जो सड़कों पर निकल रहे हैं, वे सारे मजदूर नहीं और जो दिखाया जा रहा है, वे सभी मजबूर भी नहीं, कृपया मजदूरों पर रहम करें
भाई, मैं तो साफ जानता हूं कि जो सड़कों पर निकल रहे हैं, वे सारे मजदूर नहीं और जो विभिन्न चैनलों में दिखाया जा रहा हैं, वे सारे के सारे मजबूर भी नहीं, क्योंकि गरीबी हमने भी देखी हैं, गरीबी का सामना हमने भी किया है, तकलीफें हमने भी झेली हैं, इसलिए इस बात को डंके की चोट पर कह सकता हूं कि कोई गरीब अपनी गरीबी का प्रदर्शन नहीं करता और न ही किसी से भीख में कुछ लेकर खाना पसन्द करता है। ऐसा जो भी करते हैं, वे ज्यादातर चालाक लोग होते हैं, जो हर तकलीफों को अवसर के रुप में मान और जानकर उसका फायदा उठाते हैं।
जरा देखिये, मैं रांची में ही देख रहा हूं कि सरकारी स्तर पर बड़े पैमाने पर भोजन उपलब्ध कराये जा रहे हैं। सरकारी जन-वितरण प्रणाली की दुकानों से थोक में अनाज उपलब्ध कराये जा रहे हैं। विभिन्न थानों में प्रतिदिन भोजन बनाये जा रहे हैं, गरीबों को खिलाये जा रहे हैं। विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संगठनों की ओर से भी बड़े पैमाने पर जीवनोपयोगी व आरामदायक सामग्रियां वितरित की जा रही है, उसके बावजूद भी हर प्रकार से सुखी संपन्न लोगों की टोलियां, मुफ्त के सामानों को लेने के लिए बड़े पैमाने पर उन हर जगहों पर पहुंच जा रही हैं।
जहां उन्हें यह पता चल रहा है कि फलां जगह मुफ्त के अनाज व सामान मिल रहे हैं, ऐसे लोगों की संख्या बहुतायत है। किसी-किसी स्थान पर तो जिनके दो-तिमंजिले मकान, घर में मोटरसाइकिल व कार तक उपलब्ध हैं, वे भी बीपीएल का फायदा उठाने में सबसे आगे हैं, अब इस कोरोना वायरस संक्रमण काल में ऐसे लोग भी जब नाजायज फायदे उठायेंगे तो सरकार क्या करेगी?
इधर चैनलवालों ने भी गजब ढा दिया है, इनलोगों ने हर बात का बाल का खाल निकालना शुरु कर दिया है, और भारत की गंदी तस्वीर पूरे विश्व के देशों में दिखानी शुरु कर दी है, जैसे लगता है कि भारत आजादी के बाद सत्तर सालों में कुछ किया ही नहीं, बल्कि भूखों-नंगों के देश में अपने भारत को तब्दील कर दिया, जबकि आजादी के समय भी देश की ये हालत नहीं थी।
अब जरा देखिये, विभिन्न चैनलवाले एक विडियो चला रहे हैं, इस विडियो को जब आप देखेंगे तो साफ दिखता है कि एक संभ्रांत महिला अपने बच्चे (बच्चा चक्केवाली सूटकेस पर अर्द्धनिद्रा में है) को लेकर अपने गंतव्य के लिए चल पड़ी है, उस महिला को ऐसा करने में कोई दिक्कत नहीं हो रही हैं, वो बड़ी तेजी से अपने पांव बढ़ा रही है, ऐसा करने में उसे कोई गरीबी-अमीरी भी नहीं दिख रही, शायद उसने सोचा भी नहीं होगा कि इस प्रकार से अपने बच्चे को लेकर चलेगी तो उसका यह फोटो न्यूज चैनलवालों की कृपा से व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी तक आ जायेगी और लोग अपने-अपने ढंग से इस दृश्य का बाल का खाल निकालेंगे, पर हो तो यही रहा है।
जबकि सच्चाई यह है कि भारत में ऐसे दृश्य आम है, क्योंकि भारत दुनिया का दुसरा सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश है। यहां आप किसी भी रेलवे स्टेशन पर चले जाये, ऐसे दृश्य आपको खुब मिलेंगे। सूटकेस पर बैठे हुए पांच साल से लेकर अस्सी साल तक के बच्चे मिलेंगे। कभी-कभी नई-नई टॉप जिन्स पहननेवाली खुद को सर्वाधिक स्मार्ट बतानेवाली मां भी, अपने बच्चों को लेकर चक्के वाली सूटकेस में उसे बिठाकर सूटकेस को खींचने लगती है।
इसमें उसका मकसद बच्चे को आनन्द देना और दूसरा बोझ को हल्का करना होता हैं। इससे ज्यादा कुछ नहीं, पर ऐसे दृश्यों पर कोई बाल का खाल आज तक नहीं निकाला, पर चूंकि इस वक्त कोरोना संक्रमण है, तो चैनलवालों को हर महिला मजदूर और गरीब ही दिख रही हैं और ले-देकर ये अपनी दुकान चलाने में गूरेज नहीं कर रहे।
अब दूसरा विडियो देखिये, जिसमें एक महिला खुद को बैल बना दी है, और उस बैलगाड़ी पर बैठे लड़के हांक रहे हैं, अब जरा आप बताइये कि दुनिया का कौन ऐसा बेटा होगा, जो अपनी मां को बैल बनाकर हांकेगा, क्या ऐसा करनेवाला बेटा, बेटा कहलानेलायक है। समाचार तो यह होना चाहिए कि बेटों ने मां अथवा दादी (जो भी होगी) उसको बैल बना दिया, पर हो क्या रहा है, इसको भी लोग अपने-अपने ढंग से मोदी व वहां की सरकार को गालियां देने से नहीं चूक रहे।
जब मैंने रांची के एक पत्रकार से पूछा कि भाई, आपने जो सोशल साइट पर ये विडियो डाला है, वो क्या है? तो उन्होंने एक अलग बात बताई कि वो महिला और लड़के बारी-बारी से बैल बनकर गाड़ी खींच रहे थे, तो मैने तपाक से उनसे सवाल किया कि आप ही बताये कि आप, आपकी मां और आपके पिता कभी इस हाल में पड़ जाये तो क्या आप अपने माता-पिता को गाड़ी में जानवरों की तरह जोतना पसंद करेंगे, तो उनका उत्तर था किसी जिंदगी में नहीं और जैसे ही उन्होंने यह उत्तर दिया, उनका ज्ञानचक्षु खुल गया और उन्हें पता चल गया कि दाल में काला है।
मेरे इस आर्टिकल लिखने का मतलब साफ है कि जो दिखाया जा रहा है, वो सही ही होगा, ऐसा कुछ भी नहीं। ऐसा नहीं कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकार कही भी हाथ पर हाथ धरकर बैठी है, उससे जो संभव हो रहा हैं, कर रही है। इसी प्रकार कई सामाजिक व धार्मिक संगठन भी इस विपदा में दिल खोलकर लोगों की सेवा कर रहे हैं, ऐसे में हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि केन्द्र व राज्य सरकार की जो दिशा-निर्देश हैं, उसका पालन करें।
यही नहीं जब भगवान ने बहुत कुछ दिया है, तो गरीबों पर रहम करें, न कि उसका हक खा जाये। कोरोना को कोरोना रहने दें, न कि अपने लिए उसे उत्सव का रुप दे दें, अगर आप ऐसा करेंगे तो जान लीजिये, आप बचने नहीं जा रहे हैं, उपरवाला आपका भी जल्दी हिसाब कर देगा। केन्द्र व राज्य सरकार को चाहिए कि जो लोग बात का बतंगड़ या बाल का खाल निकाल रहे है, या देश के सम्मान के साथ खेल रहे हैं, देश की विकृत छवि विश्व के देशों के सामने पेश कर रहे हैं, उन पर भी अंकुश लगाये, क्योंकि हर गरीब बेगैरत नहीं होता, ज्यादातर गरीब स्वाभिमानी और ईमान के पक्के होते हैं। वे मरना पसन्द करेंगे, पर अपना अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे, जैसा कि देश में मीडिया वाले अभी कर रहे हैं।