, जो समाचार पत्रों की आज सुर्खियां भी बनी।

कल तक कोई अखबार पत्रकारों के हितों को लेकर बोलने को तैयार नहीं था, अब कम से कम रांची का एक अखबार तो खुलकर पत्रकार हित में अपनी आवाज बुलंद कर रहा है, भले ही उसके यहां पत्रकारों की स्थिति खराब ही क्यों न हो? उसने इतना तो जरुर लिखा कि जो स्थितियां है, परिस्थितियां है, उसे देखते हुए मीडिया संस्थानों को आगे आना ही होगा।

पिछले दिनों कोरोना से पत्रकारों की हुई मृत्यु की ओर राज्य सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए इस संगठन ने राज्यव्यापी कैंडल मार्च भी निकाला, जिसका प्रभाव धनबाद, जमशेदपुर, पलामू, रांची आदि शहरों में देखने को मिला। आश्चर्य है कि इस संगठन ने बड़ी ही कम समय में प्रीतम सिंह भाटिया के नेतृत्व में पत्रकारों के बीच एक अच्छी स्थान बना ली है। रांची के नवल सिंह तो साफ कहते है कि पत्रकारों के संघर्ष को लेकर जो भी कुछ आज देखने को मिल रहा है, उसका सारा श्रेय प्रीतम सिंह भाटिया को जाता है, क्योंकि उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के लिए उनके लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिनके लिए कोई संघर्ष नहीं करना चाहता।

हाल ही में जब पत्रकारों पर झूठे केस दर्ज करने के मामले शुरु होने लगे, तो इसी संगठन नें जोर-शोर से मामले को उठाया। इस मामले को लेकर वे मुख्यमंत्री, पुलिस महानिदेशक तथा राज्य के कई सत्तापक्ष और विपक्ष के नेताओं से मिले, जिसका प्रभाव आज नहीं तो कल देखने को अवश्य मिलेगा।

जबकि दुसरी ओर पत्रकारों के लिए बने कुकुरमुत्ते की तरह बने संगठनों और उनके पदाधिकारियों व प्रतिनिधियों को देख लीजिये, मस्ती में अपने घरों में पड़े हैं, और घर से ही बयानबाजी कर अपने काम का इतिश्री कर ले रहे हैं, साथ ही ये अपने बयान भी, अखबारों में छपवा ले रहे हैं, लेकिन इसके विपरीत AISMJWA के पदाधिकारियों ने अखबार में बयान छपे या न छपे, इसके प्रभाव के बिना ही राज्य के पत्रकारों के हितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ये पत्रकारों के संघर्ष का ही नतीजा है, कि कोरोना काल में मृत पत्रकारों के लिए चारों ओर से आवाज बुलंद हुए।

इस संगठन से जुड़े पत्रकारों ने सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं के ट्विटर पर आये बयानों को रिट्विट कर, अपनी बातों को जोड़ा और सवाल दागे, जिसका जवाब इन नेताओं के पास नहीं था। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि AISMJWA के पदाधिकारियों का यह निस्वार्थ संघर्ष अवश्य पत्रकारों के बीच खुशियों के समाचार लाने में कामयाब होगा, इनके संघर्ष की फिलहाल जितनी प्रशंसा की जाय कम है।