अपनी बात

सीएमओ के वे घटिया सलाहकार, झूठे केस में फंसानेवाले धुर्वा थाना व झारखण्ड पुलिस के अधिकारियों के समूह, अखबारों व उनके पत्रकारों की घटिया सोच व एक प्रतिबद्ध पत्रकार की व्यथा – दो

दुबली-पतली पूजा मिश्रा को देख हमने बिना देर-सबेर किये ही निर्णय लिया कि मेरा केस सिर्फ और सिर्फ यही देखेंगी। फिर, यही सरला बिरला यूनिवर्सिटी के पास रहते हैं अमित सिंह उनको मैंने बुलाया। साथ में राजेश कृष्ण मौजूद थे। केस कैसे लड़ा जाये, लड़ने की प्रवृत्ति क्या होगी? इस पर चर्चा होने लगी। पूजा इसके पूर्व कोई केस नहीं लड़ी थी। आईटी केस भी उसके लिये नया था। उसे इसकी कोई जानकारी भी नहीं थी।

लेकिन मैंने महसूस किया कि उसे इस बात की ज्यादा खुशी थी कि वो मेरा केस लड़ने जा रही है, कृष्ण बिहारी मिश्र का केस लड़ने जा रही है। जिसकी चर्चा वो अपने घर में स्वयं अपने पति राजेश कृष्ण से कई बार सुन चुकी थी। मैंने उसके आंखों को पढ़ा था। उसकी आंखे मेरे प्रति हो रहे जुल्म से दुखी नजर आ रही थी। ऐसे भी कहा जाता है कि इन्सान, इन्सान की भाषा पढ़ लेता है।

पूजा की आंखें सब कुछ कहती चली जा रही थी। अचानक उसके मुंह से निकला – मिश्रा भैया का केस हम लड़ेंगे, जीतेंगे। शायद यह ब्रह्माण्डीय ध्वनि इस बात का संकेत थी कि ईश्वर मेरे साथ था। ऐसे भी ईश्वर उन्हीं के साथ रहता है। जो सत्याश्रित होते हैं। इसके पहले हम आपको बता दें कि उस वक्त के तत्कालीन मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार से भी इस केस से मुक्ति दिलाने की बात हमने उनसे कही थी। लेकिन शायद वो भी असहाय थे। उन्होंने भी चाहकर भी मदद करने में असमर्थता व्यक्त कर दी। हालांकि सच्चाई वे हमसे भी ज्यादा जानते थे।

इसी बीच पूजा को हमने कुछ पैसे दिये कि वो केस की तैयारी करें। पूजा सबसे पहले उन पैसों से आईटी की कुछ बुकें खरीद ली और पढ़ना शुरु की। उन किताबों के पन्ने उलटने के बाद, वो हमसे संपर्क की और कहा कि भैया चिन्ता मत करिये। आपको बेल मिल जायेगा। आईटी बुक में लिखी धाराएं कुछ ऐसा ही कह रही हैं और चूकि आप पर धारा 66 (1) के अंतर्गत केस दर्ज है। ऐसे भी इसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। लेकिन पूजा को नहीं पता था कि हमें जेल में ढुकाने की तैयारी कर चुके लोग, नई-नई धाराओं को इसमें जोड़ना शुरु कर दिया है और निचली अदालत भी उनकी इन धाराओं को जोड़ने में अपनी सहमति दे दी है।

अचानक एक दिन वो भी आया। जब मुझे बेल लेने के लिए रांची कोर्ट उपस्थित होना था। उस कोर्ट परिसर में पूजा के साथ कंचन भी थी। कंचन को न मैं पहले कभी देखा था और न ही सुना था। कंचन से पूजा ने हमें मिलवाया और कहा कि भैया हम जो भी केस का काम करते हैं। दोनों मिलकर करते हैं। मैंने भी कहा कि चलो ठीक है। ऐसे भी पूजा के रूप में एक बहन पहले से ही हमारी मदद कर रही थी। दूसरी बहन हमें कंचन, अधिवक्ता के रूप में मिल गई।

राजेश कृष्ण, अमित सिंह पहले से ही अदालत में मौजूद थे। यहां एक और आदमी नरेन्द्र पांडेय भी हमारी गुप्त तरीके से मदद कर रहे थे। उन्होंने भी अपनी ओर से कोई कसर नहीं उठा रखी थी। वो हमसे ज्यादा सक्रिय थे। उन्हें हर बात का पता चल रहा था कि कौन कैसे हमें जेल के अंदर ढुकाने के लिए सक्रिय है। लेकिन वो लोकोक्ति हैं न – मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वहीं होता हैं, जो मंजूरे खुदा होता है। ईश्वर को तो कुछ और मंजूर था।

मुझे कोर्ट के कटघरे में जाकर खड़ा होना पड़ गया। पूजा हमें कटघरे में जाने के पूर्व बहुत कुछ समझाई थी। लेकिन मैंने उसे कह रखा था कि बेल हमें मिले अथवा न मिले, मैं दोनों अवस्थाओं में एक समान रहुंगा। मुझे कोई भी परिस्थितियां हिला नही सकती। इसी बीच न्यायाधीश ने पूजा को ऑपोजिट वकील बुलाने को कहा। बेचारी पूजा स्वयं ऑपोजिट वकील बुलाई। बहसे हुई। न्यायाधीश ने हमें बेल दे दिया।

जब मैं कटघरे में खड़ा था। ये जीवन का पहला अनुभव था। बिना किसी अपराध के कटघरे में खड़ा होना, मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मैं सोच रहा था कि जब मुझे ग्लानि उठानी पड़ रही हैं तो हमारे जैसे उन करोड़ों लोगों पर क्या बीतती होगी, जो बिना किसी अपराध के कटघरों में तो दूर यहां जेलों में पड़े हैं। अचानक मुझे ईश्वर की याद आई, परमहंस योगानन्द की याद आई। कर्मफल का सिद्धांत से हर व्यक्ति जुड़ा है। सभी को उसके अनुसार, जीवन व्यतीत करना है। हम अनेक प्रकार के पूर्व जन्मों में काम किये हैं। जिसे भुगतना ही है। कभी भीष्म पितामह को भी मृत्यु शैय्या पर कई दिनों तक कराहते हुए जीना पड़ा था।

इसी बीच कोर्ट परिसर में कई जगह लिखा था कि आप सीसीटीवी के कैमरे की जद में हैं। जिस पढ़कर मैं अपनी हंसी रोक नहीं पा रहा था। लेकिन हंसी तो रोकनी थी। शायद गलत करनेवालों को बुरा लगने का खतरा था। सीसीटीवी मौजूद था। न्याय करनेवाले-देनेवाले मौजूद थे और गलत आसानी से बिना किसी भय के न्यायालय पर कब्जा जमाये हुआ था।

लोगों को अपने ही लिये, अपने डेट पाने के लिए शुल्क अदा करना पड़ रहा था। मतलब न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार ने इस प्रकार अपना रौद्ररूप धारण कर रखा था, जिससे हम जैसा आदमी कराहने की विवश था। हमें जैसे ही बेल मिला। पूजा जिसके माथे पर चिन्ता की रेखाएं साफ दिख रही थी। जो हमें कटघरे में देखकर ज्यादा दुखी थी। उसके चेहरे पर खुशी देखने को मिली। वो हमसे ज्यादा खुश थी। खुश राजेश कृष्ण थे। खुश अमित सिंह और खुश नरेन्द्र पांडे और वे लोग भी थे। जिनकी नजरें यह सब सुनने को विकल थी।

इधर मैंने अपने मोबाइल फोन से अपनी पत्नी और बार्डर पर तैनात बच्चों को फोन किया कि मुझे बेल मिल गया। घर पहुंच रहा हूं। पत्नी मोबाइल पर इससे ज्यादा कुछ बोल ही नहीं सकी। जल्दी आइये। उसका गला खुशियों के आंसू के बीच अवरुद्ध था। बार्डर पर ड्यूटी पर तैनात बच्चों को लगा कि जैसे सारा जहां मिल गया। बच्चों ने व्हाट्सएप पर लिखा संघर्ष जारी रहे पापाजी, सत्यमेव जयते। (जारी)

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  • Rajesh Krishna

    सत्यमेव जयते ✌️
    🚩🚩जय जय नारायण 🚩🚩

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