कोल्हान महासाझा संवाद के माध्यम से महागठबंधन के नब्ज को टटोला जनसंगठनों ने, समर्थन की घोषणा
2019 में लोकसभा चुनाव होने है और साल के अंत में झारखण्ड में विधानसभा के चुनाव अवश्यम्भावी हैं, सूत्र तो ये भी बताते हैं कि केन्द्र में जहां नरेन्द्र मोदी की सरकार गई, उसका असर झारखण्ड में भी पड़ेगा और रघुवर सरकार साल के अंत का भी इंतजार नहीं करेगी, उस वक्त सत्तारुढ़ दल में ऐसी भगदड़ मचेगी कि सत्ता के लालचियों का समूह उन दलों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहेगा, जिस पार्टी की जीत सुनिश्चित होगी, फिलहाल जिस प्रकार से राज्य में विधानसभा के उपचुनाव हुए है, और जनता ने जिस प्रकार से राज्य सरकार के खिलाफ आक्रोश व्यक्त करते हुए, भाजपा और उसके सहयोगी आजसू को हार का स्वाद चखाया, उससे साफ लगता है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में भाजपा और आजसू की स्थिति चिन्ताजनक है।
इधर राज्य की राजनीतिक स्थिति तथा जागरुक मतदाताओं को देखते हुए राज्य में कार्य कर रहे विभिन्न सामाजिक जनसंगठनों ने सत्ता के खिलाफ बिगुल फूंक रहे विपक्षी दलों का नब्ज टटोलने का प्रयास किया है, कि ये विपक्षी दल सचमुच राज्य की जनता के सपनों को पूरा करने की तैयारी कर रहे हैं, या केवल झांसा देने की सोच रहे हैं? इसीलिए आज विभिन्न सामाजिक-जनसंगठनों ने चाईबासा के हरिगुटू स्थित आदिवासी क्लब भवन में साझा महासंवाद का आयोजन किया, जिसमें राज्य के प्रमुख विपक्षी दल, जो महागठबंधन में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं, और जिनकी ओर आम जनता का झुकाव ज्यादा है, उनके प्रतिनिधियों को बुलाया और सीधा-सीधा सवाल किया। इस साझा संवाद में कांग्रेस पार्टी, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा एवं झारखण्ड विकास मोर्चा के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और अपने दल की स्थिति स्पष्ट की।
जनसंगठन में शामिल जितने भी लोग थे, सबका सवाल राज्य की जनसमस्याओं से लेकर ही था, जिनमें आदिवासियो की घटती संख्या, उनके विस्थापन, पलायन, जल, जंगल और जमीन की समस्या, पेसा कानूनों तथा पांचवी अनुसूची से संबंधित विषय प्रमुख थे। आम तौर पर देखा गया है कि ज्यादातर दल वादे तो बहुत करते हैं, पर जैसे ही सत्ता में आते हैं, उनका चरित्र बदल जाता है, तो क्या इनका भी चरित्र बदलेगा, इन संशयों पर भी सवाल पूछे गये, जिसका जवाब इन राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने दिया।
जनसंगठनों से जुड़े सभी कार्यकर्ताओं का यही कहना था कि जनसंगठनों का सहयोग भी उन्हीं राजनीतिक दलों को प्राप्त होगा, जो इन सारे विंदुओं पर अपनी स्पष्ट राय रखेंगे तथा उन्हें विश्वास में लेंगे। इधर इस साझा-संवाद ने भाजपा और उसके आनुषांगिक संगठनों के हालत पस्त कर दिये हैं। भाजपा और इनसे जुड़े आनुषांगिक संगठनों की मानें तो अगर जनसंगठनों और महागठबंधन की जोड़ी बन गई तो भाजपा को झारखण्ड में एक भी सीट निकालना मुश्किल होगा, क्योंकि ऐसे भी राज्य की जनता वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास के क्रियाकलापों से नाराज है, तथा भाजपा कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज ही नहीं, बल्कि कई मंत्रियों का समूह भी अंदर ही अंदर मुख्यमंत्री के व्यवहार से नाराज है, ऐसे में भाजपा झारखण्ड में पुनः सत्ता में आयेगी, कहना मुश्किल है।
साझा महासंवाद में सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने जनसंगठनों को भरोसा दिलाया कि उनकी पार्टी राज्य में भूख से हो रही मौतों पर विराम लगायेगी, सीएनटी-एसपीटी एक्ट पर जो जनता की राय हैं, उसे ही अक्षरशः लागू करने का प्रयास करेगी, विस्थापन और पलायन पर सकारात्मक रुख रहेगा तथा जल, जंगल एवं जमीन पर आदिवासियों तथा मूलवासियों का जो उनका हक है, उसे दिलाने का प्रयास किया जायेगा।
साझा संवाद में आज प्रमुख रुप से रामेश्वर उरांव, गीताश्री उरांव, प्रकाश उरांव, थियोडोर किड़ो, देवेन्द्र नाथ चम्पिया, जोबा मांझी, दयामनि बारला, दशरथ गगराई, प्रेमचंद मुरमू, ललित मुर्मू, दुर्गा चरण सोरेन, रतन तिर्की आदि ने भाग लिया। सभी ने 2019 के चुनाव में एक दूसरे को सहयोग देने का संकल्प दुहराया ताकि इस बार जब कभी चुनाव हो, भाजपा को शिकस्त दिया जा सके। जल्द ही इस प्रकार का साझा महासंवाद अन्य परिक्षेत्रों में भी आयोजित किया जायेगा ताकि भाजपा को राज्य से उखाड़ फेका जा सकें।