धर्म

आज तीज है, इसी भादो शुक्लपक्ष तृतीया यानी तीज के दिन पार्वती ने अपने तपोबल से शिव को प्राप्त कर लिया था

बिहार और उत्तर-प्रदेश के इलाके में जब-जब भाद्रपद शुक्लपक्ष हस्तनक्षत्र युक्त तृतीया तिथि जिसे कुछ लोग तीज भी कहते हैं, आता है। बड़ी संख्या में इस इलाके की महिलाएं अपने सौभाग्य की रक्षा के लिए निर्जला व्रत रखती है। रात भर जागकर नृत्य गीतादि कर भगवान शिव और पार्वती की आराधना करती है, ताकि उनका सौभाग्य उनके आशीर्वाद से पुष्पित-पल्लवित होता रहे।

बताया जाता है कि यह व्रत महिलाओं के लिए उतना ही पवित्र है, जैसे नदियों में गंगा, वेदों में सामवेद, देवताओं में विष्णु और इन्द्रियों में मन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, उसी प्रकार महिलाओं के लिए यह व्रत सर्वश्रेष्ठ हैं, क्योंकि इस व्रत को सर्वप्रथम पार्वती ने किया था, वह भी तब जब वह अविवाहित थी, इसलिए कुछ इलाकों में अविवाहित लड़कियां भी अपने मनोनुकूल वर प्राप्त करने के लिए इस व्रत को रखती है।

पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार जब पार्वती का जन्म हिमवान के घर हुआ, तब उनके प्रतिदिन के आचरण व तप के कारण उनके पिता बहुत चिन्तित हो गये, कि पार्वती का विवाह किससे हो? उसी समय नारद वहां पहुंचे और पार्वती के व्याकुल पिता की व्याकुलता यह कहकर दूर कर दी कि पार्वती का विवाह वे विष्णु से करायेंगे। बैठे-बिठाए अपनी बेटी के लिए अनुकूल वर का नाम सुनकर पार्वती के पिता प्रसन्न हुए और पार्वती को भी यह बात सुना दी।

फिर क्या था? पार्वती तो अपने जन्मकाल से ही भगवान शिव को अपना आराध्य मानती थी, ऐसे में पिता की बात उन्हें रास नहीं आई और घर से निकल अपने सखियों के पास रोना-धोना शुरु किया। पार्वती की सखियां भी कोई साधारण नहीं थी, वो पार्वती को ऐसे जंगल में ले गई, जहां एक नदी बह रही थी, और वही सभी ने अपना निवास स्थान बनाया, रहने लगी। सभी का एक ही काम रहता, प्रतिदिन भगवान शिव की आराधना करना।

एक दिन जैसे ही भाद्रपद शुक्लपक्ष हस्तनक्षत्र में तृतीया तिथि का समावेश हुआ। पार्वती ने अनुष्ठान किया। रात भर जगकर भगवान शिव को प्रसन्न करने में अपना ध्यान केन्द्रित किया। पार्वती के इस तपोबल से भगवान शिव का आसन डगमगाया और वे वहां पहुंच गये, जहां पार्वती मौजूद थी। उन्होंने पार्वती से वर मांगने को कहा और पार्वती ने वर में शिव को शिव से ही मांग लिया और फिर इसी के प्रभाव से पार्वती ने भगवान शिव का आधा आसन प्राप्त कर लिया।

कुछ लोग इस व्रत को हरितालिका भी कहते हैं। इस व्रत का नाम हरितालिका इसलिए पड़ा, क्योंकि पार्वती को उनकी सखियां अपनी बातों में हर कर ले गई थी। इस व्रत को विवाहित और अविवाहित दोनों महिलाएं करें। जो अविवाहित हैं, वे शिव व पार्वती के आशीर्वाद से मनोनुकूल वर प्राप्त करती हैं, और जो विवाहित है, उनका सौभाग्य का संवर्द्धन होता है। इस व्रत को तृतीया तिथि के दिन निर्जला रहकर अर्द्धरात्रि में भगवान शिव-पार्वती को पूजन करें और फिर प्रातः पुनः उसी स्थान पर भगवान शिव और पार्वती का पूजन कर अपने व्रत को तोड़ें/पारण करें। इस प्रकार हरितालिका यानी तीज का व्रत करने से स्त्रियों को वो हर चीज प्राप्त हो जाती है, जिनकी उन्हें इच्छा होती है।

यह व्रत कैसे करें? जिस दिन तृतीया तिथि हो, उस दिन सबेरे उठे। नित्यक्रिया कर मन ही मन शिव व पार्वती का ध्यान कर, उनका नाम स्मरण करते रहे। जो भी आपकी श्रद्धा हो, अपने मनोनुकूल फलों व नाना प्रकार के पकवानों, दिव्य वस्त्रों से भगवान शिव व पार्वती का पूजन करें, निश्चय ही ऐसा करने से कल्याण होना सुनिश्चित है, क्योंकि भगवान शिव व पार्वती जैसे भोले-भाले देवता व देवी कोई नहीं है। भगवान शिव व पार्वती का ध्यान समस्त कष्टों को हर लेनेवाला है, ये वेदों/पुराणों/शास्त्रों/महाकाव्यों में भी कहा गया है।