धर्म

परमहंस योगानन्दजी के जन्मोत्सव की 131वीं वर्षगांठ मनाने को योगदा सत्संग आश्रम में उमड़ी रांची, उधर नोएडा में ईश्वरानन्द गिरि ने योगदा सत्संग पाठमाला के हिन्दी संस्करण का किया लोकार्पण, योगदा भक्तों में हर्ष की लहर

परमहंस योगानन्द जी के जन्मोत्सव की 131वीं वर्षगांठ मनाने को आज योगदा सत्संग आश्रम में रांची उमड़ पड़ी। सुबह से ही जो योगदा सत्संग आश्रम में भक्तों का जो आने का सिलसिला शुरु हुआ। वो दिन भर चलता रहा। प्रातः काल में शिवमंदिर के पास बने यज्ञशाला में वैदिक मंत्रों के साथ योगदा संन्यासियों ने आहुतियां दी, तदुपरांत परमहंस योगानन्दजी की पूजा अर्चना व भव्य आरती उतारी गई। इस कार्यक्रम को रांची के वरीय संन्यासी स्वामी गोकुलानन्द गिरि ने अपने समस्त योगदा संन्यासियों के साथ मिलकर संपन्न किया।

उधर नोएडा में भी भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ। वहां 800 से भी अधिक श्रद्धालुओं ने सामूहिक ध्यान, सत्संग में भाग लिया और संन्यासियों के प्रवचन सुनकर स्वयं को धन्य किया। करीब 1200 से अधिक लोगों के बीच गुरु लंगर में प्रसाद वितरित किया गया। सायंकाल में योगदा सत्संग पाठमाला के हिन्दी संस्करण का लोकार्पण करते हुए योगदा सत्संग सोसाइटी के वरिष्ठ संन्यासी ईश्वरानन्द गिरि ने कहा कि परमहंस योगानन्द प्रायः क्रियायोग मार्ग, जिसमें ध्यान की वैज्ञानिक प्रविधियां सम्मिलित है, को ईश्वर तक ले जानेवाला राजमार्ग बताया करते थे।

उन्होंने कहा कि योगदा सत्संग पाठमाला का हिन्दी संस्करण लोगों के जीवन के सभी पक्षों को उन्नत और रुपांतरित करेगा। उन्होंने कहा कि पाठमाला के माध्यम से योगदा के गुरुजनों की परम्परा में महावतार बाबाजी, लाहिड़ी महाशय, स्वामी युक्तेश्वर गिरि और परमहंस योगानन्द द्वारा दी गई ध्यान प्रविधियों और अध्यात्म के सार की शिक्षा प्रदान की जाती है। उन्होंने कहा कि ये शिक्षाएं अब सत्य की खोज में लगे उन सभी लोगों के लिए उपलब्ध है, जो प्राचीन काल से ही हमारे शास्त्रों में प्रतिष्ठापित आध्यात्मिक सत्यों को गहनतापूर्वक समझने और उन्हें व्यक्तिगत रुप से अनुभव करने का प्रयास कर रहे हैं।

स्वामी ईश्वरानन्द गिरि ने कहा कि ये क्रियायोग ध्यान की शिक्षाएं उस शून्य को भरने, हमारे विद्यमान आत्मा की समस्त शांति व आनन्द को प्रकट करने के लिए हमें आवश्यक साधन प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी है कि योगदा सत्संग पाठमाला के हिन्दी में उपलब्ध होने के कारण परमहंस योगानन्दजी की मुक्तिदायिनी क्रियायोग शिक्षाएं हिन्दी भाषी लोगों के लिए सुलभ है।

इस अवसर पर स्वामी आद्यानन्द ने वाईएसएस/एसआरएफ अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द गिरी जी का संदेश पढ़कर सुनाया। चिदानन्द गिरी जी के शब्दों में “गुरुजी ने कहा था कि मेरे जाने के पश्चात मेरी शिक्षाएं ही गुरु होंगी और आज वे कितने आनन्द का अनुभव कर रहे होंगे जब नई पाठमाला के हिन्दी अनुवाद के माध्यम से आत्मा की मुक्ति प्रदान करनेवाली उनकी शिक्षाएं अब इस शक्तिशाली नई प्रस्तुति में सम्पूर्ण भारतवर्ष के भक्तों तक पहुंचेंगी, जिसकी योजना उन्होंने अनेक वर्षों पूर्व निर्धारित की थी।”

इधर रांची के योगदा सत्संग आश्रम में गजब का माहौल दिखा। लोग नये-नये परिधानों में आकर अपने परिवार के साथ आकर शिवमंदिर में चल रहे कार्यक्रम में भाग लिया। इधर गुरुजी की पूजा अर्चना चल रही थी तो दूसरी ओर ब्रह्मचारी शांभवानन्द और ब्रह्मचारी शंकरानन्द अपने सहयोगियों के साथ भजन से माहौल को भक्तिमय बनाने में लगे थे। भजन भी लोगों में आनन्द व भक्ति का संचार कर रहे थे।

पहला भजन था – ओम् गुरु, ओम गुरु, सच्चिदानन्द गुरु, सच्चिदानन्द गुरु, योगानन्द सद्गुरु…। दूसरा भजन था – जय गुरु, जय गुरु सतगुरु, गुरु नाम गान, भज मेरे प्राण…। तीसरा भजन था – ले लो चरण शरण में गुरुजी…। चौथा भजन था – हंस, हंस, परमहंस योगानन्द गुरुवे नमः। पांचवा भजन था – सर्वव्यापी योगानन्द, जगतगुरु, जगतगुरु, जो भी आता शरण तेरी, शरण दे तू…। इस प्रकार भजन चलता जा रहा था और लोग प्रेमानन्द में डूबते जा रहे थे। इसके बाद गुरुजी का आरती हुई। आरती पश्चात सभी ने पुष्पाजंलि अर्पित की और उसके बाद भंडारा शुरु हो गया। उस भंडारा में रांची के सभी प्रमुख लोग व सामान्य जन शामिल हुए। योगदा संन्यासियों ने योगदा भक्तों के साथ मिलकर भंडारा में शामिल सभी लोगों को आदर-सत्कार करते हुए प्रसाद रुपी भोजन ग्रहण कराया।