ये हैं झारखण्ड के तथाकथित बड़े पत्रकार, जिनकी नजरों में छोटे पत्रकारों की कोई अहमियत नहीं
जो मैंने 17 सितम्बर को बीएनआर होटल में फेसबुक लाइभ के दौरान कहा था, आज वहीं देखने को मिला। एक – दो अखबारों को छोड़कर, रांची से प्रकाशित सभी अखबारों ने चैंबर ऑफ कामर्स और सत्ता में बैठे मठाधीशों के तलवे चाटे हैं। चैंबर ऑफ कामर्स के समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित कर उसकी स्तुति गाई हैं और उन छोटे-छोटे पत्रकारों के इज्जत के साथ खेल गये, जिनकी इज्जत से वे बराबर खेलते रहे हैं।
हिन्दुस्तान अखबार ने इस चैंबर ऑफ कामर्स के समाचार से स्वयं को किनारा कर लिया है। दैनिक जागरण ने चैंबर ऑफ कामर्स के इस समाचार को प्रकाशित किया है, पर जो बीएनआर होटल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और झारखण्ड के राजा रघुवर दास के समक्ष छोटे पत्रकारों के इज्जत के साथ खिलवाड़ किया गया, उस समाचार को भी प्रमुखता से छापा है। हम हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण के इस कार्य की सराहना और प्रशंसा करते हैं।
दूसरी ओर प्रभात खबर और दैनिक भास्कर ने अपने स्वभावानुसार चैंबर ऑफ कामर्स के इस कार्यक्रम को प्रमुखता से प्रकाशित किया, स्तुति गाई, पर छोटे पत्रकारों के साथ जो दुर्व्यवहार हुआ, उस समाचार को प्रकाशित करना, इसने जरुरी नहीं समझा, क्योंकि इनकी नजरों में अखबार के प्रधान संपादक, कार्यकारी संपादक, कारपोरेट संपादक, स्थानीय संपादक की ही इज्जत होती है, बाकी इनके संस्थान में काम करनेवालों की इज्जत दो कौड़ी की होती है, इसलिए इन लोगों ने इस समाचार से दूरियां बना ली।
आश्चर्य इस बात की भी है, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और झारखण्ड के राजा रघुवर दास के इस कार्यक्रम का, जब सारे पत्रकार बहिष्कार कर रहे थे, तब जो चैनल जो हर पल ब्रेकिंग न्यूज का फ्लैश करने का ढोंग करते है, वे भी इस समाचार से दूरी बना चुके थे, क्योंकि इन चैनलों और अखबारों को राज्य सरकार के विज्ञापन से वंचित होने का डर सता रहा था। हम जानते है कि राज्य से प्रकाशित या संचालित सारे अखबार और चैनल, पूंजीपतियों के हैं और ये पूंजीपतियों के इशारे पर ही नृत्य करते हैं, इसलिए छोटे पत्रकारों की औकात और इज्जत का बैंड तो बजना ही था।
जरा देखिये रांची प्रेस क्लब से जूड़े महान आत्माओं को, उन्हें मुख्यमंत्री से मिलने का समय है, पर छोटे पत्रकारों के इज्जत के साथ जो खिलवाड़ हुआ, उस पर एक बयान देने को भी फूर्सत नहीं हैं। कलम – कलम बढाने वाले से लेकर भारत रत्न की आकांक्षा रखनेवाले पत्रकारों का समूह, प्रधान संपादकों से लेकर स्थानीय संपादकों का समूह, इस घटना पर अब तक मुंह नहीं खोला।
आश्चर्य इस बात की भी है, कि अपने पॉकेट में लेकर चलनेवाले पत्रकारों के नाम पर बनी कई संस्थाओं के स्वयंभू अध्यक्षों ने भी इस समाचार से स्वयं को दूरी बना ली। जरा आप स्वयं बताइये, जिन लोगो की औकात नहीं, कि वे पत्रकारों के सम्मान की रक्षा पर दो टूक कह सकें, वे हमारी रक्षा क्या करेंगे?
छोटे पत्रकारों को चाहिए कि वे अपनी सम्मान की रक्षा के लिए ऐसे लोगों तथा ऐसी संस्थाओं, जिसमें सत्ता के दलाल पत्रकार शामिल होते हो, उससे दूरियां बनायें, नहीं तो वे जिंदगी भर ऐसे लोगों से लतियाये जायेंगे और ये इनके लतियाने का सौदेबाजी कर, स्वयं को आर्थिक रुप से संपन्न करते रहेंगे, फैसला का वक्त है, वे स्वयं निर्णय करें।
छोटे पत्रकारों का दर्द लिखने के लिए आभार,,सर जी ये चमचे बड़े पत्रकार कब से हो गए..न नैतिकता न नितिन नियम न निष्ठा नीयत भी भ्रस्ट है,इन्हें चाटुकार कहा जाए तो बेहतर है..रही बात ये नेता टाइप बनने की कोशिश में लगे मूंछ्ढोंगि नमूनों को तो उनकी औकात किसी से छिपी नहीं,ये तो गनीमत है ,और प्रकिर्तिक न्याय जो कम से कम सोसल मीडिया सत्य को जिन्दा रखे है और आप लॉईव कर के कुछ बताये अन्यथा तो ई लोग तो कबकब से सत्य को बनावटी और बीके शब्दों से ढँक चुके है, कम से कम अबभी
संघर्षरत पत्रकारों होश से काम लो,,डर और लालच से नहीं
‘पूरा सच’ अखबार को आज हम सब जानते हैं। यह भी एक छोटा सा अखबार है, लेकिन आज हम सब जानते हैं, यह सब बाबा ‘राम रहीम’ की कृपा है।
ऐसे ही ‘अपनी सरकार’ की कृपा हो जाय तो यहां का भी कोई ‘छोटा पत्रकार’ या ‘छोटा मीडिया’ को सब जान सकेंगे। सरकार भी अपना करम करते रहे और छोटे पत्रकार और छोटे मीडिया अपना कर्तव्य ईमानदारी से करता रहे, फिर तो दूध का दूध और पानी का पानी होने से कोई नहीं रोक सकता। पत्रकारों और आम जन की आवाज को बुलंद करने के लिए तथाकथित मीडिया घरानों से बढ़कर सोशल मीडिया और ब्लॉग बेहतर ‘मंच’ बन रहे हैं। ऐसे ही vidrohi24.com और newspills.com है जो, इंटरनेट और सोशल मीडिया में अपनी बेबाक बात रखता है और लोगों की आवाज बनने का नया जरिया बन रहा है।