वाह री पुलिस, एनजीओ से मिल भूख से लड़ रही जिलानी को मानव तस्कर बना जेल भिजवा दिया
वह न तो मानव तस्कर है और न ही मानव तस्करी में संलिप्त किसी गुट से उसकी संलिप्तता, पर जब पुलिसकर्मियों और एनजीओ की मिलीभगत हो जाये और किसी को फंसाना ही मकसद हो जाये, तो कोई भी व्यक्ति यहां मानव तस्कर घोषित किया जा सकता है, फिलहाल ऐसी ही घटना जिलानी लुगुन, लाल सिंह मुंडा, पिंटू भुईया और नारायण भूईयां के साथ हुआ, जो मानव तस्करी के आरोप में होटवार जेल में बंद है।
कमाल इस बात की भी है, जिन्होंने इस पर केस दर्ज कराया है, जिस दिन घटना घटी, उस दिन वह घटनास्थल पर नहीं थी। पुलिस ने एक एनजीओ संस्था दीया सेवा संस्थान से जुड़ी सीता स्वांसी को बुलाया और उन्हीं के मार्फत केस दर्ज करवा दिया, जबकि ये वे लोग है, जो अपनी भूख मिटाने व अपने मरे हुए सपने को जिंदा करने के लिए दिल्ली, पंजाब जैसे शहरों में बरसों से पलायन करने को विवश है, और स्वयं को वहां विभिन्न स्थानों पर नौकरी करते हुए अपने आप को जीवित रखे हुए है।
सवाल सरकार और उच्चपदस्थ अधिकारियों से आप पलायन करनेवालों को नौकरी भी नहीं दोगे, उन्हें जीने के लिए आवश्यक संसाधन भी उपलब्ध नहीं कराओगे और जब वह जीने के लिए पलायन करेगा, तो आप उस पर झूठे मुकदमे कर के फंसाओगे, तब ऐसे हालत में यहां बड़ी संख्या में रह रहे भूखे मर रहे लोग, क्या करें? अपनी जीवन लीला इसी भूखमरी में समाप्त कर दें? क्या उन्हें अपना जीवन जीने का कोई हक नहीं? भाई, आपके लिए तो नौकरी भी है, और उपर से रिश्वत का कनेक्शन, इनके लिए तो कुछ भी नहीं, न नौकरी, न किसानी और न ही मजदूरी करने का कोई काम, ऐसे में क्या करें?
सवाल सरकार और इस घटना में शामिल उच्चस्थ पुलिस पदाधिकारियों से, आप यह बतायें…
- यह घटना 22 जून 2017 की रांची रेलवे स्टेशन की है। जब सीआइडी के एक डीएसपी, दो इंस्पेक्टर, चुटिया थानेदार, आरपीएफ और जीआरपी के इंस्पेक्टर मौजूद है, तो ऐसे में एक एनजीओ की सचिव को शिकायतकर्ता क्यों बनाया गया?
- जिन नाबालिग लड़कियों को सीआइडी ने रेस्क्यू कराया, उस वक्त एनजीओ की सचिव जब वहां नहीं थी, तब उसे किसने बुलाया और क्यों बुलाया?
- लड़कियां बालिग है या नाबालिग, इसका डिसिजन किसने किया? क्या उन लड़कियों की मेडिकल जांच करायी गई थी?
- इस कांड के अनुसंधानकर्ता द्वारा लड़कियों के माता-पिता या उनके परिजनों का बयान भौतिक रुप से न लेकर फोन पर नियम के विरुद्ध कैसे और क्यों ले लिया गया?
- आखिर सभी लड़कियों के उम्र निर्धारण के लिए मेडिकल जांच कराने और उनके दंड प्रक्रिया संहिता 164 के तहत न्यायालय में बयान दर्ज कराने में क्या आपत्ति है?
- उन लड़कियों के माता-पिता व परिजनों को भी न्यायालय में 164 के तहत बयान दर्ज क्यों नहीं करवाया जा रहा, ताकि पता चल सकें कि लड़कियां उनकी सहमति से जा रही थी या प्रलोभन दिया गया था?
- आखिर सिमडेगा के कोलेबिरा थाना के बोरोसलैया बुधराटोली निवासी जिलानी लुगून की जांच क्यों नहीं कराया जा रही, जो पिछले 2005 से गुड़गांव के सेक्टर 50 के डीरवूड 304, निर्वाण कंपनी निवासी अमिता कपूर और विपन कपूर के यहां काम कर रही थी, आखिर अमिता कपूर और विपन कपूर का बयान दर्ज कराने में विभाग को आपत्ति क्यों है?
- पीड़िता का बयान लेकर, कि वह पूर्व में कहां-कहां काम कर चुकी है, उन लोगों का बयान दर्ज क्यों नहीं कराया जा रहा, ताकि उसे न्याय मिल सकें।
- सीआइडी में कार्यरत पुलिस पदाधिकारी ये बताये कि, वे कानून के अनुसार चलेंगे या अपने मनोनुकूल निर्णय लेकर किसी को भी फंसा देंगे, चाहे कोई अपनी पेट की भूख मिटाने के लिए ही, रांची से दूसरे जगहों पर जाने का ही क्यों न निर्णय ले लिया हो।
- जब ग्राम सभा बैठक कर ये निर्णय लेती है कि जिलानी लुगून बेकसूर है, वह किसी भी गलत कार्य में संलिप्त नहीं है, ऐसे में ग्राम सभा की बातों को भी नकार कर, जिलानी लुगून को दो माह से जेल में बंद रखना और उसे अभी तक जेल से मुक्त नहीं करना क्या यह नहीं दर्शाता है, कि यहां कानून का शासन नहीं है?
इसी बीच खुशी इस बात की है कि इस मुद्दे को रेल आइजी सुमन गुप्ता स्वयं देखना प्रारंभ कर दी है, जिससे लोगों में विश्वास जगा है कि जिलानी लुगून और उनके साथियों को जल्द न्याय मिलेगा और वह जेल से मुक्त होकर पुनः अपने जीवन को बेहतर स्थिति में ले आयेगी। रेल आइजी सुमन गुप्ता ने स्वयं भी बहुत सवाल उठाये है, और उसकी जांच करा रही है, जिससे इस घटना में शामिल बहुत सारे लोगों के हाथ-पांव फूलने शुरु हो गये है, जिसकी वजह से वे अब बचने की तरकीब भी ढूंढ रहे हैं, पर हमें नहीं लगता कि वे बच पायेंगे। निराशा की धूंध में आशा की किरण बनी सुमन गुप्ता, ऐसे लोगों के लिए काल बनी हुई है, आशा की जानी चाहिए कि भूख से जंग लड़ रही जिलानी लुगून और इसी कांड में बंद अन्य लोगों को जल्द न्याय मिल जायेगा और वे मुक्त आकाश में सांस ले पायेंगे।