रांची के कई पत्रकारों/मीडिया संस्थानों पर आदिवासी महिला ने लगाया गंभीर आरोप, धारा 354 व 228ए के तहत अरगोड़ा थाने में FIR दर्ज
एक पीड़ित आदिवासी महिला ने रांची के कुछ पत्रकारों व मीडिया संस्थानों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है। यह प्राथमिकी चार पृष्ठों का है। जिसे रांची के अरगोड़ा थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 354 व 228 ए के तहत निबंधित भी कर ली गई है। जिसका कांड संख्या 63/2021 प्राथमिकी में उद्धृत है।
इस प्राथमिकी में कुछ चैनलों व अखबारों में कार्यरत पत्रकारों के नाम भी उल्लिखित है, जिनके खिलाफ उक्त महिला ने गंभीर आरोप लगाये है। महिला का कहना है कि उसके साथ गलत हो रहा है। महिला ने प्राथमिकी में इस बात का उल्लेख किया है, कि न्याय दिलाने के नाम पर, कुछ पत्रकारों ने उसके साथ गलत किया, कुछ ने उसके शरीर को छूने की कोशिश की।
प्राथमिकी में तो एक चैनल के पत्रकार के बारे में यहां तक लिखा हुआ है कि उस पत्रकार ने एक दिवंगत आइएएस के घर पर ले जाकर, उस आदिवासी महिला के साथ जबर्दस्ती करने की कोशिश की थी। महिला का कहना है कि सोशल साइट पर उसके नाम से ऐसे-ऐसे दृश्य दिये गये हैं, जिससे उसका और उसके परिवार का जीवन ही प्रभावित हो चुका है, इसलिए वह न्याय की गुहार लगा रही है। आदिवासी महिला ने प्राथमिकी के साथ अखबार के कटिंग्स भी लगाये है, साथ ही सोशल साइट पर उपलब्ध उससे जुड़े सारी चीजें नष्ट कराने की स्थानीय पुलिस से अपील की है।
उक्त आदिवासी महिला के लगाये गये आरोप बहुत ही गंभीर है, अगर पत्रकार इस प्रकार की हरकते करेंगे, मीडिया संस्थाने ऐसी हरकतें करेंगी तो ऐसे में निःसंदेह मीडिया पर से भी लोगों का विश्वास उठ जायेगा, क्योंकि हार-थककर व्यक्ति मीडिया के पास ही अपनी बातें रखने जाता है, लेकिन जब मीडिया के लोग ही उसके जीवन को नारकीय बना दें, तो समझ लीजिये हमारे समाज में कितनी गिरावट आयी है।
होना तो यह चाहिए कि जिस चैनल/अखबार का संवाददाता ऐसी घिनौनी हरकतें करता है, उस चैनल/अखबार को चाहिए कि ऐसे संवाददाता से दूरियां बनाएं, पर जब चैनल ही ऐसे लोगों का महिमामंडन करें, तो क्या कहेंगे? देखने में तो यही आ रहा है कि ऐसे ही लोग, विभिन्न राजनीतिज्ञ/पुलिस द्वारा आयोजित प्रेस कांफ्रेसों में आगे की कुर्सियों पर विराजमान होते हैं।
एक को तो मैंने कई बार देखा है कि थाने में थाना प्रभारी के सामने टांग पर टांग चढ़ाकर, थाना प्रभारी को ही उपदेश दे रहा होता है, और थाना प्रभारी उसे पानी की बोतलें-चाय तक की उसको पेशकश कर देते हैं, यानी जिन्हें जेल में रहना चाहिए, आज उनका थाने में सम्मान हो रहा है और ऐसे लोगों के इशारे पर ईमानदारों को जेल भेजने की तैयारी हो रही है।
ऐसे में, जहां इस प्रकार की गतिविधियां चल रही हो, वहां उक्त आदिवासी महिला को न्याय मिलेगा, हमें नही लगता। राज्य सरकार को चाहिए कि इस मामले को गंभीरता से देखें, तथा इसकी न्यायिक जांच करायें, साथ ही पुलिस को हिदायत दें कि आनेवाले समय में कोई कथित पत्रकार किसी महिला के सम्मान के साथ न खेल सकें, लेकिन ये तभी होगा, जब मीडिया को चला रहे शीर्ष लोगों पर दबाव बनें, उनके द्वारा चलाये जा रहे गलत कामों पर रोक लगे, उनके ब्लैकमेलिंग पर रोक लगे, उन्हें मिले बॉडीगार्डों को वापस लिये जाये, पर ये कौन करेगा?
साफ है, वही करेगा, जो भारत की संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा रखेगा, अगर गलत लोगों को संरक्षण देने में मन लगायेगा, अदालत द्वारा भेजे गये कुर्की जब्ती के आदेश पर कुंडली मारकर बैठ जायेगा, उनके गैर-कानूनी कार्यों को बढ़ावा देगा, तथा उनके साथ बैठकर हा-हा, ही-ही करेगा, तो क्या खाक पीड़ित आदिवासी या अन्य संभ्रांन्त लोगों को न्याय दिलायेगा?