अपनी बात

#TheKashmirFiles फिल्म देखने के लिए, टिकट ब्लैक लेना पड़े या अपनी सरकार से भी लड़ना पड़ें, तो लड़िये, पर अपने परिवार के प्रत्येक सदस्यों को दिखाइये, यह भारत और इसके आनेवाले पीढ़ियों के लिए बहुत जरुरी हैं

मैं पिछले कई दिनों से #TheKashmirFiles फिल्म का इंतजार कर रहा था कि कब 11 मार्च आये और मैं इस फिल्म को देखूं, क्योंकि इस फिल्म के बारे में पहली बार कश्मीरी पंडितों ने स्वयं स्वीकारा कि यह फिल्म सत्य को प्रदर्शित कर रही है। इस फिल्म को देखकर तो कई कश्मीरी पंडित परिवारों के सदस्यों के आंखों में आंसू तक आ गये थे, क्योंकि फिल्म है ही ऐसी, जिसे देखकर किसी भी मनुष्य का कलेजा कांप जायेगा, अगर वह सचमुच में मनुष्य होगा तब।

ऐसा अत्याचार तो हमें लगता है कि विश्व के किसी देशों में, किसी समुदाय पर नहीं हुआ होगा, जैसा क्रूर अत्याचार कश्मीरी हिन्दू परिवारों पर वहां के कश्मीरी मुसलमानों ने किया और इस क्रूर अत्याचार को भारत तो भारत, विश्व के किसी भी देशों को पता तक नहीं। इससे बड़ा अत्याचार और क्या हो सकता है? आम तौर पर खासकर ऐसी फिल्में बॉलीवुड में बनती ही नहीं और न किसी को बनाने का कलेजा है, वहां के फिल्म निर्माताओं व निर्देशकों में।

लेकिन मैं प्रशंसा करुंगा फिल्म निर्माता विवेक रंजन अग्निहोत्री का, जिन्होंने इस विषय को चुना, चुनौती स्वीकारी और फिल्म को जनता के बीच रख दिया, हालांकि मैं जानता हूं कि उन्हें किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ा होगा। इस फिल्म को जनता के बीच न रखा जाय, इसके लिए कई लोगों ने हथकंडे भी अपनाये, अदालत का दरवाजा भी खटखटाया गया, पर अदालत ने भी इस फिल्म के पक्ष में ही फैसला सुनाया और ये फिल्म आज जनता के बीच रख दी गई, जनता रुचि भी ले रही हैं।

जैसा कि हमने पहले ही कहा था कि इस फिल्म को देखने की इच्छा तभी से थी, जब मैंने इसका नाम सुना था, क्योंकि मैं कश्मीरी पंडितों के दुख-दर्द को अच्छी तरह समझता हूं। आज सुबह जैसे ही हमने अखबार खोला, तो मैंने ढूंढा कि ये फिल्म कहां लगी है, हमें ये जानते देर नहीं लगी कि ये फिल्म रांची के एकमात्र सिनेमा हॉल फन में लगी है। मैं ठीक 12 बजे फन सिनेमा पहुंच गया। फिल्म 12 बजकर 50 मिनट पर प्रारम्भ होनेवाली थी।

बॉक्स ऑफिस पर इक्के-दुक्के लोग नजर आ रहे थे। थोड़ी ही देर में कई परिवार आये, जो पूरे परिवार के साथ द कश्मीर फाइल्स देखने आये थे। उन परिवारों में से एक ने गर्व से बुकिंग ऑफिस में टिकट काट रहे कर्मचारी से कहा कि द कश्मीर फाइल्स की तीन टिकट दीजिये। उधर से आवाज आई 690 रुपये दीजिये। 690 रुपये उधर मिला और तीन टिकट फिल्म में रुचि रखनेवाले भाई साहब को मिल गये।

इसी तरह जैसे-जैसे फिल्म का समय आता गया। करीब-करीब धीरे-धीरे फन सिनेमा हॉल के अंदर की कुर्सियां भरने लगी। फिल्म स्टार्ट हुई। मैं महसूस कर रहा था कि दर्शक फिल्म को लेकर सीरियस थे। उनकी आंखें आक्रोशित थी। कई की मुट्ठियां भींची हुई थी। कई युवाओं के मुख से दर्द भरी चीखें भी सुनाई पड़ी, कई ने तो इन क्रूरता को देखकर अपनी पलकें झूका ली, क्योंकि वो असहनीय था।

आखिर ये फिल्म क्यों देखें…

ये फिल्म इसलिए देखें क्योंकि यह फिल्म नहीं देखेंगे, तो आपको ऐहसास ही नहीं होगा कि कश्मीर में आपके हिन्दू परिवारों के साथ, धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़नेवालों ने कैसे उनकी जिंदगी नरक बना दी। कैसे उनकी लड़कियों के इज्जत से खेला गया। कैसे इस्लाम के नाम पर आतंकियों ने हिन्दूओं को काफिर कहकर हिन्दू पत्नी के सामने उसके पति की हत्या कर दी और उसके पति के खून से सने हुए चावल उसके मुंह में ठूस दिये गये।

कैसे एक विवाहित हिन्दू लड़की को उसे उसके परिवार और हिन्दू समाज के सामने नंगा किया गया और फिर उसे चलती आरे से दो टुकड़े कर दिये गये। कैसे कश्मीर के मस्जिदों से ऐलान किये गये कि हिन्दू अपने घर छोड़कर चले जाये, कैसे ऐलान किया गया कि हिन्दू या तो इस्लाम अपनाएं, नहीं तो कश्मीर से चले जाये अथवा मरने को तैयार रहे। कैसे हिन्दू परिवारों को, मुस्लिम परिवारों के सामने, इस्लाम के नाम पर आतंकियों ने पंक्तिबद्ध कर उन्हें सर पर गोली मार दी, जिसमें बच्चे और औरतें भी शामिल थी।

कैसे कश्मीरी हिन्दूओं को वहां के मुस्लिम परिवारों ने सरकारी राशन से वंचित कर दिया। कैसे कश्मीरी पंडितों के घर कब्जे करने में कश्मीरी मुसलमानों ने रुचि ली। कैसे वे आतंकियों तक कश्मीरी पंडितों के बारे में सूचनाएं पहुंचाते थे। कैसे जेएनयू वालों ने कश्मीरी पंडितों पर हो रहे अत्याचार पर तो आंखें मूंद ली थी और कश्मीरी आतंकियों के साथ हाथ से हाथ मिलाकर भारत माता की छाती पर ही वार करते रहे।

कैसे एक कश्मीरी पंडित धारा 370 खत्म करने की अपील भारत सरकार से क्यों और किसलिए करता रहा। कैसे कश्मीर की सरकार मुस्लिमों और आतंकियों पर तो मेहरबान रही पर जम्मू के हिन्दू शिविरों में रहनेवाले कश्मीरी पंडितों की सुध तक नही ली। कैसे एक मौलाना, एक पीड़ित कश्मीरी पंडित की विधवा को निकाह करने की सलाह देता है। वो भी तब जब वो महिला अपने बच्चे को उससे पढ़ाने की बात करती है।

कैसे स्कूल में पढ़ाई से ज्यादा जरुरी मस्जिद बनाने की बात बच्चो को सिखाई जाती है। इस फिल्म ने तो जेएनयू के टूकड़े-टूकड़ें गैंग का तो एक तरह से पर्दाफाश ही कर दिया है कि यह गैंग कैसे अलगाववादियों से मिलकर भारत को तहस-नहस करने में लगा है। इस फिल्म को जब आप देखेंगे तो आप इस फिल्म के पात्रों को देखकर पता लगा लेंगे कि फलां पात्र किस नेता और किस प्रोफेसर का रोल अदा कर रहा हैं। अनुपम खेर ने सिद्ध कर दिया कि वे उम्दा कलाकार है, उनसे बेहतर कोई नहीं।

अंत में यही कहूंगा कि #TheKashmirFiles फिल्म देखने के लिए, टिकट ब्लैक लेना पड़े या अपनी सरकार से भी लड़ना पड़ें, तो लड़िये, पर अपने परिवार के प्रत्येक सदस्यों को दिखाइये, यह भारत और इसके आनेवाले पीढ़ियों के लिए बहुत जरुरी है। हमें खुशी हुई कि इस फिल्म में कोई गीत-संगीत नहीं कि जिस पर दर्शक सीटी बजा सकें, पर इस फिल्म ने जो संदेश दिया हैं, वो तब पता चला, जब फिल्म खत्म हुई और सभी दर्शकों ने फिल्म व देश के सम्मान में भारत माता की जय व वंदे मातरम् के नारे लगाएं। सचमुच हॉल का यह दृश्य रोमांचित करनेवाला था।