महागठबंधन के भय से थर-थर कांपती भाजपा, आजसू के चरण पकड़े, गिरिडीह सीट की सुदेश के हवाले
पता नहीं, भाजपा सुप्रीमो को कौन ज्ञान दे रहा है? पर जो भी ज्ञान दे रहा है, उसकी बुद्धि पर हमें तरस आ रही है और तरस आ रही है भाजपा सुप्रीमो अमित शाह पर भी। भाई, जो व्यक्ति अपनी विधानसभा सीट नहीं निकाल सकता, वो लोकसभा की सीट क्या खाक निकालेगा? जो भाजपा के समर्थन के बावजूद सिल्ली विधानसभा सीट पर दम तोड़ देता है, वह गिरिडीह सीट को कैसे अपने पक्ष में कर लेगा?
आखिर क्या वजह है कि भाजपा को गिरिडीह सीट आजसू के हवाले करनी पड़ी, चूंकि भाजपा 2019 में हो रहे लोकसभा चुनाव में खासकर झारखण्ड में अपनी आसन्न हार को देख पुरी तरह से घबरा गई है, उसे लगता है कि झारखण्ड में महागठबंधन ने उसकी जबर्दस्त रुप से घेराबंदी कर दी है, और ऐसी हालत में भाजपा का झारखण्ड से वर्तमान की 14 में से जीती हुई 12 सीट पुनः निकाल पाना मुश्किल है, इसलिए वह वो काम भी करने लगी है, जो एक तरह से भाजपा के लिए नामुमकिन कहा जाता था।
जरा सोचिये, किसी ने कल्पना किया होगा कि भाजपा गिरिडीह सीट आजसू को दे देगी, पर हुआ तो यही है, ऐसे भी “भाजपा का सबका साथ, सबका विकास नारा” तो कब का हवा हो गया, अब तो नया नारा है, “नामुमकिन अब मुमकिन है”, शायद इसीलिए भाजपा ने गिरिडीह सीट आजसू के हवाले कर के साबित कर दिया कि लो जी, जो नामुमकिन था, वो मैंने मुमकिन कर दिया। आजसू भी इस फैसले से खुश है कि न हर्रे लगी न फिटकरी और रंग भी चोखा हो गया, आजसू को बैठे–बिठाए एक सीट मिल गई, वह भी गिरिडीह की।
2014 की लोकसभा चुनाव में भाजपा के रवीन्द्र पांडे यहां से चुनाव जीते थे, तथा झामुमो के जगरनाथ महतो यहां दूसरे स्थान पर रहे थे। रवीन्द्र पांडे ऐसे भी अब तक गिरिडीह से पांच बार चुनाव जीत चुके है, और इस बार यहां से लड़ने के लिए बाघमारा के दबंग भाजपा विधायक ढुलू महतो ने भी जोर लगा दिया था, और वे इसके लिए प्रयासरत भी थे, माना भी जा रहा था कि राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास और ढुलू महतो एक ही जाति से आते है, इसलिए इस बार ढुलू को भाजपा से गिरिडीह संसदीय सीट के लिए टिकट मिल जायेगा, पर गिरिडीह सीट भाजपा की ओर से आजसू को गिफ्ट कर दी गई, ऐसे में बेचारे ढुलू को भी घोर निराशा हुई है।
सूत्र बताते है कि पहले झाविमो से बाघमारा के विधायक बने और फिर बाद में भाजपा के टिकट पर विधायक बने ढुलू महतो की अंतिम इच्छा हैं, विधायक से सांसद बनने की और इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार है, सूत्र यह भी बताते है कि वे पलटी मारने को भी तैयार है, वे झामुमो और झाविमो दोनों से संबंध बनाये हुए हैं, और अगर इन्हें इन पार्टियों से टिकट मिल जाता है, तो वे चुनाव लड़ भी लेंगे। इधर गिरिडीह के वर्तमान सांसद रवीन्द्र पांडे भी यह समाचार सुनकर स्तब्ध रह गये, उनको लगता था कि यह सीटिंग सीट है, भाजपा नहीं छोड़ेगी, और फिर उन्हें ही टिकट मिलेगा, पर अमित शाह के निर्णय से वे भी आश्चर्यचकित हैं तथा सोच में पड़ गये कि क्या किया जाये, सूत्र बताते है कि वे भी आगे की रणनीति बनाने में लग गये है।
उधर महागठबंधन की बात करें तो यह सीट झामुमो के पक्ष में जायेगी और झामुमो यहां से जगरनाथ महतो को फिर से उम्मीदवार बनाने को तैयार है, अगर कोई दिक्कत हुई तो जे पी पटेल भी उम्मीदवार हो सकते हैं, पर झामुमो से ढुलू महतो को टिकट मिलेगी, इसकी संभावना दूर–दूर तक नजर नहीं आती, ले–देकर, महागठबंधन में अगर कोई विरोधाभास नजर आया तो हो सकता है कि कोई अन्य पार्टी ढुलू को टिकट दे दें, फिर भी यहां से भाजपा–आजसू गठबंधन का प्रत्याशी चुनाव जीत जाये, इसकी संभावना फिलहाल नही दिखती, जबकि झामुमो की बल्ले–बल्ले हैं, महागठबंधन उम्मीदवार होने तथा सारे समुदायों के मिले समर्थन से लगता है कि इस बार यहां तीर–धनुष निकल जायेगा।
इधर जैसे ही, भाजपा की ओर से गिरिडीह सीट आजसू को गिफ्ट किया गया, महागठबंधन के नेताओं में खुशी की लहर दौड़ गई, महागठबंधन के नेताओं का कहना है कि यह उनकी वैचारिक जीत है, भाजपा की अपनी जीती हुई गिरिडीह सीट आजसू को गिफ्ट करना बताता है कि भाजपा नेताओं के हाथ–पांव फूले हुए हैं, इस घटना ने महागठबंधन के सभी नेताओं व कार्यकर्ताओं के चेहरे पर खुशियां बिखेर दी है, भाजपा कुछ भी कर लें, इस बार उसकी हार उतनी ही सुनिश्चित है, जितना गंगा का गोमुख से निकलकर सागर में मिल जाना।
राजनीतिक पंडितों की बात मानें तो भाजपा ने गिरिडीह सीट आजसू को देकर, मान लिया कि वह झारखण्ड में भी कमजोर है, क्योंकि झारखण्ड में आजसू उतनी सशक्त नहीं, जितना भाजपा समझ रही है, अगर जातिवाद की भी बात करें तो बहुत कम ही लोग हैं, जो सुदेश महतो को जाति के नाम पर वोट करें या अपना नेता माने, क्योंकि आज भी यहां का कुरमी समुदाय स्व. विनोद बिहारी महतो को ही अपना नेता मानते है, और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन आज भी उन्हें अपना धर्म पिता मानते है, उनका सम्मान करते है।
जिस कारण आज भी यह समुदाय, झामुमो को ही अपना पार्टी मानता है, यहीं कारण है कि इस जाति के ज्यादातर नेता झामुमो से ही जुड़े रहे, दिवंगत टेकलाल महतो हो या सुधीर महतो, सभी झामुमो से ही जुड़े रहे, वर्तमान में मथुरा महतो, जे पी पटेल जैसे नेता भी आज झामुमो के ही साथ है, जिस कारण गिरिडीह में महागठबंधन एक बार फिर मजबूत हो गया, और झामुमो यहां से सीट फिर एक बार निकाल ले जाये, तो इसे अतिश्योक्ति नहीं माना जाना चाहिए।