अपनी बात

यह है अपने देश का बेशर्म विपक्ष, गरीब पत्रकारों को लेकर संसद ठप नहीं करता, लेकिन अखबारों के मालिकों पर जब डंडे चलते हैं तो ये आसमां सर पर उठा लेते हैं

यह हम या जनता नहीं बोल रही, ये दैनिक भास्कर बोल रहा हैं, क्योंकि उसे ये बोलने पर मजबूर किया है। भारत सरकार के आयकर विभाग ने। जो इसके अखबारों के कार्यालयों में आज छापेमारी की है। आखिर दैनिक भास्कर बोल क्या रहा है, उसके यहां काम करनेवाले लाखों-करोड़ों के पैकेजों पर खेलने वाले बोल क्या रहे हैं, ध्यान से पढ़िये/सुनिये –

“मैं स्वतंत्र हूं, क्योंकि मैं भास्कर हूं – भास्कर में चलेगी पाठकों की मर्जी,” मतलब जब जैसी तब वैसी मर्जी चलानेवाला, आज पाठकों की मर्जी की बात कर रहा है। यही अखबार जब रांची में पहली बार दस्तक दे रहा था, तब उसने लिखा था, अब घर में आपकी बीवी की नहीं, आपकी चलेगी मर्जी। शायद दैनिक भास्कर वाले भूल गये होंगे, इस विज्ञापन को और भूल गये होंगे वे लोग, जो आज रांची के दैनिक भास्कर कार्यालय में कार्य कर रहे है।

ये वही लोग हैं, जो येन केन प्रकारेण, रांची से प्रकाशित प्रभात खबर जो रांची का एक नंबर अखबार था और आज भी हैं, उसकी खटिया खड़ी करने के लिए हर प्रकार का प्रयास कर रहे थे, वहां काम करनेवाले पत्रकारों को खरीदने के लिए दुकाने सजा रखी थी। आज राज्यसभा के उपसभापति का पद संभाल रहे, हरिवंश को उस समय की बात जरुर याद होगी, समस्याएं जरुर याद होगी।

ये अलग बात है कि आज हरिवंश, दैनिक भास्कर के आंखों के तारे हैं, उनकी आर्टिकल आजकल खुब दैनिक भास्कर में छप रही हैं और दोनों एक दूसरे से लाभान्वित है। लाभान्वित का मतलब आर्थिक ही नहीं होता, इमेज चमकाना भी होता है। दैनिक भास्कर में छप जाना और उप सभापति का दैनिक भास्कर में आर्टिकल होना कोई सामान्य बात नहीं, दोनों सहजीविता का फायदा उठा रहे हैं।

आज दैनिक भास्कर बता रहा है कि उसके यहां आइटी का छापा इसलिए पड़ रहा है, क्योंकि उसने कोरोना काल में सच्ची खबरें दिखाई। हो सकता है कि दैनिक भास्कर ने खबरे सही दिखाई हो, पर इसका मतलब ये भी नहीं कि दैनिक भास्कर शत प्रतिशत शुद्ध गिर गाय के दूध से स्नान कर हमेशा सच बोलता है। सच्चाई यह है कि इसी कोरोना काल में इस अखबार ने मानवीय मूल्यों को तार-तार कर रख दिया था।

आज से ठीक तीन महीने पहले यानी 25 अप्रैल को इस अखबार ने इंदौर, रांची समेत कई अखबारों में एक विज्ञापन छापा और कोरोना से हो रही मौत को अपनी कमाई के अवसर में बदल दिया। इसने विज्ञापन दिया और छापा “इस कठिन वक्त में हम आपके साथ है, दैनिक भास्कर में शोक संदेश व श्रद्धांजलि अब घर बैठे एक क्लिक या कॉल पर बुक करें, ऑन लाइन एड बुकिंग पर दस प्रतिशत की छूट भी दी जा रही है।” ये विज्ञापन बता रहा था कि भास्कर की सोच कितनी घटिया है। मौत पर व्यवसाय करना अगर किसी को सीखना है तो वो भास्कर से सीखें।

आज से दो महीने पूर्व लगभग 13 मई को दैनिक भास्कर ने रांची में मृत पत्रकारों के नामों की सूची जारी की, पर उसने ये नहीं बताया कि ये दिवंगत पत्रकार किस संस्थान से जुड़े थे, आखिर क्यों भाई? तुम तो क्रांतिकारी अखबार हो, बता देते कि फलां पत्रकार इस संस्थान में काम करता है, तो तुम्हारा क्या चला जाता? दरअसल तुम्हें सरकार को गाली देने में खूब मन लगता है, सरकार को चिढ़ाने में खुब मन लगता है, सरकार से जब तुम्हें मुंहमांगी मनौती नहीं मिलती हैं तो खुब उसका क्लास लेने का मन करता है और जैसे ही तुम्हारी सारी मनोकामना पूरी हो जाती है, तुम चुप हो जाते हो।

तुम कहते हो, भास्कर में चलेगी पाठकों की मर्जी? ये वाक्य ही अपने आप में हास्यास्पद है। मैं कहता हूं कि लोगों को भास्कर से दूरियां बनाए रखना चाहिए, नहीं तो आप लोगों का इतिहास-भूगोल व संस्कृत-संस्कृति सभी मिटाकर ये रख देंगे। इसी वर्ष 21 अप्रैल को रामनवमी थी और तुम्हारा अखबार बता दिया कि ऋष्यमूक पर्वत गुमला में हैं, अब आप बताओ कि किसने कह दिया कि ऋष्यमूक पर्वत झारखण्ड के गुमला में हैं।

इसी प्रकार भगवान बिरसा का 9 जून को पुण्यतिथि था, और तुम्हारा अखबार लिख दिया कि बिरसा के वंशज दबे-कुचले हैं, भाई जिसके सारे भाई सरकारी नौकरी में हो, परिवार को लाल कार्ड मिला हो, तीन-तीन कमरों का घर मिला हुआ हो, पिता को वृद्धावस्था पेंशन मिलता हो, वो भला दबा-कुचला कैसे हो गया?

और जब भगवान बिरसा ने शादी ही नहीं की थी, उनकी पत्नी ही नहीं थी, तो उनके वंशज कहां से आ गये? मतलब जो मन करें, वो तुम करो, सरकार की अपनी झूठी बातों से जनता के सामने निर्लज्जता के साथ आलोचना करों और फिर भी कोई तुम्हें कुछ भी न कहें। हर चीज का बहाना बनाकर तुम झूठ को सत्य कहने में लगे हो।

ऐसे तो मेरे पास कई प्रमाण है, हम सिद्ध कर देंगे कि आपकी मर्जी कभी नहीं चलनी चाहिए। आप ये बताइये कि 4 जुलाई को आपही के रांची से प्रकाशित अखबार में दो विज्ञापन छपे, वो विज्ञापन व्यक्ति विशेष की आरती उतारने के लिए दिये गये थे, आपने उस विज्ञापन पर क्यों नहीं लिखा कि यह विज्ञापन है या आपने ऐसे वाक्यों/शब्दों का प्रयोग क्यों नहीं किया जिससे ये पता चले कि ये समाचार न होकर, विज्ञापन है।

4 जुलाई 2021 को रांची के दैनिक भास्कर में छपा ये विज्ञापन, जिसमें कही नहीं लिखा है कि ये विज्ञापन है या समाचार , पर सच्चाई यही है कि ये शुद्ध शत प्रतिशत विज्ञापन है।

सच्चाई तो यह है कि जहां ऐसे-ऐसे विज्ञापन छपते हो, और सरकार तथा जनता की आंखों में धूल झोंकने की कवायद किये जाते हो, वहां तो इन्कम टैक्स का छापा पड़ना ही चाहिए। हम तो अभिनन्दन करेंगे, मोदी सरकार का जिसने ऐसी शुरुआत की। हर अखबार व चैनल के यहां आईटी के छापे पड़ने चाहिए, क्योंकि राज्य सरकार अब ताली बजाने की काम ले ली है, ऐसे में इनकी गलतियों पर पर्दा डालने के बजाय, जनता को सामने इनकी हरकतों को उजागर करना चाहिए कि इनकी मंशा क्या है?

4 जुलाई 2021 को रांची के दैनिक भास्कर में छपा ये दुसरा विज्ञापन, जिसमें कही नहीं लिखा है कि ये विज्ञापन है या समाचार , पर सच्चाई यही है कि ये शुद्ध शत प्रतिशत विज्ञापन है।

दरअसल ये अखबार, महात्मा गांधी, पं. नेहरु, अम्बेडकर,  माखन लाल चतुर्वेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी नहीं निकाल रहे, ये शत प्रतिशत व्यवसायी निकाल रहे हैं, इनका मकसद है, सरकार को ब्लैकमेलिंग करना, जनता को ठगना, और इसकी आड़ में अपनी दुकानदारी को सही दिशा देना। मैंने देखा इसी रांची में एक अखबार में काम करनेवाला एक बड़ा व्यापारी, अपने संपादक को आगे कर, मुख्यमंत्री के हाथों कुंदरुकोचा में सोने का खान पर कब्जा कर लिया। जिस देश में अखबार मसाले बांटने का काम करते हो।

जिस देश में कुपन बांटकर अखबार पढ़ाये जाते हो, जहां औरतों को निम्न श्रेणी में रखा जाता हो, जहां अखबारों में काम करनेवाले छोटे-मझौलों पत्रकारों को जब चाहे तब बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता हो। अरे उनके मरने पर ये भी नहीं बताया जाता हो कि वे किस अखबार में काम करते थे, ऐसे में इन अखबारों के मालिकों पर जब सरकार तलवारे लटकाती हैं तो हमारे जैसे छोटे पत्रकार, आर्थिक रुप से तंगहाल पत्रकार, इन विपक्षी दलों के झूठी राजनीति के शिकार क्यों हो?

ये कांग्रेस ये विपक्षी दल जो अभी दैनिक भास्कर के पक्ष में हंगामा खड़ा कर रहे हैं, दरअसल ये विशुद्ध राजनीति कर रहे हैं, ताकि अखबारों के मालिकों से उनका संबंध बेहतर हो, क्योंकि आज तक मैंने किसी राहुल गांधी या वृंदा करात या खुद पत्रकार से राजनेता बने हरिवंश को छोटे-मझौले पत्रकारों के लिए रोते नहीं देखा, सदन में आवाज उठाते नहीं देखा।

पूछिए कांग्रेसियों/वामपंथियों/अन्य राजनीतिक दलों से कि क्या इन अखबारों में प्रतिदिन जिल्लत की जिंदगी जी रहे पत्रकारों के लिए संसद कभी ठप किया और अगर नहीं तो फिर आईटी ने जो काम किया है, उसे करने दो, तुम्हारा क्या जाता है? कम से कम पता तो चले कि इन अखबारों ने कोरोना में अपने लिए कितने अवसर पैदा किये। उदाहरण अगर चाहिए तो विद्रोही24 पढ़िये और पढ़ाइये।