अपनी बात

जिन्होंने आपको भिखमंगा बनाया, आपके स्वाभिमान और सम्मान को तार-तार किया, ऐसे लोगों को सबक सिखाइये, रांची प्रेस क्लब का सम्मान बढ़ाने का मौका हाथ से न जाने न दें

वोट देने के पहले दस बार सोचिये, कि आप दरअसल है क्या? क्योंकि जब तक आप ये नहीं सोचेंगे, खुद को नहीं जानेंगे – द रांची प्रेस क्लब का उद्धार ही नहीं हो सकता। जैसे आप अपने घर के अंधकार को आप ही दूर कर सकते हैं, ठीक उसी प्रकार से आप अपने प्रेस क्लब पर लगे दाग को आप ही मिटा सकते हैं।याद रखिये, रांची में कई क्लब हैं। जिन क्लबों को जनता जानती है, वह है – रांची क्लब, लायन्स क्लब, रोटरी क्लब आदि, पर क्या आप इनके किसी भी सदस्यों को पंक्तिबद्ध होकर कभी भोजन की भीख या पैकेट मांगते देखा है? किसी के आगे हाथ पसारकर अपने स्वाभिमान को गिरवी रखते देखा है, नहीं न।

लेकिन सच्चाई यह भी है कि इन क्लबों के सदस्यों ने रांची प्रेस क्लब के सदस्यों को पंक्तिबद्ध होकर भोजन के पैकेट लेते देखे हैं, अपने स्वाभिमान को गिरवी रखते हुए देखा है, विवादों में घिरे हुए देखा है और इसके लिए हम रांची प्रेस क्लब के पूर्व के निर्वाचित अधिकारियों को दोष नहीं देंगे, इसके लिए दोषी कोई हैं, तो वे वोटर हैं, जिन्होंने स्वयं को पहचाना ही नहीं कि जनता उन्हें बुद्धिजीवियों की श्रेणी में रखती हैं और ये तथाकथित बुद्धिजीवियों ने अपने सर पर ऐसे लोगों को बिठा लिया, जिन्होंने रांची प्रेस क्लब के सम्मान को ही ठेस पहुंचा दिया। द रांची प्रेस क्लब के इस सम्मान की धज्जियां उड़ते हुए सभी ने देखा है, तो क्या फिर ऐसी ही स्थिति लायेंगे, सवाल इसी बात का है।

क्या ऐसे लोग, जिनकी कथनी और करनी में अंतर हैं, जो अपने ही बातों पर कभी अडिग नहीं रहते, जो कहते है कि हम समय देंगे और जब उन्हें वोटर अपना उत्तराधिकारी चुनते हैं, तो वे ही बाद में समय नहीं होने का बोलकर मतदाताओं को ठेंगा दिखा देते हैं, जो जातीयता के दंभ पर चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसे लोग कभी प्रेस क्लब का भला कर सकते हैं?

दुर्भाग्य इस बात का है कि पिछले दो चुनावों में मैंने यहां चरित्र को हारते और दुश्चरित्र को जीतते हुए देखा है और उस जीत के बाद ऐसे लोगों को कंधा पर बिठाकर तथाकथित बुद्धिजीवियों-पत्रकारों को नाचते भी देखा हैं, जो कल तक मुझे उन्हीं घटियास्तर के जीवों की करतूतों को हम तक पहुंचाते थे, उन्हें आज देख रहा हूं कि जातीयता में बहकर ऐसे लोगों को अपने कंधों पर बिठाकर, विभिन्न सोशल साइटों पर उनका चुनाव कैम्पेन कर रहे हैं, जो आनेवाले दुर्भाग्य की तस्वीर दिखा रहे हैं।

अरे लोकसभा, विधानसभा, पंचायत, नगर-निगम के चुनावों में शराब-मुर्गा पर लोग वोट बेच देते हैं, वोटों को गिरवी रख देते हैं, तो बात समझ में आती है कि ये वे लोग हैं, जिन्होंने वोट के महत्व को समझा ही नहीं, नासमझ हैं, पर स्वयं को बुद्धिजीवी कहलानेवाला वर्ग भी जातीयता, शराब और मुर्गा में अपनी तकदीर ढूंढने लगे तो फिर स्थितियां तो वहीं होगी, जो पिछले चार सालों में दिखी है।

खुशी इस बात की है, इस बार कई पदों पर अच्छे-अच्छे लोग पहली बार खड़े हुए हैं, जिनके दामन अभी तक दागदार नहीं हुए हैं, जिन पर भरोसा किया जा सकता हैं, पर ऐसे लोगों को वोट प्राप्त हो, वो चुन कर जायें, तभी रांची प्रेस क्लब का भला हो सकता है, नहीं तो जो होना है, वो तो होगा ही। चुनिये, उन्हें जो सेवा का अर्थ समझते हो, जो आपके सम्मान को समझते हो, जो आपके सम्मान को समाज के चोरों-लूटेरों के आगे गिरवी न रखते हो, तथा जिनका खुद का सम्मान हो, जो समय पड़ने पर दधीचि की तरह अपना शरीर तक त्याग करने का सामर्थ्य रखते हो।

ऐसा नहीं कि कल कोई नेता या विधायक या मंत्री अपना पीए बना लें तो फिर रांची प्रेस क्लब से ही दूरिया बना लें और ये कहे कि मेरे पास समय ही नहीं हैं, और न ही अपने पद से इस्तीफा दें, या अपने-अपने परिवार व संस्थान के लिए तो उसके पास समय ही समय हो, लेकिन आपके लिए उसके पास समय ही न हो या जो प्रेस क्लब को अपनी जागीर समझकर उसकी ऐसी की तैसी कर दें और उसे कोई बोलनेवाला ही न हो या भरी सभा अथवा नोटिस के माध्यम से किसी व्यक्ति-विशेष के खिलाफ नोटिस जारी करें और फिर बाद में उसी व्यक्ति-विशेष को ये कहें कि ये तो पवित्र गंगा जल से धूले हैं, भला ये गलत कैसे हो सकते हैं?

अंततः रांची प्रेस क्लब से हमें क्या मतलब? मैं तो कब का इस्तीफा के माध्यम से इससे दूरी बना चुका हूं और न ही मुझे इसमें कोई दिलचस्पी है, इसलिए जो इससे जुड़े हैं, वे सोचे कि प्रेस क्लब को क्या बनाना हैं? सोचिये, वोट करिये, ऐसे भी कहा गया है कि अगर आपके किस्मत में दुख लिखा हैं, अपमान लिखा हैं तो सुख व यश कहां से मिलेगा? लेकिन किस्मत को ठीक करने का बस कल भर मौका है, नहीं तो झेलने के लिए तैयार रहिये, ऐसे भी…