फिर पलट गये पलटू राम, बोलो प्रेम से जयश्रीराम, इसके बाद भी पलटेंगे पलटू राम, आनेवाले समय में भी बोलियेगा जयश्रीराम
फिर पलट गये पलटू राम, बोलो प्रेम से जयश्रीराम। इसके बाद भी पलटेंगे पलटू राम, आनेवाले समय में भी बोलियेगा जयश्रीराम क्योंकि पहले भी पलटे थे पलटू राम, उस वक्त भी लोगों ने कहा था जयश्रीराम। यह बिहार का दुर्भाग्य है कि कभी इस बिहार में मसखरा तो कभी बार-बार पलटी मारनेवाला व्यक्ति इस राज्य का मुख्यमंत्री बनता है और उससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि इस बार-बार पलटी मारनेवाले व्यक्ति को भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी और लालू प्रसाद जैसे नेता अपने माथे पर बिठाकर वर्षों और महीनों ढोते हैं।
नीतीश कुमार जैसा व्यक्ति भी इन लोगों को अच्छी तरह जानता है, इसीलिए वो इन सारे लोगों को समय-समय पर यूज करना जानता है तथा बिहार में उस रिकार्ड को बनाने में अग्रसर हैं कि जिस रिकार्ड को तोड़ने में आनेवाले राजनेताओं को पसीने छूट जाये। वो रिकार्ड है कि बिहार में सर्वाधिक वर्षों तक मुख्यमंत्री कौन रहा तथा पलटी मारने में और अन्य दलों तथा उनके नेताओं को उल्लू बनाने में कौन मुख्यमंत्री बीस रहा, तो बोलने में आये कि नीतीश कुमार ….।
हालांकि यह मौका एक बार लालू प्रसाद को भी मिला था, जब उन्होंने सामाजिक न्याय का बिहार में बीज बोया था। लेकिन कहा जाता है कि जब व्यक्ति को जो चीजें मिलती हैं तो उस वक्त उस पद का वो व्यक्ति कद्र करना नहीं जानता। यही कारण है कि लालू प्रसाद बिहार के जब मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अपना ज्यादा समय अपने बच्चों को आर्थिक रुप से सशक्त बनाने, अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनाने और जब भी समय मिला तो खुद को मसखरी में लगाया।
जिसका परिणाम यह रहा कि इन्हें विधानसभा ही नहीं बल्कि लोकसभा, देश के अन्य राज्यों, विदेशों तक में मसखरे से ज्यादा सम्मान नहीं मिला। ज्यादातर लोग इनकी बातों या भाषण को सुनने या उनसे कुछ सीख लेने को नहीं जाते, बल्कि इसलिये जाते कि चलो लालू प्रसाद का भाषण है, मजा आयेगा। इन्ज्वाय किया जायेगा। यही कारण था कि ये जिस राज्य में भाषण देने जाते। इनको देखने व सुनने के लिए भारी भीड़ जुटती, पर वोट देने की बात आती तो लोग वोट या तो भाजपा को देते या कांग्रेस को देकर चले आते या अन्य क्षेत्रीय दलों को दे देतें।
इनकी इसी हरकतों के कारण बिहार और बिहारियों की पहचान मसखरे के रुप में होती। लोग कहते कि देखो बिहार का नमूना आया है। बिहारी मजदूरों की दूसरे राज्यों में पिटाई तो उस वक्त आम बात हो चुकी थी। जब इनके शासनकाल में अपराध चरम पर था तब बिहार की जनता ने लालू प्रसाद को सत्ता से दूर किया और उसने नीतीश कुमार को हाथों-हाथ लिया।
लेकिन इस व्यक्ति ने अपनी पहचान नीतीश कम, पलटू राम से ज्यादा बना ली। कितनी बार अब तक इन्होंने पलटी मारी हैं, लोग अब गिनना भूल गये हैं। कभी इनकी पलटी मारने को लेकर आज के राजद नेता, लालू के बेटे, वर्तमान बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इन्हें पलटू राम और कुर्सी कुमार तक कह डाला था। उनका यह बयान आज भी यू-टयूब पर पड़ा हुआ हैं, कोई भी देख सकता है।
बिहार के ही एक बहुत बड़े डाक्टर और उद्योगपति से आज हमारी बातचीत हुई तो उन्होंने नीतीश कुमार को पलटू राम न कहकर पीपी राम कहा। जब हमने उनसे पूछा कि पीपी राम का मतलब तो उन्होंने कहा कि पीपी राम का मतलब परमानेन्ट पलटू राम। यह स्थिति है। किसी ने ठीक ही कहा है कि एक नाम माता-पिता रखते हैं और एक नाम समाज रखता है, वो आपके क्रियाकलापों को देखकर रखता है।
एक ने अपने बेटे का नाम रखा, मोहनदास। बेटा बन गया- महात्मा गांधी। एक ने नाम रखा, सुभाष। बेटा बन गया – नेताजी। एक ने नाम रखा -जय प्रकाश। बेटा बन गया – लोकनायक और एक ने नाम रखा – नीतीश। बेटा बन गया -पलटू राम। कितने शर्म की बात है। ऐसे भी शर्म तो उसे आती है। जिसके पास शर्म हो। जिसने कुर्सी के लिए शर्म और हया त्याग दी। उससे शर्म की बात करना भी शर्म की बेइज्जती है।
आज बिहार का युवा कही जाये और उसे इज्जत मिल जाये। यह असंभव है, क्योंकि आपके नेता ही तो आपका चरित्र बनाते हैं। आपके राज्य का इमेज बनाते हैं। जरा देखिये हाल ही में गुजरात में वाइब्रेंट गुजरात आयोजित हुआ। वहां देश-विदेश के नेता-उद्योगपति जुटे। वे गुजरात को कहां से कहां ले जा रहे हैं और एक हमारा बिहार हैं। जहां का नेता स्वयं को पलटूराम तो कोई मसखरा कहलाने में गर्व महसूस कर रहा है और केन्द्र में बैठा एक शख्स इनकी नादानियों पर मजे लेते हुए, इन्हें जैसे पाये, वैसे नचा रहा हैं और ये नाच रहे हैं। धिक्कार हैं – बिहार के ऐसे नेताओं पर। धिक्कार है- उनकी ऐसी सोच पर।
नीतीश कुमार ने तो बिहार की जनता पर वो दाग लगाया है कि वो दाग, वो कलंक कभी नहीं धूल पायेगा। उन्होंने अपनी स्वार्थ को लेकर वो कलंक बिहारियों पर लगाया है कि ये बिहारी जहां भी जायेंगे, लोग उन्हें हिकारत भरी नजरों से देखेंगे। वैसे आज भी ये हिकारत भरी नजरों से ही देखें जाते हैं, क्योंकि इन्होंने कुछ ऐसा किया ही नहीं, जिससे इन पर गर्व किया जा सकें। अब नीतीश कुमार कि पलटी मारने की वर्तमान कारगुजारी की एक झलक पर नजर डालिये। आखिर नीतीश कुमार ने फिर से पलटी क्यों मारी? क्योंकि …
संपूर्ण विपक्ष को एकता के सूत्र में बांधने के प्रयास में लगे नीतीश कुमार को न तो कांग्रेस ने भाव दिया और न ही भाजपा विरोधी अन्य दलों ने। नीतीश चाहते थे कि कांग्रेस और भाजपा विरोधी अन्य दल उन्हें अपना नेता माने, प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करें, लेकिन कांग्रेस या भाजपा विरोधी अन्य दल एक ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार कैसे घोषित कर दें, जिसकी औकात बिहार में एक भी सीटें जीतने की न हो और वो वैशाखी के सहारे ही सिर्फ जीतने की तमन्ना रखता हो।
बिहार में नीतीश कुमार को अपने माथे पर बिठाकर ढो रहे राजद सुप्रीमो लालू यादव नीतीश कुमार के चाल-चरित्र से पूर्व परिचित थे, वे जानते थे कि नीतीश कभी भी पलटी मार सकते हैं, इसलिए उन्होंने कभी भी उन्हें वो तवज्जों नहीं दी, जो तवज्जों लालू प्रसाद से नीतीश चाहते थे।
नीतीश कुमार चाहते थे कि लोकसभा चुनाव में राजद उन्हें कम से कम 20 सीटें दें, पर लालू यादव जानते थे कि नीतीश कुमार की पार्टी की औकात बिहार में एक भी सीट जीतने की नहीं हैं, इसलिए वे उन्हें उनकी औकात के अनुसार ही लोकसभा की सीटें देने को तैयार थे। लेकिन नीतीश को यह मंजूर नहीं हो रहा था, उन्हें लग रहा था कि अब उनकी मिट्टी पलीद हो रही है, इसलिए उन्होंने लालू और लालू की पार्टी से दूरी बनाने की चाल चली, उन्होंने भाजपाइयों से संपर्क साधना शुरु किया।
इधर भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को पता चल चुका था, नीतीश पलटी मारने को तैयार है। इसी बीच भाजपाइयों ने कर्पूरी ठाकुर के जन्मशती के अवसर पर कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया। नीतीश को मौका चाहिए था। उन्होंने भरपूर इसका फायदा उठाया। इसी बहाने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा कर दी और परिवारवाद पर सख्त टिप्पणी कर दी। दरअसल यह टिप्पणी लालू प्रसाद और उनके परिवार पर ही था।
लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी ने इसी को लेकर नीतीश कुमार पर पलटी मारने से संबंधी ट्विट कर दी। हालांकि यह ट्विट लालू की बेटी ने जल्द ही डिलीट कर दिया। फिर भी यह ट्विट नीतीश को बहुत पसन्द आया, वो तो बहाना ढूंढ ही रहे थे। फिर से एक और बहाना मिल गया। लीजिये नीतीश कुमार और सख्त हो गये और फिर से पलटी मारने के लिए हामी भर दी।
कुल मिलाकर देखा जाये। तो नीतीश कुमार पर कोई भी राजनीतिक दल या नेता विश्वास करता है तो वे निःसंदेह महामूर्ख हैं या महामूर्ख बनने के पथ पर बढ़ चला है। दरअसल नीतीश कुमार विशुद्ध रुप से स्वार्थपरक सिद्धांतों को प्रतिपादित करनेवाले और उसी पर चलनेवाले व्यक्ति हैं। उन्हें वहीं व्यक्ति पसन्द आता है, जो उनकी आरती उतारें, न कि उन्हें कोई सलाह दें। अगर किसी ने सलाह दिया या उनके खिलाफ कुछ बातें कहीं तो उन्हें बहुत ही क्रोध आता है। हालांकि दिखाने को वो कटहंसी जैसा चेहरा दिखा देते हैं पर अंदर ही अंदर वे मौका ढूंढते हैं और समय आने पर बदला भी ले लेते हैं।
अंततः झारखण्ड में एक बहुत बड़े पत्रकार हुए, बाद में नेता बन गये। जिनका नाम है – हरिवंश नारायण सिंह। जो वर्तमान में राज्यसभा के उपसभापति भी है। पता नहीं उन्हें नीतीश कुमार में कौन सा नूर नजर आता था कि वे हर बात पर ही नीतीश की प्रशंसा करने बैठ जाते थे। उन्हें 2014 के पहले नरेन्द्र मोदी से भी ज्यादा नीतीश कुमार ही पसन्द आते थे। यह बातें मैं ऐसे ही नहीं लिख रहा हूं। उनके अखबारों व आलेखों में ये चीजें उनके द्वारा बार-बार परिलक्षित होती थी। कई बार तो ये नीतीश कुमार के साथ बैठके भी करते और कार्यक्रमों में भी भाग लेते।
नीतीश ने भी उनकी इस दिव्य भक्ति को देख उन्हें अपनी पार्टी की ओर से राज्यसभा में भेजा। हाल ही में जब नीतीश एनडीए छोड़ लालू प्रसाद के चरणों में लोट गये तो उन्होंने नीतीश से दूरियां बना ली। इसी दरम्यान उन्हें कहा गया कि वे राज्यसभा के उपसभापति पद से इस्तीफा दे दें तो उन्होंने इस्तीफा देना जरुरी नहीं समझा। जिसको लेकर जदयू के कई नेताओं ने हरिवंश नारायण सिंह पर कड़ी टिप्पणी भी की थी। लेकिन अब चूंकि फिर से नीतीश पलटी मार रहे हैं तो निःसंदेह हरिवंश नारायण सिंह को एक तरह से संजीवनी जरुर ही मिल रही होगी। उन्हें भी आनेवाले समय में इसका भी लाभ जरुर ही मिलेगा। पदोन्नति अवश्य होगी।