अपनी बात

अवसरवादियों को अपनी किताबों की, पर मंच पर बैठे दिशोम गुरु को आज भी झारखण्ड की चिन्ता सता रही थी

क्योंकि गुरुजी तो गुरुजी है, उन्हें पहले चालाकी नहीं आयी तो आज वे क्या चालाकी करेंगे? जिन्हें नाटक करना था, उन्होंने खूब नाटक किया, खुब मुंह चमकाये, हाथ भांजे, चिल्लम-पो की। उस नाटक को देख प्रभावित हुए, कार्यक्रम का संचालन कर रहे पटना से आयातित एंकर ध्रुव कुमार ने तो प्रभात खबर के कार्यकारी संपादक एवं तीन किताबों के लेखक अनुज कुमार सिन्हा को भारत के किसी भी विश्वविद्यालयों से डी. लिट की मानद उपाधि देने की अपील तक कर दी।

वे इतने आत्मविभोर हो गये कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि अनुज कुमार सिन्हा ने ये तीन किताबें लिखकर झारखण्ड पर बहुत बड़ा एहसान कर दिया और लीजिये यह सुनते ही यहां भी चालाक लेखक ने मंच से यह उद्बोधन कर दिया कि उन्होंने कोई ऐहसान नहीं किया बल्कि कर्ज उतारा है, पर ये नहीं बताया कि ये कर्ज 2000 में झारखण्ड बनने से लेकर 2020 तक क्यों नहीं उतारा गया, इसके लिए 2021 क्यों चुना गया, उसके लिए राज्य में एक सशक्त हेमन्त सरकार का इन्तजार करना क्यों पड़ गया? और न ही किसी ने पूछने की कोशिश की।

ऐसे भी पूछेगा कौन? सभी को तो बहती गंगा में हाथ धोने की आदत सी पड़ गई है। मैं तो पूछता हूं कि संपादक बने लेखक ने पिछले ही साल अपने अखबार में एक पृष्ठ का या 75वां जन्मोत्सव मनाने के समय दिशोम गुरु शिबू सोरेन का एक विशेष पृष्ठ क्यों नहीं दिया? आज यह विशेष पृष्ठ देने की आवश्यकता क्यों पड़ गई? दरअसल इस सत्य को बताने के लिए नाटक करनेवाले लेखक की जरुरत नहीं, बल्कि सत्यनिष्ठ पत्रकार अथवा लेखक की आवश्यकता होती है।

यह मैं जिस संदर्भ में लिख रहा हूं, उसे आपको जान लेना आवश्यक है। आज दिशोम गुरु एवं झारखण्ड के सुप्रसिद्ध आंदोलनकारी-निर्माता शिबू सोरेन का 77वां जन्मदिन है। जिसे राज्य सरकार, प्रभात खबर और प्रभात प्रकाशन ने मिलकर आर्यभट्ट सभागार में मनाया है। जिसमें मूलतः अनुज कुमार सिन्हा की तीन लिखित पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने इस दौरान पांच बार अनुज कुमार सिन्हा का नाम लिया और उनके बारे में अनेक उद्गार प्रकट किये, साथ ही कहा कि अगर इनके (अनुज के) पास संसाधनों का अम्बार होता तो पता नहीं और ये कितने किताब लिख डालते।

पता नहीं अब किसी लेखक/पत्रकार को जो पिछले कई वर्षों से एक ही अखबार में बतौर संपादक पड़ा है, नाना प्रकार के सुखों का उपभोग कर रहा है, उसे किताब लिखने के लिए कितने संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है, ये तो हमारे मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन जी ही ज्यादा बतायेंगे। मैं तो सिर्फ इतना जानता हूं कि लिखनेवालों को संसाधनों की अभाव कभी उनके लिखने पर रोड़े नहीं अटकाती, उदाहरण अनेक है, कितने का उदाहरण दूं, लिखना शुरु करुंगा तो कागजें छोटी पड़ जायेंगी।

ऐसा नहीं कि शिबू सोरेन पर ये पहले आदमी है, जिन्होंने किताबें लिखी है, अगर आप सही में किताबों के शौकीन है, तो शिबू सोरेन पर ही बेहतरीन किताब जिसे डा. हीरालाल साहा ने लिखा है, किताब का नाम है – शिबू सोरेन, झारखण्ड आंदोलन का एक सिपाही, पढ़ सकते हैं। एक बातें और बता दूं कि इनकी किताबे किसी बड़े सभागार या किसी महान नेता द्वारा लोकार्पित नहीं हुई है, क्यों नहीं हो सकी, इसकी जानकारी हमारे पास नहीं है, पर इतनी जानकारी है कि डा. हीरालाल साहा की पुस्तकें शिबू सोरेन पर लिखी गई किसी भी पुस्तकों से बीस ही पड़ेंगी, क्योंकि डा.हीरा लाल साहा गुरुजी के मित्र रहे हैं और उनकी जिंदगी को उन्होंने बेहतर ढंग से देखा और पढ़ा तथा कलम से उकेर दी, वह भी बिना किसी लोभ-लालच के।

और अब बात उनकी जिनकी जन्मदिन है यानी गुरुजी, दिशोम गुरु, शिबू सोरेन की। बात उनकी जिन पर किसी ने आज तीन किताबें लिखकर उन्हीं से लोकार्पित की, जरा देखिये, उन्होंने क्या कहा है? मैं फिर कह देना चाहता हूं कि गुरु जी चालाक नहीं थे और न ही कभी किसी से चालाकी की, वे तो आंदोलन व संघर्ष की उपज है, लीजिये उन्होंने आज उन्हीं बातों को रखा, जिसे वे आज भी अपने दिल में सहेज कर रखे हैं, क्या है वे बातें, शायद ही मंच पर बैठे लोग समझ पायें। दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने किसी का नाम नहीं लिया।

उन्होंने अपने दिल की बात कही। उन्हें किसी से मतलब नहीं था। उन्होंने यह नहीं देखा कि मंच के नीचे श्रोताओं का वर्ग कैसा है? पुस्तकों के लोकार्पण के पीछे राज क्या है? पर उन्होंने जो बातें कही, वो दिल को छू गई। उन्होंने अपनी बातों से महसूस कराया कि उन्होंने गरीबी देखी है, जूल्म देखे हैं। महाजनों का जूल्म, जिसे देख लोग कहर उठते थे। उन्होंने प्रतिकार करना शुरु किया। प्रभाव पड़ा। उन्होंने बताया कि कैसे महाजन उनलोगों के जमीन को हड़प लिया करता था, उनके पूर्वजों की जमीन पर अधिकार कर लिया करता था, लोग अपनी ही जमीन पर धान बोते थे, पर काट नहीं सकते थे, अधिकार महाजनों का हो जाया करता था। लेकिन जैसे ही उन्होंने संघर्ष का बिगुल बजाया, महाजनों की हालत पतली हो गई।

उन्होंने लोगों को जगाया कि डरो मत, जेल से तो और मत डरो। पहले जेल चलो तो, देखो जेल में क्या होता है? महाजनों ने कुछ लोगों को जेल भेजा, जेल जाकर लौटने के बाद लोगों की सोच बदल गई। थाना-पुलिस पहले तो महाजन की तरफ थे, लेकिन जैसे ही लोगों में एकता और संघर्ष देखना शुरु किया, बात समझते देर नहीं लगी कि लोग जग रहे हैं। उन्होंने बताया कि जब पहली बार धान खेत से खलिहान और फिर खलिहान से घर आया था, तो लोगों को इतनी खुशी हुई थी कि क्या कहा जाये, क्योंकि पूर्व में ऐसा महाजनों ने होने ही नहीं दिया था।

बाद में उन्होंने देखा कि कही स्कूल हैं तो मास्टर नहीं, मास्टर है तो स्कूल नहीं, उन्होंने सरकार से इस ओर ध्यान देने को कहा, लोगों को शिक्षा से जोड़ा। उन्होंने बताया कि उन्हें दुख होता है कि उनके लोग दारु-हड़िया पीते हैं, यह सब बंद होना चाहिए, जैसे ही बंद हो जायेगा, उनके लोग तरक्की करने लगेंगे। वे कहते है कि झारखण्ड का आंदोलन हुआ, झारखण्ड बन गया, फिर भी उनके  लोग बहुत पीछे हैं, उन्हें आगे लाने की जरुरत है। जब तक ये आगे नहीं आयेंगे, झारखण्ड आगे नहीं बढ़ेगा, हमें इस ओर काम करने की जरुरत है।

उन्होंने बेतहाशा जंगल-झाड़ काटे जाने पर भी दुख व्यक्त किया, कहा कि अगर दो साल जंगल-झाड़ काटने बंद हो जाये तो पांच साल में जंगल-झाड़ इतने हो जायेंगे कि क्या कहा जाये, उन्होंने कहा कि अब उनके लोग धीरे-धीरे साग-सब्जी बैगन-टमाटर आदि उपजा रहे है, सौ-पचास कमा भी लेते हैं, पर अभी भी बहुत कुछ किया जाना है, ज्यादा क्या बोले और लोगों को भी बोलना है, सबको जोहार, जय झारखण्ड।

अब जरा दिमाग लगाइये कि गुरु जी के मन-मस्तिष्क में क्या चल रहा है, स्पष्ट है कि उन्हें इन सभी कार्यक्रमों से कोई लेना-देना नहीं, आप बुला लिये, वो चले गये, पर उनके मन में भी तो अभी भी आंदोलन के स्वर ही गूंज रहे हैं। मैं तो कल भी कहता था और आज भी कहता हूं कि गुरु जी चालाक नहीं है, वे तो किसानों-मजदूरों और आदिवासियों के लिए संघर्ष करनेवाले झारखण्ड के एकमात्र नेता है, उन्होंने इससे उपर कभी कुछ सोचा ही नहीं। मैं भी 35 साल से झारखण्ड से जुड़ा हूं। उन्हें यहां के अखबारों व लेखकों ने कितना सम्मान दिया है। मैं जानता हूं। चालाक लोगों ने जब-जब सत्ता पलटी है, उसका फायदा उठाया है। चूंकि अभी झामुमो को सत्ता मिली है, राज्य में हेमन्त सोरेन मुख्यमंत्री है। हेमन्त जी, अपने पिता को बहुत चाहते है, इसका आभास बहुत सारे चालाक लोगों को हैं, उन्होंने फायदा भी उठाया है। फायदा उठा भी लिया।

अन्त में आज मैं यह भी बता देता हूं कि आज झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी का भी जन्मदिन है, जो आज चालाक पत्रकारों/संपादकों/लेखकों के सीन से गायब है अगर कल बाबू लाल मरांडी सत्तासीन हो गये, तो देखता हूं कि प्रभात खबर का कौन संपादक फिर किसी झामुमो के बड़े नेता का इतनी धूम-धाम से जन्मोत्सव कैसे मनाता है अथवा किताबे लोकार्पित कराता है। ऐसे भी ये सभी किताबें किसलिए छपती है और कैसे इसका लाभ लेखक और प्रकाशक ले जाते हैं, हम सब जानते है। जानते तो वे भी है, जो मंच पर विराजमान थे, पर पता नहीं किन मजबूरियों के शिकार हो जाते हैं।