कर्मफल का सिद्धांत, रांची के भाजपा सांसद संजय सेठ और आधुनिक राजनीति
मैं हमेशा से ही कर्मफल के सिद्धांत को मानता रहा हूं। मैं यह मानता और महसूस करता हूं कि कोई भी व्यक्ति आज जहां भी हैं वो उसके कर्मफल के सिद्धांत द्वारा प्रतिपादित फल ही है कि वो उसका उपभोग कर रहा हैं। अगर आपने गलत किया है तो आपके साथ गलत होना सुनिश्चित है और आपने सही किया है तो आपके साथ सही ही होगा, उसके लिए आपको कितने भी जन्म क्यों न लेना पड़ जाये। ईश्वर आपको अपनी ओर से कुछ भी नहीं देता, वो तो सब आपका किया कराया है।
अगर आप आनन्द ले रहे हैं तो वो भी आपका ही किया कराया है और आप दुख भोग रहे हैं तो वो भी आपका ही किया कराया है। इसलिए इस पर बेकार की बातें कि उसने मेरे साथ ऐसा कर दिया या उसने ऐसा कर दिया तो मुझे ये स्थिति प्राप्त हो गई, ये कहना भी बेमानी है। आप चिरकूटई करके बहुत सारे स्थानों को प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन उसका सुख आप भोग ही लेंगे, इसकी गारंटी तो आप भी नहीं दे सकते।
मैंने अपने आस-पास कई लोगों को देखा कि वे चिरकुटई करके राज्यसभा तक पहुंच गये, लेकिन वहां रहकर भी चिरकुटई ग्रुप में ही शामिल रहे, कुछ कर नहीं पाये, बढ़िया पद मिलने के बावजूद भी वे वहां के चिरकुटई ग्रुप में ही बंध गये। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी मिले, जिन्होंने सिर्फ कर्म पर ध्यान दिया और लीजिये वे कहां से कहां पहुंच गये, आज उनकी चर्चा भी हो रही है।
उन्हीं में से एक हैं – रांची के सांसद संजय सेठ। आज संजय सेठ किसी नाम के मोहताज नहीं हैं। वे पहले भी किसी परिचय के मोहताज नहीं थे। अपने क्रियाकलापों से हमेशा राजनीति में अग्रणी रहे और देश के आज रक्षा राज्य मंत्री है। इसके पहले वे झारखण्ड राज्य खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे और उस पद पर रहकर खादी की जमकर सेवा की। सांसद का चुनाव लड़े। जीत हासिल की। दुबारा चुनाव लड़े। फिर से सांसद बने और आज केन्द्रीय रक्षा राज्य मंत्री बन गये।
स्वभाव से सरल और सभी के लिए सहजता से उपलब्ध संजय सेठ को कौन नहीं जानता? लेकिन इतने सरल व सहज व्यक्ति से भी भाजपा के ही कई लोगों ने छल कर दिया और एक चाल चली की उन्हें इस बार रांची से टिकट नहीं देने का कुत्सित प्रयास किया। जब केन्द्र को इस बात का पता चला और केन्द्र को यह भी पता था कि पिछले पांच वर्षों में संजय सेठ ने बिना किसी से कुछ प्राप्त किये, पार्टी और नेतृत्व के लिए रांची में क्या किया तो उस कर्मफल के आगे कुत्सित प्रयास करनेवालों की एक न चली।
आखिर टिकट मिल ही गया। कर्मफल इतना सिर चढ़कर बोला कि वे आज मंत्री बन गये। जो उन्होंने भी कभी सपनों में नहीं सोचा होगा। कुछ लोग झारखण्ड में ऐसे भी हैं, जो हैं तो कुछ नहीं, लेकिन जातिगत आधार पर मंत्री बनने का ख्वाब पाल लेते हैं। लेकिन संजय सेठ के साथ तो ऐसा कुछ नहीं, वे तो कर्मफल के सिद्धांत पर यहां तक पहुंचे हैं।
एक बार संजय सेठ भाजपा से अलग होकर बाबूलाल मरांडी द्वारा बनाई गई पार्टी झारखण्ड विकास मोर्चा में शामिल हो गये थे। लेकिन जैसे ही उन्हें अपनी गलती का ऐहसास हुआ। वे भाजपा में शामिल हुए। प्रदेश कार्यालय में रोए। गलती का प्रायश्चित की और आज यहां तक पहुंचे। हालांकि कई लोग झाविमो से भाजपा में आये, उनमें प्रदेश अध्यक्ष बन चुके दीपक प्रकाश जैसे लोग भी शामिल है।
परन्तु संजय सेठ के पार्टी में शामिल होने और दीपक प्रकाश के पार्टी में शामिल होने में आकाश-जमीन का अंतर है। संजय सेठ पार्टी से लाभ लेने के लिए भाजपा में शामिल नहीं हुए थे। वे सहयोग करने और एक कार्यकर्ता के रुप में भाग लेने के लिए शामिल हुए थे। लेकिन दीपक प्रकाश जैसे लोग क्यों शामिल हुए, वो तो सबको पता है।
आदित्य साहु और प्रदीप वर्मा जैसे लोग क्यों पार्टी में शामिल होते हैं और कितनी जल्दी सांसद बनते हैं। वो तो सभी को पता है। लेकिन जो भी राजनीति में शुचिता की बात करते हैं। शुद्धता की बात करते हैं। उनके लिए संजय सेठ एक उदाहरण है। जो आज के युवा है। जो राजनीति को अपना कर्मक्षेत्र बनाना चाहते हैं। उनके पास दीपक प्रकाश, आदित्य साहु और प्रदीप वर्मा जैसे लोगों के भी उदाहरण हैं और संजय सेठ के उदाहरण भी हैं।
अब उन्हें निर्णय करना है कि वे कैसे सफलता के शिखर पर पहुंचना चाहते हैं। संजय सेठ का रास्ता चुनोगे तो सफलता भी मिलेगी और मान भी मिलेगा, बाकी का रास्ता चुनोगे तो हो सकता है कि राज्यसभा के सांसद बन जाओ, लेकिन सम्मान मिल ही जायेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं और जब सम्मान ही नहीं हैं तो तुम जिन्दा रहो या जीते जी मर जाओ, क्या फर्क पड़ता है?