अपनी बात

रांची लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ को लेकर हार-जीत की बात नहीं होती, यहां तो बात इस बात को लेकर हो रही है कि इस बार जीत का अंतर पूर्व की मार्जिनों से कितना बड़ा होगा

गुरुवार के दिन भाजपा प्रत्याशी के रुप में संजय सेठ ने रांची लोकसभा सीट से नामांकन पत्र दाखिल कर ही दिया। उनके इस नामांकन पत्र दाखिल करने के समय बड़ी संख्या में प्रदेशस्तरीय नेताओं के साथ-साथ उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी शामिल हुए। साथ ही शामिल वे लोग भी हुए, जिनके दिलों में संजय सेठ बसते हैं। ऐसे भी जो लोग संजय सेठ को जानते हैं। वे उनके स्वभाव को भी जानते हैं।

कट्टर भाजपाई, जब एक बार भटककर बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो से जुड़े और उसके तुरन्त बाद पुनः भाजपा में आये, तो उन्होंने बड़ी ही सहजता से बिना किसी किन्तु-परन्तु के गलती स्वीकारी और उस समय उनकी आंखों से निकली अश्रुधारा उनके भाजपा के प्रति प्रेम को बड़ी ही खुबसुरती से प्रदर्शित कर दिया कि उनके दिलों में सही में क्या है और क्या था तथा क्या रहेगा? ये अलग बात है कि जिनकी वजह से वे झाविमो में गये, आज वे ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनकर अपनी गलतियां भी सुधार रहे हैं और अपनी पार्टी झाविमो तथा उनके नेताओं को सुदृढ़ करने तथा बसाने में लगे हैं। कई तो इस बार लोकसभा का चुनाव भी लड़ रहे हैं।

अपने नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति उनकी कृतज्ञता तथा नमो नाम से चलाये गये रांची में कई अभियान भी इस बात के साक्षी रहे, कि संजय सेठ के जैसा भाजपा में खासकर रांची में फिलहाल कोई प्रत्याशी के लायक नहीं हैं। शायद यही कारण रहा कि एक धनपशु धन का खजाना नीचे से लेकर उपर तक दिखाया। लेकिन उसे रांची लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनने का सौभाग्य नहीं मिला। फिर उसने दुसरा रास्ता ढूंढने की कोशिश की और उसमें वो सफल भी रहा।

बात यहां सफलता और असफलता की भी नहीं। फिल्मों में खलनायक का रोल करनेवाला पात्र भी लोकप्रिय होता है। लेकिन नायक की वो बराबरी किसी भी हालत में नहीं कर सकता। ठीक उसी प्रकार धन का लालच देकर सभी को हर व्यक्ति आकर्षित कर सकता है। लेकिन सत्यनिष्ठ व्यक्ति को उसके धन हिला तक नहीं सकते। ये उन धनपशुओं को भी पता होता है।

रांची से संजय सेठ का प्रत्याशी के रुप में भाजपा द्वारा खड़ा करना। इस बात का भी संकेत है कि भाजपा अपने कार्यकर्ताओं का सम्मान करती है। भले ही कई जगहों पर उसकी मजबूरियां और कुछ कार्यकर्ताओं तथा प्रदेशस्तरीय नेताओं की रंगबाजी व कुकर्म के आगे केन्द्र के शीर्षस्थ नेताओं को भी झूकना पड़ जाता है। उसका सुंदर उदाहरण धनबाद की लोकसभा सीट पर ढुलू महतो जैसे लोगों का खड़ा हो जाना है।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो संजय सेठ की आम जनता पर उनकी पकड़, उनके सेवा भाव, उनकी कर्तव्यनिष्ठता, उनके विनम्र स्वभाव ही इस बात का संकेत है कि रांची में संजय सेठ का किसी से टक्कर ही नहीं। संजय सेठ सुबोध कांत सहाय को एक बार वो भी बड़ी मार्जिन से हरा चुके हैं। इस बार सुबोधकांत अपनी बेटी यशस्विनी को टिकट दिलाने में कामयाब रहे हैं। लेकिन यशस्विनी संजय सेठ के आगे कही नहीं ठहरती। यही कारण है कि आज हर कोई डंके की चोट पर कह रहा है कि इस बार का जीत का मार्जिन पूर्व के मार्जिन से भी बड़ा होगा। रांची से संजय सेठ की जीत पक्की है। बस देखना यह है कि मार्जिन का अंतर कितना होगा।