झारखण्ड में पत्रकारों को आतंकित करने का काम शुरु, पुलिस मुख्यालय ने बेसिर-पैर की अधिसूचना जारी की, IPRD की सूचीबद्धता को ही निबंधन बता, कानूनी कार्रवाई करने का आदेश
महानिदेशक एवं पुलिस महानिरीक्षक का कार्यालय, झारखण्ड, रांची द्वारा 28 अप्रैल 2023 को ई-मेल द्वारा राज्य के सभी वरीय पुलिस अधीक्षकों/पुलिस अधीक्षकों को एक पत्र जारी हुआ है। पत्र का विषय है – गैर सूचीबद्ध न्यूज चैनल/यूट्यूब न्यूज चैनल/ न्यूज पोर्टल का सत्यापन करते हुए विधि सम्मत कार्रवाई करने के संबंध में। पत्र में लिखा गया है कि उपर्युक्त विषयक संदर्भ में प्रासंगिक पत्र का स्मरण करें, जो आपको भी संबोधित है।
उक्त पत्र के माध्यम से सूचित किया जाता है कि झारखण्ड में ऐसे कई यूट्यूब न्यूज चैनल/न्यूज पोर्टल/न्यूज एप/इंटरनेट वेबसाईट है जो सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग (आईपीआरडी) से सूचीबद्ध नहीं है। इस तरह के चैनल में चार-पांच लोग काम करते हैं एवं उक्त चैनल का आईडी कार्ड धारण कर क्षेत्र में भ्रमणशील रहते हैं। ये लोग अपने आपको उक्त चैनल का पत्रकार एवं सम्पादक बताते हुए विधि व्यवस्था/शांति व्यवस्था संधारण हेतु ड्यूटी पर तैनात पदाधिकारियों पर भी दबाव डालने का प्रयास करते हैं।
इनके द्वारा कई बार भ्रामक/गलत ढंग से खबरों को प्रकाशित करने की बात सामने आयी है। प्रांसगिक पत्र की छायाप्रति साथ संलग्न कर आवश्यक क्रियार्थ भेजी जा रही है। अतः उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में निर्देश दिया जाता है कि उक्त संदर्भ में गहराई पूर्वक जांच पड़ताल कर विधि-सम्मत कार्रवाई करना सुनिश्चित करें। नीचे पुलिस महानिरीक्षक अभियान के हस्ताक्षर है और इसे अपर पुलिस महानिदेशक, प्रक्षेत्रीय पुलिस महानिरीक्षक, रांची/पलामू, सभी क्षेत्रीय पुलिस उप-महानिरीक्षक, झारखण्ड को सूचनार्थ व क्रियार्थ भेजा गया है। साथ ही इसकी सूचना पुलिस महानिदेशक के पीएस को भी दे दी गई है।
इस पत्र के साथ, वो पत्र भी साथ में संप्रेषित किया गया है, जो सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने पुलिस विभाग को उपलब्ध कराई है। जिसमें सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के एक अधिकारी अभय कुमार ने उन सारे अखबारों, चैनलों व पोर्टलों के नाम दिये हैं, जो सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में सूचीबद्ध है। उक्त अधिकारी ने उन अखबारों/चैनलों/पोर्टलों के नाम नहीं दिये हैं, जो सूचीबद्धता की कतार में हैं या सूचीबद्ध नहीं हैं।
इस अधिसूचना को जारी क्यों किया गया, उसका रहस्यमय प्रमाण पुलिस उपाधीक्षक कार्यालय की विशेष शाखा नगर रांची ने अपने प्रपत्र में वर्णन किया है। उसने अपने प्रपत्र में लिखा है कि प्राप्त सूचनानुसार उत्तर प्रदेश में पुलिस अभिरक्षा में अतीक अहमद एवं अशरफ अहमद की हत्या के बाद उत्तर प्रदेश हाई अलर्ट पर है। सूचनानुसार हत्या में शामिल हमलावर मीडियाकर्मी के वेश में आकर घटना को अंजाम दिये।
मतलब जो अधिसूचना जारी की गई है, उसके मूल में उत्तर प्रदेश की घटना है, इस बात को इंगित किया गया है। आगे यह भी लिखा गया है कि झारखण्ड एवं रांची जिले में कई ऐसे नन-रजिस्टर्ड न्यूज पोर्टल, न्यूज चैनल, न्यूज एप, न्यूज इंटरनेट वेबसाईट पर चल रहे हैं, जिनका भी आईपीआरडी से निबंधन नहीं है। इनके द्वारा कई बार भ्रामक, गलत ढंग से खबरों को प्रकाशित करने की भी बात सामने आई है।
अब सवाल उठता है कि पुलिस विभाग ही बताये कि आईपीआरडी कब से न्यूज चैनल, न्यूज पोर्टल, न्यूज एप आदि का रजिस्ट्रेशन करने लगा? उसको यह अधिकार भारत सरकार या झारखण्ड सरकार ने कब प्रदान किया? भाई हम पत्रकार हैं, जानना चाहते है। यह पुलिस विभाग और आईपीआरडी दोनों को बताना चाहिए और अगर नहीं बता पाते, तो इन दोनों पर क्या कार्रवाई होनी चाहिए?
इधर जैसे ही सूचना राज्य में पत्रकारिता कर रहे कुछ पत्रकारों को मिली तो कुछ तो अति प्रसन्न हो गये और कुछ नाराज तो कुछ आग-बबूला भी हो गये। अति प्रसन्न वे हो गये, जो सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा सूचीबद्ध है। नाराज और आग-बबूला वे हो गये, जो सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में सूचीबद्ध नहीं हैं। यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि जो विधिसम्मत कार्रवाई करने की बात आई हैं, वो सूचीबद्ध लोगों पर नहीं हैं, विधिसम्मत कार्रवाई उन पर होनी हैं जो आईपीआरडी झारखण्ड में सूचीबद्ध नहीं हैं।
अब सवाल यह भी उठता है कि झारखण्ड के पुलिस मुख्यालय को इस बात का पता कैसे चला कि आईपीआरडी में सूचीबद्ध होना इस बात की गारंटी है कि फलां अखबार, चैनल या पोर्टल ही मान्यता प्राप्त अखबार, चैनल या पोर्टल है और उनके यहां काम करनेवाले पत्रकार ही सिर्फ पत्रकार है, बाकी सब खत्म है और जो आईपीआरडी में सूचीबद्ध नहीं हैं, उनके खिलाफ विधिसम्मत कार्रवाई करने की बात कह डाली गई है।
क्या आईपीआरडी इस बात की गारंटी झारखण्ड पुलिस को उपलब्ध कराई है कि जो उनके यहां सूचीबद्ध हैं, सिर्फ वहीं पत्रकारिता कर सकते हैं, बाकी नहीं। क्या केन्द्र सरकार या राज्य सरकार ने ऐसा दिशा-निर्देश जारी किया है या कोई कानून बनाये हैं, जो प्रमाणित करते हो कि आईपीआरडी में सूचीबद्ध होनेवाला ही सिर्फ पत्रकारिता कर सकता है, बाकी नहीं? अगर ऐसा नहीं हैं, तो फिर इस प्रकार की अधिसूचना क्यों जारी की गई और इसका उद्देश्य क्या है?
हम इस बात को स्वीकार करते हैं, कि आजकल पत्रकारिता में 90 प्रतिशत पत्रकार उद्दंड, बदमाश, समाजद्रोही व देश के लिए खतरनाक है, कई तो देश व राज्यस्तर पर जेल की हवा भी खा चुके हैं, इस पर नकेल कसना ही चाहिए, पर ये नकेल कानूनी तरीके से हो तो ज्यादा बेहतर हैं, नहीं तो इसमें ईमानदार पत्रकार पीस जायेंगे और बेईमानों की पौ-बारह हो जायेगी, क्योंकि आईपीआरडी से सूचीबद्ध होना ही पत्रकारीय कार्य करने का प्रमाण नहीं होता।
एक बात और आईपीआरडी से किसी अखबार, चैनल या पोर्टल का सूचीबद्ध होना, उस अखबार, चैनल व पोर्टल को विज्ञापन मिलने से हैं, न कि उसके पत्रकारीय कार्य करने से। ऐसे भी जब कोई अखबार, पोर्टल या न्यूज चैनल जब चल रहा होता हैं, तभी उसको लोकप्रियता के आधार पर या अपनी जरुरतों के आधार पर आईपीआरडी उन्हें सूचीबद्ध करता है।
पुलिस मुख्यालय को शायद पता ही नहीं, कि इसी राज्य में एक पोर्टल चला रहा ऐसा भी पत्रकार है, जो आईपीआरडी के निदेशक को सीधे पत्र लिखकर कह डाला कि उसे सूचीबद्ध नहीं होना और न ही आईपीआरडी से उसे उपकृत होना हैं, अब ऐसे में उक्त पोर्टल चला रहे पत्रकार को पुलिस मुख्यालय क्या कहेगा?
मैं अच्छी तरह जानता हूं, मेरे पास प्रमाण आ चुके हैं, इसी साल अप्रैल महीने की घटना है। रांची के कुछ तथाकथित पत्रकारों का संगठन चला रहे, संगठनों में से एक ऐसा भी कथित पत्रकार हैं, जो पुलिस मुख्यालय जाकर पुलिस महानिदेशक से मिला था और उनके कान भरे थे, पत्र दिया था, तथा इस प्रकार के पत्र जारी करने और पत्रकारों पर कार्रवाई करने का अनुरोध किया था, जिसका परिणाम है पुलिस मुख्यालय से आनन-फानन में, बिना सिर-पैर के इस प्रकार की अधिसूचना जारी कर दी।
इस पत्र से उक्त घटिया स्तर के पत्रकार को तो कुछ नहीं हुआ, पर पुरे देश में झारखण्ड पुलिस मुख्यालय में कार्यरत पुलिस पदाधिकारियों की किरकिरी जरुर हो गई, जो भी इस प्रकार की अधिसूचना देख रहा हैं, वो हंसे बिना नहीं रह रहा, सभी के जुबां पर एक ही बात आ रही है कि आईपीआरडी कब से अखबारों, चैनलों व पोर्टलों को सर्टिफिकेट बांटना शुरु कर दिया, रजिस्ट्रेशन करना शुरु कर दिया, सूचीबद्धता तो विज्ञापन लेने व देने से हैं, इसका पत्रकारिता से क्या काम?
रही बात, कोई पत्रकारिता की आड़ में गलत कार्य कर रहा हैं, तो उस पर कार्रवाई करने के लिए पुलिस को किसने रोक रखा हैं, क्या उसके लिए कानून में कही कोई रुकावट है। दरअसल झारखण्ड में तो शुरु से देखा जा रहा है कि पत्रकारीय कार्य में जो गलत लोग हैं, उन्हें पुलिस मुख्यालय में बैठे कुछ वरीय पुलिस पदाधिकारी ही पूर्व में उनका मनोबल बढ़ाते रहे हैं। उसके प्रमाण है कि एक गलत व्यक्ति को भाजपा के शासनकाल में तीन-तीन बॉडीगार्ड भी पूर्व में पुलिस मुख्यालय द्वारा उपलब्ध कराये गये, वो भी एके 47 के साथ।
वो तो भला हो राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का, नहीं तो वो व्यक्ति आज भी खूलेआम गलत काम करता होता और पुलिसवाले ही उसकी अभी भी आरती उतार रहे होते। क्या ये सही नहीं है कि आज भी झारखण्ड में ऐसे-ऐसे पत्रकारों के संगठन हैं, जिनके नेता गलत कार्यों में लिप्त हैं, उन पर कई केस भी पूर्व में चले हैं, आज भी पता लगा लिया जाये तो उन पर आज भी कई अपराधिक केस मिलेंगे, ये लोग आज भी आसानी से पुलिस मुख्यालय जाते हैं, और उनकी आवभगत वहां की जाती हैं, वे फोटो भी पुलिस अधिकारियों के साथ खींचाते हैं और स्वयं को भगवान से कम भी नहीं खुद को शो करते।
ऐसे में इस प्रकार की अधिसूचना को क्या कहा जायेगा, ये पुलिस मुख्यालय व आईपीआरडी के अधिकारी ही बेहतर बतायेंगे। जब विद्रोही24 ने इस संबंध में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के निदेशक राजीव लोचन बख्शी से कुछ दिन पहले बात की तो उनका कहना था कि आईपीआरडी का काम किसी भी चैनल, पोर्टल का निबंधन करना नहीं, बल्कि उसका काम सूचीबद्धता और वो भी विज्ञापन से संबंद्ध है।
उनका यह भी कहना था कि वो भी सूचीबद्धता तभी प्राप्त होती हैं, जब ये संस्थान कुछ महीनों या वर्षों में स्वतंत्र रुप से चलने के बाद, आईपीआरडी के नियमों में फिट होते हैं, तभी उन्हें सूचीबद्ध किया जाता है। ऐसे में राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को चाहिए कि वे इसका संज्ञान लें और जो बेवजह की पत्रकारों के बीच में आतंक फैलाने की कोशिश की जा रही हैं, उसका पटाक्षेप करें, नहीं तो बेवजह के पत्रकारों में भ्रम की स्थिति बनेगी, पुलिस व सरकार की भद्द पीटेगी, सो अलग।