अपनी बात

कोई नहीं हैं टक्कर में, काहे पड़े हो चक्कर में, अगर आप राजनीतिक पंडित हैं तो झारखण्ड की जनता की नब्ज पकड़िये, हेमन्त-कल्पना की सभा में स्वतः जुटनेवाली भीड़ व उसकी जोश को मापिये, सब कुछ पता चल जायेगा

कोई नहीं हैं टक्कर में, काहे पड़े हो चक्कर में, झारखण्ड की जनता की नब्ज को पकड़िये, जनता भाजपा को दूर से प्रणाम कर चुकी हैं और हेमन्त सोरेन तथा कल्पना सोरेन की सभा में उनको सुनने को आनेवाली भीड़ सब कुछ बयां कर दे रही हैं कि झारखण्ड में कौन आ रहा हैं? भाजपा झारखण्ड में अंतिम सांस ले रही हैं। आश्चर्य है कि भाजपा शासित राज्यों के सारे मुख्यमंत्री, केन्द्र के करीब-करीब सारे मंत्री, यहां तक की प्रधानमंत्री व गृह मंत्री तक की झारखण्ड में सभा हो चुकी हैं।

लेकिन जो स्वतः भीड़ हेमन्त सोरेन व कल्पना सोरेन की सभा में जुट रही हैं। वो इन भाजपा नेताओं की सभा में नहीं जुट रही। जानते हैं, इसका कारण क्या है? इसका मूल कारण है भाजपा के चाल-चरित्र का उजागर हो जाना। जो भाजपा पानी पी-पीकर झामुमो को कोसती थी, उस पर परिवारवाद का आरोप लगाती थी। आज वो खुद मुंह छुपाने का असफल प्रयास कर रही हैं।

अब भाजपा के नेता व कार्यकर्ता ही अपने नेताओं से पूछ रहे हैं कि बताइये नेता जी, ये रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू दास कौन है? अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कौन है? चम्पाई सोरेन का बेटा बाबूलाल सोरेन कौन है? सजायाफ्ता सांसद ढुलू महतो का भाई शत्रुघ्न महतो कौन हैं? ऐसे ही कई भाजपा नेताओं व आजसू के खानदान के लोग जो इस बार चुनाव लड़ रहे हैं, वे सारे कौन है? लेकिन अब ये भाजपा के तथाकथित बड़े नेता कुछ बोल ही नहीं पा रहे हैं।

राजनीतिक पंडित कहते हैं कि अपनी ओर से तो केन्द्र व प्रदेश के भाजपा नेताओं ने बहुत ही तगड़े कैंडिडेट उतारें, लेकिन यही कैंडिडेट इनके हार के सूत्रधार भी बन रहे हैं। इन्हीं के खिलाफ अब भाजपा कार्यकर्ता बगावत पर उतारू हैं। कोई इनके खिलाफ चुनाव लड़ रहा हैं तो कोई इनके द्वारा दिये गये प्रत्याशियों को हराने के लिए मूंछ पर घी मल रहा हैं। पुराने भाजपा व संघनिष्ठ स्वयंसेवक इस दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं।

लेकिन वे कर ही क्या सकते हैं, सभी मौन हैं, क्योंकि ये बोलेंगे भी तो ये सुनेंगे नहीं। आश्चर्य है कि जो भाजपा को यह बताने की कोशिश कर रहा है कि उससे कहां गलती हो रही हैं, उसे सबक सिखाने का काम किया जा रहा है, कभी रघुवर दास के शासनकाल में तो ऐसे लोगों पर केस भी कर दिये गये। लेकिन इन बेशर्मों को शर्म नहीं आई। आज जब उसका प्रतिफल मिल रहा है तो उनकी सिट्ठी-पिट्ठी गुम नजर आ रही हैं।

इधर हेमन्त सोरेन ने ताल ठोक रखा हैं। चाहे संथाल का इलाका हो या कोल्हान का या पलामू प्रमंडल सभी जगह उनके कैंडिडेट मजबूत स्थिति में हैं। हेमन्त सोरेन के ही कारण कांग्रेस के कई प्रत्याशियों के हाड़ में हल्दी भी इस बार लग जा रही है। आम जनता के बीच बहुत तेजी से लोकप्रिय हुई कल्पना सोरेन ने भी बहुत तेजी से अपना मुकाम बना चुकी है।

सबसे बड़ी बात है कि हेमन्त सोरेन के परिवार में एकता है और जहां एकता होती हैं वहीं बल होता हैं और वहीं जीत भी हासिल करता हैं। जो इनके परिवार में युद्ध की स्थिति बनाकर रखते थे। वे स्वयं झामुमो से नाता तोड़कर भाजपा में चले गये हैं। यानी भाजपा ने झामुमो का सिरदर्द बननेवाले लोगों को अपने पाले में रखकर खुद का सिरदर्द मोल ले लिया हैं। अब भाजपा के कार्यकर्ता ही भाजपा को हराने में दिलोजां से लगे हैं।

दो चरणों में होनेवाले इस चुनाव में अगर हेमन्त सोरेन व उनकी टीम ने कोई बड़ी गलती नहीं की या अपने भाषण देने के क्रम में कोई ऐसी बातें नहीं की जो समाज में विघटन को बढ़ावा देते हैं या किसी के दिल को चूभते हो तो समझ लीजिये, बहुमत कही नहीं गया है, क्योंकि भाजपा फिलहाल हर जगह पर अपने भितरघातियों से लड़ रही हैं। उन्हें मनाने की कोशिश कर रही हैं। ये मनाने का क्रम इनका तब तक चलेगा, जब तक चुनाव संपन्न नहीं हो जाता। मतलब भाजपा का समय रुठने-मनाने में ज्यादातर लगना है और झामुमो के लिए खुली मैदान हैं। चलते जाना है और जो मन करें उस मैदान में खेल भी लेना है।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि ऐसी स्थिति तो 2019 में भी नहीं थी। जैसी स्थिति भाजपाइयों ने खुद से अपने लिए 2014 में कर ली। इसके लिए किसी को दोषी भी भाजपा नहीं ठहरा सकती। ये भाजपा का ही पाप है, जो सिर चढ़कर बोल रहा है। कल तक भाजपा का झोला ढोनेवाले पत्रकारों की टीम और अखबार भी अब कुछ बोल नहीं पा रहे। शायद उनको भी ऐहसास हो गया है कि इस बार की लड़ाई में भाजपा झारखण्ड में कहीं नहीं हैं।

इधर झामुमो के कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद है। झामुमो कार्यकर्ताओं का कहना है कि भले ही उनके पास भाजपा की तरह नेताओं की लंबी सूची नहीं हैं। लेकिन जो भी हैं। फिलहाल वे सब पर भारी तो जरुर पड़ रहे हैं, क्योंकि जनता का आशीर्वाद झामुमो के ऊपर हैं। तभी तो जिधर देखो, हेमन्त और कल्पना की सभा में जो भीड़ दिखाई पड़ रही हैं, वो भीड़ भाजपा की सभा में नहीं दिख रही।