ये एक दूसरे को नीचा दिखाने का समय नहीं नेताओं और बेवजह चिल्लानेवालों नामुरादों, अपने पत्रकार मित्रों की सुध लो
भाई मैं बार-बार कह रहा हूं, यह समय राजनीति करने का नहीं है। यह समय एक दूसरे को नीचा दिखाने का नहीं है। यह समय हर प्रकार की बुराइयों से उपर उठकर मानवता की सेवा करने का है। आप किसे नीचा दिखा रहे हैं, आप किस मुंह से खुद को सर्वश्रेष्ठ कह रहे हैं। जहां आपके शासन हैं, वहां भी बुरा हाल है, नहीं तो जाकर मध्यप्रदेश, बिहार व उत्तरप्रदेश घुम आइये। अगर सिस्टम झारखण्ड में फेल है, तो आपके शासित राज्यों में सिस्टम कोई दूसरा नहीं हैं।
कोरोना ने किसी को नहीं छोड़ा हैं और इसकी भी गारंटी नहीं कि आगे क्या होगा? आज मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी के पुत्र का निधन हो गया, क्या आपको इसके बारे में जानकारी नहीं। डाटा देखिये कई नेताओं के घर में ही नहीं, जिस हास्पिटल में डाक्टर सभी का इलाज करते थे, उस अस्पताल में वहीं के डाक्टर के पीड़ित पारिवारिक सदस्यों को एडमिशन नहीं मिल रहे, बेड और ऑक्सीजन की तो बात ही दूर है, यह दिल्ली की घटना है।
जो महाराष्ट्र व गुजरात स्वयं को बहुत भाग्यशाली मान रहे थे, वहां की दुर्दशा जगजाहिर है, और इससे भी बड़ी बात दीपक प्रकाश जी, दुनिया का सर्वशक्तिमान देश अमरीका, सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करानेवाला देश इटली भी इस कोरोना संक्रमण से स्वयं को उबार नहीं पाया, इसलिए अभी किसी में दोष ढूंढने का समय नहीं, केवल सेवा भाव से जितना बन पड़े, सेवा में जुट जाइये, पता नहीं आगे क्या होगा?
ठीक उसी प्रकार झामुमो को मैं कहूंगा कि अगर कोई भाजपाई इस समय उनकी सरकार का पांव खींच रहा हैं, या भाषणबाजी कर रहा हैं, तो उस पर ध्यान न दें, अपना काम करें, क्योंकि इसका निर्णय भविष्य करेगा, कि कोरोनाकाल में किस दल ने क्या किया? अगर आप यह समय भाजपाइयों का जवाब देने में लगायेंगे तो निःसंदेह यह महापाप होगा।
कुछ दिन पहले जब राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कोरोना को लेकर सर्वदलीय बैठक बुलाई तो लगा कि कोरोना के इस संक्रमण को लेकर अब राजनीति नहीं होगी, सभी मिलकर जनता को बेहतर सुविधा मिलें, इसके लिए ये प्रयास करेंगे, पर यहां तो हो कुछ और रहा हैं। इससे अच्छे तो वे युवा है, जो बिना किसी राजनीति के सेवा भाव में लगे हैं, इसमे हर राजनीतिक दल के युवा शामिल है, जो खुलकर सेवा कर रहे हैं, कोई आक्सीजन सिलिण्डर उपलब्ध करा रहा है, तो कोई पीड़ितों को भोजन के पैकेट पहुंचा रहा है, कोई एंबुलेंस की व्यवस्था कर रहा है, जरुरत भी इसी की है।
एक और बात मैं यहां देख रहा हूं कि किसी भी बात को लेकर चिल्लाने की जो आदत दिल्ली-मुंबई में बैठे एंकरों को होती थी, वहीं आदत रांची में इक्के-दुक्के फेसबुकिया संवाददाताओं को हो गई है, औकात तो हैं नहीं, पर प्रधानमंत्री की दाढ़ी तक पर सवाल उठा रहे हैं, वो भी चिल्लाकर, चिल्लाहट भी ऐसी की आप खुद झुंझला उठे, क्रांति तक लिखना नहीं आता, पर क्रांतिवीर बने बैठे हैं, जबकि इसी रांची में कई पत्रकारों को देख रहा हूं कि पूरे परिवार के साथ कोरोना संक्रमित है, भगवान ऐसे पत्रकारों को बचाएं, जो कोरोना से संक्रमित है।
कई शहरों से तो अब पत्रकारों के मरने की भी खबर आने लगी है, जिसमें जामताड़ा व हजारीबाग शामिल है। दुख होता है कि जिन पत्रकारों के बिना समाचार के दर्शन तक नहीं होते, सुबह की चाय तक नसीब नहीं होती, आज वे इस कोरोना संक्रमण में, खुद को आइसोलेट किये हुए हैं।
मैं तो उन चिल्लानेवाले बहादुर कथित पत्रकारों को भी कहुंगा कि थोड़ा अभी सरकार बहादुर पर जो फिदा है, उस फिदा होने की अदा का त्याग कर, अपने उन पत्रकार मित्रों की भी सुध लें, जो फिलहाल कोरोना संक्रमित है या जिनके परिवार के सदस्य कोरोना से दम तोड़ चुके हैं, आखिर आपका फेसबुकिया यंत्र कब काम आयेगा, सुनने में तो आया है कि आपकी बात सीधे सत्ता के गलियारों तक जाती है, तो जरा उन तक पहुंचाइये कि पत्रकारों की भी सुध लें।
उन पत्रकारों को आर्थिक सहायता भी पहुंचाये, ताकि आनेवाले समय में ये पत्रकार कह सकें कि एक समय ऐसा भी आया कि लोग उनकी सुध लिये। पिछले साल तो पत्रकारों पर दया करने के लिए बहुत बड़े-बड़े लोग आ गये थे, पर आज तो नदारद दिख रहें। नदारद रहने के कारण को मैं समझता हूं, कोरोना जो न कराएं, ऐसे भी कहा जाता है कि किसी के यहां बारात आनेवाली हो, और बारात ले जानेवाले एक सौ की जगह एक हजार की संख्या में पहुंच जाये, तो जिसके यहां बारात आई है, उसकी तो हालत खराब हो ही जायेगी, ठीक उसी प्रकार कोरोना ने कर दिखाया है।
अगर रोज हजारों की संख्या में कोरोना पोजिटिव लोग आने लगेंगे, तो स्थितियां बिगड़ेंगी ही, लेकिन जब सभी लोग मिलकर आई समस्या को हाथो-हाथ लेंगे तो कोरोना की भी मौत हो जायेगी, ये बात लोग क्यों नहीं समझते। इसलिए राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गलत कहने का यह समय नहीं हैं, वे अपने ढंग से जो कर रहे हैं, करेंगे ही, हम भी थोड़ा करें, अगर हैसियत नहीं, तो बिना मतलब का बोलना बंद कर दें, ये तो कर ही सकते हैं, घर में रहे, अपने परिवार को हंसाते-बोलाते रहे, क्योंकि आज के समय में इन्हें हंसाना-बुलाना भी कम बात नहीं, क्योंकि कोरोना ने तो सब को डरा रखा हैं, और ये काम डराने का किसने किया हैं, आप सभी जानते हैं।