सीएमओ के वे घटिया सलाहकार, झूठे केस में फंसानेवाले धुर्वा थाना व झारखण्ड पुलिस के अधिकारियों के समूह, अखबारों व उनके पत्रकारों की घटिया सोच व एक प्रतिबद्ध पत्रकार की व्यथा – एक
20 मई 2017 संध्याकाल का समय था। झारखण्ड भाजपा के एक बड़े नेता जो प्रदेश में महत्वपूर्ण पद संभाल चुके हैं, का मेरे व्हाट्सएप्प पर एक फोटो सहित कुछ मैसेज आया। मैंने उस फोटो को सामान्य तरीके से देखा और अपनी ओर से कुछ बातें तथा उक्त फोटो को सोशल साइट फेसबुक पर लिख व चिपका डाली। जो शब्द थे, वो ये थे –
‘भाई वाह… मुख्यमंत्री रघुवर दास तो सचमुच भगवान राम हो गये। अभी-अभी एक भाजपा नेता ने मुझे यह तस्वीर भेजी है। किसी किसी को ये तस्वीर हास्यास्पद, तो किसी-किसी को इससे नाराजगी भी होगी, पर ये मत भूलिये कार्यकर्ता तो कार्यकर्ता होता है, उसे अपने नेता में गजब का हीरो दिखाई देता है, वह कल्पना में डूबा होता है, उसे अपने नेता में कभी राम तो कभी कृष्ण दिखाई देता है, चाहे उसका नेता खुद को हनुमान से ही क्यों न जोड़ता हो (उस वक्त तत्कालीन झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास खुद को रघुवर का दास हनुमान कह कर संबोधित किया करते थे)।
कमेन्ट्स देनेवाले ध्यान देंगे, कभी राजद कार्यकर्ताओं का समूह लालू प्रसाद यादव को कृष्ण के रूप में दिखा चुका है, इसलिए रघुवर दास जो स्वयं को हनुमान कहते आये हैं, उन्हें उनके कार्यकर्ताओं ने राम के रुप में प्रकट कर दिया तो इसमें आश्चर्य करने की कोई बात नहीं, चूंकि कार्यकर्ता तो कार्यकर्ता होता है, उस पर नेता की भी नहीं चलती, फिलहाल झारखण्ड के मुख्यमंत्री को रघुवर दास के रूप में देखिये और आनन्द लीजिये… ’
जैसे ही मैंने फोटो सहित ये वाक्यांश फेसबुक पर डालें। स्वाभावानुसार कई कमेंट्स आने लगे। कमेंन्ट्स की स्थितियों को देख हमने जल्द ही उस पोस्ट को डिलीट कर दिया। लेकिन तब तक जिन्हें इस पोस्ट का बाल का खाल निकालना था। हमें सबक सिखानी थी। उन समूहों ने अपना काम कर डाला था। मतलब उनके द्वारा फेसबुक के स्क्रीन शॉट्स लिये जा चुके थे और एक छोटे स्तर का भाजपा का नेता अजीत साहू नामक व्यक्ति को आगे कर धुर्वा थाना में शिकायत दर्ज करा दिया। याद रखिये, जो चालाक राजनीतिज्ञ या राजनीतिबाज होते हैं।
वे खुद इनवॉल्व नहीं होते। वे उन्हें आगे करते है, जिनके बाद में फंसने या न फंसने पर उनके उपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। चूंकि मामला मुख्यमंत्री से संबंधित था। मामला भाजपा से संबंधित था। सरकार भी भाजपा की थी। इसलिए इस शिकायत को प्राथमिकी में कनवर्ट होते देर नहीं लगी। धुर्वा थाना में केस संख्या 122/2017, आईटी की धारा 66 (1) के तहत प्राथमिकी दर्ज कर ली गई। पता नहीं ये धारा आईटी एक्ट में है भी या नहीं, भगवान जानें।
जैसे ही प्राथमिकी 20 मई 2017 को दर्ज कर ली गई। सीएमओ में सलाहकार के पद पर बैठे लोग सक्रिय हो उठे। वे पत्रकार कृष्ण बिहारी मिश्र को हर प्रकार से हानि पहुंचाने के लिए सक्रिय हो उठे। सक्रिय पत्रकार व पत्रकारिता जगत में वे लोग भी हो उठे, जिन्हें कृष्ण बिहारी मिश्र फूंटी आंख भी नहीं सुहाता था। सबसे पहले सीएमओ से रांची के बड़े-बड़े प्रतिष्ठित अखबारों को फोन गया, और उन्हें बताया गया कि कृष्ण बिहारी मिश्र के खिलाफ धुर्वा थाना में केस हुआ है। जैसे ही रांची के तथाकथित हिन्दी अखबारों को इसकी सूचना मिली।
उनमें हिन्दुस्तान को छोड़कर दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर व प्रभात खबर ने क्रमानुसार कृष्ण बिहारी मिश्र की प्रतिष्ठा के साथ खेलने में रुचि दिखाई। इन अखबारों ने कृष्ण बिहारी मिश्र को पत्रकार तक मानने से इनकार किया। एक अखबार दैनिक जागरण जिस अखबार का झारखण्ड में पहला पत्रकार ही कृष्ण बिहारी मिश्र था, उस अखबार ने कृष्ण बिहारी मिश्र के आगे एक शख्स शब्द का प्रयोग किया। मतलब पहली बार में ही प्रतिष्ठा से खेलने का प्रयास किया। हां, दाद दूंगा, हिन्दुस्तान अखबार को जिसने मेरे नाम के साथ पत्रकार शब्द का प्रयोग किया तथा उसमें वरीय शब्द भी लगाये। ये सारे अखबार मैं आज भी अपने पास रखा हूं, कोई भी आकर देख सकता है।
दूसरी घटना भी सीएमओ से यह हुई कि जब मैं रांची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार संस्थान में क्लास लेने पहुंचा तो मुझे दूसरे दिन ही कह दिया गया कि आपको कल से यहां नहीं आना है। मैं जानता था कि ऐसा होगा। मैंने कुछ नहीं कहा। चुपचाप निदेशक की बातों को शिरोधार्य कर अपने घर आकर बैठ गया। इधर आय के साधन बंद हो चुके थे। घर के किराये व अपने सपनों को आगे ले चलने पर आफत थी। लोग मजाक उड़ाते थे। कहते थे – चले थे क्रांतिकारी बनने, अब जेल जाने को भी तैयार रहिये। रघुवरवा और उसके लोग नहीं छोड़ेगा।
इधर रांची पुलिस हमें जेल भेजने के लिए सक्रिय थी। शायद उन पर भी सीएमओ को दबाव था। मैं उन दिनों कई भाजपा नेताओं से मिला था। संजय सेठ, तत्कालीन मंत्री सीपी सिंह आदि कई भाजपा के बड़े नेता हमें सहयोग करने में असहाय थे। जबकि वे सभी जानते थे कि मैं निर्दोष हूं। धीरे-धीरे तनाव में मैं आ रहा था। लेकिन मुझे अपने गुरु परमहंस योगानन्द जी पर पूरा भरोसा था। जो हमें 2016 में आसन्न मौत से बचा सकते हैं। वो हमें कौन ऐसी विपदा हैं, जिससे नहीं बचा सकते।
इधर पुलिस के बड़े-बड़े पदाधिकारियों का दल भी मुझे जेल भेजने में ज्यादा सक्रिय था। सबकी कथनी एक ही थी। उपर से यानी सीएमओ से दबाव है। उसी समय एक पुराने भाजपा नेता ने एक बात हमसे कही थी कि आपको गिरफ्तार करने की योजना बन रही है। लेकिन मैंने अपने मित्र पुलिस पदाधिकारी को कह डाला है कि अगर आपने कृष्ण बिहारी मिश्र को छूआ भी तो उसका पाप आपको नष्ट कर डालेगा, क्योंकि वो जिस विचारधारा के व्यक्ति हैं, वो वर्तमान में कोई हैं ही नहीं।
इसी बीच मैं रांची के अशोक नगर स्थित एक अधिवक्ता जो जेएससीए से भी जुड़े थे, उनसे अपने केस के संबंध में मिला। उन्होंने कहा कि ये तो कोई केस ही नहीं हैं। अदालत में ये मामला टिक नहीं पायेगा। आप निश्चिंत रहिये। मैं हूं ना। कह दिया। मैं भी उनके कहने पर निंश्चित हो गया। अचानक पता 2019 में पता चला कि हमारे खिलाफ वारंट जारी है।
इसी बीच केस दर्ज होने के बाद से लेकर जब भी धुर्वा थाना प्रभारी तालकेश्वर राम से हमारी बात हुई। उसके स्वभाव से हमें यह पता लगाने में तनिक मुश्किल नहीं हुई कि वो मेरे मामले में हमेशा संदिग्ध था। वो सत्य को प्रतिष्ठित नहीं करना चाहता था। वो उस बातों को तरजीह दे रहा था, जो सीएमओ से या उसके वे पुलिस अधिकारी दिशा-निर्देश दे रहे थे, जो चाहते थे कि मैं जेल भेज दिया जाऊं।
तभी एक दिन घटना घटी। तत्कालीन एसएसपी कुलदीप द्विवेदी का मेरे मोबाइल पर फोन आया। गरमागरम बहस हुई। फोन पर ही उन्होंने कार्यालय में बुलाया। कार्यालय में जब बात हुई। तब उन्होंने सत्य को स्वीकार किया कि गलतियां हुई है और तत्कालीन थाना प्रभारी को दिशा-निर्देश दिये। कि वो सत्य को प्रतिष्ठित करें।
लेकिन तत्कालीन धुर्वा थाना प्रभारी तालकेश्वर राम ने रांची एसएसपी कुलदीप द्विवेदी की बात नहीं मानी। एक दिन जब रांची एसएसपी का तबादला हुआ। उसी तबादले के दिन मैं उस वक्त के डीएसपी हटिया से मैं मिलने उनके कार्यालय पहुंचा। डीएसपी हटिया ने हमें कोई सम्मान नहीं दिया। वो मेरे साथ ऐसा बिहैभ किया कि जैसे मैं अपराधी हूं। उसके इस स्वभाव को देख, मैंने उसी वक्त उसे कहा कि मैं इस सारे प्रकरणों को न्यायालय में देखूंगा। आपको जो करना हैं, करिये।
इधर हमारी स्थिति को देख, सीएमओ के अधिकारियों का समूह, कनफूकवों का दल, पुलिस अधिकारियों का समूह तथा वे पत्रकार जिसे हम फूंटी आंखों नहीं समाते थे। वे बड़े खुश थे। इतने खुश की उनके पांव जमीन पर नहीं थे। मैं समझ नहीं रहा था कि मैं क्या करुं। इधर अशोक नगर वाले अधिवक्ता भी हमें सहयोग नहीं किये और उधऱ नन-वेलेबल वारंट हमारे घर पर पहुंचने का इंतजार कर रहा था। तभी किसी ने कहा कि मैं जमानत ले लूं। नहीं तो दिक्कत होगी। कोई कहता कि आपको जमानत मिलेगी भी नहीं, क्योंकि नन वेलेबल वारंट जारी है।
इसी बीच सबसे पहले मुझे एक अधिवक्ता की जरुरत थी कि वो अधिवक्ता किसे रखूं? सबसे पहली बात मेरे पास पैसे नहीं थे कि मैं भारी भरकम अधिवक्ता रख सकूं। दूसरी बात आजकल की अधिवक्ता की स्थिति भी बहुत खराब थी, कौन आपको गफलत में डाल दें, कहा भी नहीं जा सकता। प्रख्यात पत्रकार गुंजन सिन्हा के साथ एक अधिवक्ता ने ऐसा ही किया था। इसलिए मैं ऐसे अधिवक्ता की तलाश में था, जो न्यू ब्रांड हो। कभी कोई केस ही नहीं लड़ा हो। ईमानदार हो। जिसे कोई खरीद नहीं सकें, यानी वो बिकाउ नहीं हो। उसी समय हमारी मुलाकात संत सदृश जीवन जीनेवाले राजेश कृष्ण की पत्नी पूजा मिश्रा जो झारखण्ड हाई कोर्ट में अधिवक्ता नई-नई बनी थी। उससे मुलाकात हो गई। (जारी)