बिना राम यानी बिना सत्य को अपनाएं, दीपावली मनाने का प्रयास स्वयं को धोखे देने के सिवा और कुछ नहीं
लो जी, फिर आ गई दीपावली, खूब चाइनीज लड़ियां अपने घरों में लगाइये, चाइनीज गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमा लाकर पूजा करिये, जमकर मिठाइयां खाइये, रात में पटाखें छोड़िये और फिर रात को चादर तानकर सो जाइये, और लीजिये हो गई दीपावली। भारत में दीपावली 95 प्रतिशत लोग इसी प्रकार मनाते हैं, बहुत ही कम लोग हैं, ऐसे हैं जो दीपावली को दीपावली की तरह मनाते हैं।
जरा पूछिये, दीपावली मनानेवालों से कि वे इस दिन कभी मुंह से श्रीराम का नाम भी निकालते हैं क्या?, अथवा उन्हें याद भी करते हैं क्या? उत्तर होगा नहीं – क्योंकि, मैंने पहले ही कहा कि उनके लिए दीपावली का मतलब मस्ती करना है। जबकि सच्चाई यह है कि दीपावली मस्ती का पर्व हैं ही नहीं, यह तो मन के अंधकार पर दीप के प्रकाश से स्वयं को आलोकित करने का पर्व हैं, ये तो मन पर काबू पाने का पर्व हैं।
जरा चिन्तन करिये, कैसी होगी वह अयोध्या? कैसे होंगे वे लोग? जिन्होंने श्रीराम का स्वागत घी के दिये जलाकर, अपने पूरे घरों को दीपक से जगमग कर दिया होगा, कैसी लगती होगी उस काल की अयोध्या? तभी तो मैं आज भी गर्व से कहता हूं, जहां राम, वहीं अयोध्या और जहां अयोध्या वहीं दीपावली, बाकी किसी जगह दीपावली हो ही नहीं सकती। राम का मतलब सत्य और जहां सत्य होगा, वहां अंधकार हो ही नहीं सकता और जब अंधकार ही नहीं होगा तो फिर उस दिये की जगमग कैसी होगी, जिसने सत्य को धारण कर रखा हैं, जरा सोचिये।
सोचिये, आपको सोचना ही होगा, क्या आप अनैतिक तरीके से कमाये गये धन अथवा संचित धन से अपने मन के अंधकार पर विजय पा सकते हैं? क्या आप जहां हैं, और वहां अनैतिक धन की बारिश में आप स्वयं को निरन्तर भींगोते रहे हैं, क्या आपको दीपावली का मतलब भी पता हैं, नहीं न। दीपावली का पता तो सिर्फ उसे हैं, जिसने अपने जीवन को प्रकाश से भरने का हमेशा प्रयास किया।
परमहंस योगानन्द जी तो साफ कहते है कि जब तक मनुष्य अपने मन को काबू में रखकर ध्यान को नहीं अपनायेगा, अपने आपको ईश्वर प्राप्ति में नहीं लगायेगा, उसे परम आनन्द की प्राप्ति हो ही नहीं सकती, और जिसे परम आनन्द की प्राप्ति होगी ही नहीं, वह दीपावली क्या मनायेगा, क्योंकि बाजार में रखी हुई मिट्टी या पत्थरों के खिलौने, नाना प्रकार की मिठाइयां, नाना प्रकार की सामग्रियां, आंखों को चुंधियाते बहुमूल्य रत्न मनुष्य को भौतिक सुख का आनन्द दे सकते हैं, परम सुख नहीं प्रदान कर सकते। सचमुच जब भी मैं परमहंस योगानन्द जी का चिन्तन करता हूं, तो मुझे दीपावली के महत्व का पता चलता हैं।
जरा सोचिये कबीर, तुलसी, मीरा, सूर, रविदास और नानक कैसी दीपावली मनाते होंगे, क्या हम ऐसे आध्यात्मिक पुरुषों/महिलाओं की तरह कभी दीपावली मनाई। दूसरों के लिए स्वयं को समिधा बनाकर जलाने की परम्परा को विकसित करते हुए, दूसरों को आनन्द देना ही तो दीपावली हैं, मैं तो कहता हूं कि कभी इस प्रकार की दीपावली मनाकर देखियेगा, सचमुच आपको लगेगा कि आपकी जिंदगी में सही मायनों में उसी दिन दीपावली हुई हैं।
पूर्व के अखबारों-चैनलों में तो दीपावली के आने के पहले दीपावली पर विशेष आलेख व परिचर्चाएं सुनने व पढ़ने को मिलती थी, पर आजकल जैसी स्थिति हैं, इन सारे अखबारों-चैनलों में मूर्खों-चालबाजों ने कब्जा जमा लिया है, नतीजा यह है कि अब दीपावली में क्या खरीदें, कब खरीदें, कब पूजा करें, कब पूजा नहीं करें, कौन सा कपड़ा पहनकर पूजा करें, क्या लक्ष्मी को पसन्द हैं, क्या गणेश को पसन्द हैं, इस प्रकार की बेसिर-पैर की बातें होती हैं, जबकि जो लोग सत्य को जानते हैं, वे तो सीधे कहते है कि जब शबरी के जूठे बेर भगवान श्रीराम खा सकते हैं, तो फिर भगवान को क्या खाने में पसन्द हैं, इस पर चर्चा करना ही बेमानी हैं।
दरअसल भगवान भाव के भूखे होते हैं, आप उन्हें कुछ न चढ़ाएं तो भी उनके लिए कोई मायने नहीं रखता पर जब आपके अंदर उसमें भाव छुप जाता हैं तो भगवान के लिए उसे ग्रहण करना मजबूरी हो जाता हैं। मैं तो कहूंगा कि आप दीपावली के दिन अखबारों व चैनलों में क्या लिखा हैं, सब भूल जाइये, और स्वयं को देखिये। अच्छा रहेगा कि आप सत्यव्रत धारण करें, अपने शरीर की साफ-सफाई तो रखे ही, अपने मन की सफाई पर विशेष ध्यान दें, तथा जो आपकी आत्मा कह रही हैं, उसी पर ध्यान दें और भगवान गणेश-लक्ष्मी की पूजा अर्चना करें।
भगवान श्रीराम की सत्यनिष्ठता को याद करें, और कोशिश करें की आप श्रीराम जैसा बनने का प्रयास करें, क्योंकि असली दीपावली वहीं मना पायेगा जो श्रीराम जैसा होगा और अगर कोई कहता है कि वह दीपावली बिना राम जैसे बने ही मना रहा हैं, तो वह शुद्ध रुप से झूठ बोल रहा हैं, और वह खुद को बरगला रहा हैं, क्योंकि प्रकाश फैलानेवाली दीप वहीं अपना धमाल दिखायेगा, जो सही मायनों में अंदर से शुद्ध होगा।
कभी आपने सोचा है कि दूसरे देशों में गणेश-लक्ष्मी की पूजा अर्चना नहीं होती, फिर भी वे समृद्ध हैं, और हम दुखी क्यों हैं? उसका मूल कारण है कि हम समझते है कि गणेश व लक्ष्मी की पूजा कर लेने से दरिद्रता का नाश हो जाता हैं, भले ही हम अपने चरित्र और देशप्रेम को याद रखे अथवा नहीं, जबकि ऐसा नहीं हैं, दूसरे देशों में ठीक स्थिति उलट हैं, वहां चरित्र और देशप्रेम झलकता हैं।
जिसके कारण जापान जैसा भारत से भी बहुत छोटा देश, पूरे विश्व में अहम स्थान रखता है, यहीं नहीं अपना पड़ोसी मुल्क चीन उसे वामपंथ अपनाएं मात्र 70 साल हुए, वो अमरीका को चुनौती दे रहा हैं और हमारी स्वतंत्रता प्राप्ति के 73 साल हो गये और हमारी स्थिति आज भी नारकीय हैं, आज भी हम दूसरे देशों से अपने यहां निवेश करने के लिए भीख मांग रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि दुनिया का कोई देश तब तक तरक्की नहीं कर पाया, जब तक वहां के लोगों ने अपने ढंग से, अपने देश से प्यार करना नहीं सीखा, अपने मूल्यों पर गर्व करना नहीं सीखा।
दीपावली आज यहीं कह रहा हैं, भारतीयों स्वयं को पहचानों। तुम उपभोक्तावादी संस्कृति के वाहक नहीं हो, तुम्हारी परम्परा-संस्कृति त्याग पर आधारित हैं। श्रीराम कह सकते थे, कि हे पिता आपने माता कैकेयी को दो वरदान दिये थे, ये आपका प्राब्लम हैं, आपने ये वरदान क्यों और किसलिए दिया, उससे हमें क्या मतलब? मैं तो अयोध्या नरेश का ज्येष्ठ पुत्र हूं, इसके अनुसार तो मैं ही अयोध्या के राजसिंहासन पर बैठने का अधिकारी हूं, इसलिए मैं वनगमन नहीं करुंगा तो फिर क्या होता? क्या फिर श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते, नहीं न।
बस यही जानने की जरुरत हैं। श्रीराम ने अपने पिता की बातों की रक्षा करने के लिए वनगमन किया। जंगल के खाक छाने। वन में रहनेवाली संतों-महात्माओं का अनुसरण किया। रावण से लड़ने के लिए भालूओं-वानरों की संगति की विजय पाया। रावण के साथ युद्ध करने पर भी धर्मानुसार आचरण किया और फिर अयोध्या लौटे, तभी लोगों ने दीपावली मनाई, यानी बाकी 14 वर्ष बिना राम के अयोध्या कैसी होगी? चिन्तन करिये।
भारत खाने-पीने और मस्ती करने का नाम नहीं हैं, भारत त्याग का दुसरा नाम हैं। आइये दीपावली के संदेश को जन-जन तक पहुंचाएं, लोगों को बताएं कि आज अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनाने से भी ज्यादा, अपने हृदय रुपी मन में श्रीराम को स्थापित करने की जरुरत हैं, यानी सत्य को स्थापित करने की जरुरत है, जिससे हमारी आत्मा आलोकित हो जाये और हम सही मायनों में दीपों की सहस्र पंक्तियों के साथ स्वयं को कह सकें कि मैं शरीर नहीं, मैं आत्मा हूं, मैं दिव्य आत्मा हूं, मैं प्रकाशित हो चुका हूं, मैं आलोकित हो चुका हूं, मुझे अंधकार जकड़ नहीं सकता, इसलिए मैं आज सही मायनों में दीपावली मना रहा हूं।