मानवीय मूल्यों के साथ देश की सेवा का पाठ पढ़ानेवाली सुषमा स्वराज के निधन पर रो रहा सारा देश
आज सुबह जैसे ही नींद खुली और सोशल साइट खोला, तो मैं अवाक् रह गया, सुषमा स्वराज के निधन की खबर वायरल हो रही थी, सभी आंसू बहा रहे थे और अपने – अपने ढंग से उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे, सचमुच श्रद्धांजलि और उनके लिए आंसू बहाना तो पड़ेगा ही, जिन्होंने अंतिम सांस तक देश–सेवा को ही अपना सब कुछ माना।सुषमा स्वराज जी का कल यानी 6 अगस्त को नई दिल्ली के एम्स में निधन हो गया, वो 67 वर्ष की थी।
देश के प्रति हृदय में बहती उनके अनुराग को सुषमा जी का अंतिम ट्विट भी बता देता है कि वो देश से कितना प्यार करती थी, देश उनके दिल में किस प्रकार धड़कता था, जरा सुषमा जी के अंतिम ट्विट को देखिये, वो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिल से मुबारकबाद दे रही है, वो कह रही थी, “प्रधानमंत्री जी – आपका हार्दिक अभिनन्दन, मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी।”
सुषमा स्वराज जी के निधन की खबर और उनके लिए रोता देश देखकर, कबीर की पंक्तियां मुझे अनायास याद आ जाती है – कबीरा हम पैदा हुए, हम रोएं जग हंसे, ऐसी करनी कर चलो, हम हंसे जग रोएं। सचमुच उन्होंने किया ही कुछ ऐसा था। देश की लोकसभा हो या राज्यसभा, वो सूचना एवं प्रसारण मंत्री रही हो या विदेश मंत्री या नेता प्रतिपक्ष, हर स्थान पर उन्होंने पद की शोभा बढ़ाई, संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान को धोना हो या उसके टीवी चैनल में उस पाकिस्तान को धोना हो, जो भारत के सम्मान से खेलने का प्रयास करता है, सुषमा स्वराज ने उसे औकात दिखाया।
उन्होंने उन हर ताकतों को इसका ऐहसास कराया, जो भारत विरोध के नाम से ही फलते–फूलते हैं। यहीं नहीं विदेश मंत्री के रुप में पाकिस्तान की गीता को यहां लाना हो, या पाकिस्तानी नागरिक जो भारत में स्वास्थ्य सेवा का लाभ उठाना चाहते हो, उनकी मदद करना हो, यहीं नहीं विदेशों में प्रतिकूल परिस्थितियों में फंसे भारतीय हो या विदेशी, उन्हें सकुशल अपने देश लाना या भेजने की जिम्मेवारी जो सुषमा स्वराज ने उठाया, उसकी जितनी तारीफ की जाय, कम है।
यही नहीं आजकल जो फैशन चल चुका है कि “यावत् जीवेत घृतम् पीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत्” इस परिपाटी को भी उन्होंने तोड़ा, 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां भारतीय जनता पार्टी के कई नेता खुद चुनाव लड़ने या अपने बेटे–बेटियों को चुनाव लड़ाने के लिए पार्टी पर दबाव बना रहे थे, सुषमा जी ने खुद को चुनाव से अलग रहने का फैसला लिया, जो बताता है कि वो किस सोच की महिला थी, सचमुच जो उन्होंने अपने देश को दिया है, वो अनुकरणीय है।
हाल ही में एक विडियो मैंने देखा, जो उनके संस्कृत प्रेम को उजागर करता है, जगद्गुरु शंकराचार्य के देख–रेख में एक कार्यक्रम में सुषमा स्वराज जी को सम्मानित किया जा रहा था, सुषमा स्वराज जी ने संस्कृत साहित्य के भविष्य पर जो उन्होंने उद्गार प्रकट किये, वो अद्भुत थे, सुषमा स्वराज जी के शब्दों में आनेवाला समय संस्कृत का हैं, युवाओं को चाहिए कि संस्कृत साहित्य में रुचि लें।
संस्कृत पढ़े–पढ़ाएं क्योंकि ऐसा नहीं कि जब संस्कृत की मांग हो तो आप उसमें पिछड़ जाये, क्योंकि आनेवाले समय में कम्प्यूटर की भाषा संस्कृत ही होने जा रही है, इस कार्यक्रम में उन्हें जो राशि मिली, उन्होंने पुनः जगद्गुरु शंकराचार्य को संस्कृत के संवर्धन में लगाने को सौंप दिया। आज भी यह विडियो यू–ट्यूब पर उपलब्ध है, आप देख सकते हैं, सचमुच सुषमा स्वराज जी आपने सिद्ध कर दिया कीर्तियस्य स जीवति, जिसकी कीर्ति हैं वहीं जीवित हैं, बाकी सब क्या हैं, खुद सोच लें…