अपनी बात

भगवान बिरसा के नाम पर आज का रांची बंद पूर्णतः विफल, बिरसा के अनुयायियों ने जताई चिन्ता, दिखा आक्रोश

कल जिस प्रकार लाल झंडे और हरे झंडे का सम्मिश्रण और मशाल जुलूस रांची में दिखा था, जैसा जनाक्रोश देखने को मिला था, उससे लगा था कि आज रांची बंद का व्यापक असर देखने को मिलेगा, पर आज ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला, बंद का आंशिक असर देखा गया। शायद बंद करानेवालों को इस बात का आभास था कि सरकार और उनके नुमाइंदे तथा पुलिस उन्हें बेवजह निशाना बनायेगी, उन्हें झूठे मुकदमें में फंसायेगी, इसलिए ये कल की तरह आज बंद कराने को नहीं निकले और जो निकले भी उन्होंने शांतिपूर्वक अपना विरोध दर्ज कराया।

आज के बुलाये गये बंद और जनता द्वारा नहीं मिले समर्थन ने एक बात तो स्पष्ट कर दिया कि रांची की जनता भगवान बिरसा के प्रति कितनी समर्पित है, क्योंकि आज का बंद किसी राजनीतिक दल या सामाजिक संगठनों ने अपने लिए नहीं बुलाया था, यह तो बंद था भगवान बिरसा की प्रतिमा को तोड़े जाने के विरोध में, यह तो एक तरह से पैमाना था कि आप अपने पूर्वजों के प्रति कितना सम्मान रखते हैं और रांची की जनता इसमें पूर्णतः विफल रही।

बंद समर्थकों का कहना था कि रांची के लालपुर में समाधिस्थल पर भगवान बिरसा की प्रतिमा को तोड़ा जाना, झारखंडी अस्मिता पर प्रश्नचिह्न लगाता है, कल लालपुर में ही राज्य के नगर विकास मंत्री सीपी सिंह और आक्रोशित जनता के बीच इसी बात को लेकर तू-तू, में-में भी हुई थी, आज के बंद का विफल होना इस बात का संकेत भी है कि रांची की जनता को पता ही नहीं है कि झारखण्ड के लिए भगवान बिरसा कितने महत्वपूर्ण है।

राजनैतिक पंडितों की मानें तो आजकल महापुरुष भी जातियों-उपजातियों में बंट गये हैं, ऐसे में भगवान बिरसा मुंडा को जानने और माननेवालों की संख्या भी यहां बहुत कम है, जिस कारण ये स्थिति बनी हुई हैं, नहीं तो जरा राजनीतिक दलों के नेताओं के नाम पर ही जो बंद होते हैं, या उसका प्रभाव पड़ता हैं, वो सभी के सामने हैं, अगर यहीं हाल रहा तो आनेवाले समय में केवल जन्मतिथि और पुण्यतिथि के दिन ही भगवान बिरसा को सम्मान मिलेगा और बाकी दिनों की जो स्थिति रहेगी, वो सबके सामने है।

मैं ये नहीं कहता कि बंद के सफल हो जाने से या उसके असरदार रहने से सरकार पर प्रभाव पड़ता, सरकार तो हर जगह, अपने ढंग से चलती है, पर इतना जरुर प्रभाव पड़ता कि सरकार भी जानती कि भगवान बिरसा मुंडा का उसके शासनकाल में निरादर होता है, तो जनता उन्हें माफ नहीं करेगी, पर आज के बंद की विफलता ने सरकार को संदेश दिया कि भगवान बिरसा का आदर करो या निरादर करो, बस प्रशासन टाइट कर दो, बंद विफल हो जायेगा।

आज सारे व्यापारिक प्रतिष्ठान खुले रहे, आमदिनों की तरह सड़कों पर वाहन चले, क्या आदिवासी और  क्या गैर आदिवासी जो भी मिले, उनके चेहरे पर इस बात का दुख नहीं था कि झारखण्ड की अस्मिता को किसी ने कल चुनौती दी, वे आम दिनों की तरह अपने दिन बिताये, जबकि इन्हीं में से कुछ लोग ऐसे भी थे, जिनका दर्द छलका और खूब छलका। वे समाधिस्थल पर पहुंचे, अपनी पीड़ा को अभिव्यक्त किया, क्योंकि उन्हें झारखण्ड से प्यार था, झारखण्ड के महापुरुषों से प्यार था।

इनका कहना था कि वे टूटी हुई प्रतिमाओं पर माल्यार्पण नहीं करते, नये शहीद की प्रतिमा बनवायेंगे, सभी से सहयोग की कामना भी की। इन्होंने घंटों समाधिस्थल पर शांति के साथ वक्त बिताये और धरती आबा को याद किया। इस स्थल पर धरती आबा के पोते कन्हैया मुंडा, सुकराम मुंडा, गांव के लोग, बरनाबास मुंडा, सुंदर मुंडा आदि भी प्रतिमा को देखने के लिए वहा आये। इन्हीं में से कुछ लोगों ने प्रतिमा के शुद्धिकरण करने की प्रक्रिया को शुरु करने, सात दिनों तक क्रमबंध उपवास, समाधिस्थल पर वृक्षारोपण आदि करने की योजना भी बनाई तथा आज का उपवास समाप्त किया।