दुर्भाग्य बिहार का, जहां आज स्वार्थी, लालची, मौकापरस्त, पलटीमार नेताओं ने डेरा जमा लिया हैं
मैंने 7 दिसम्बर को ही इस बात की घोषणा कर दी थी कि ऐसा होगा, और लीजिये वहीं होना शुरु भी हो गया, जिनकी कोई औकात नहीं, जो कभी किसी जिंदगी में खुद भी एक लोकसभा या विधानसभा की सीट नहीं निकाल सकते, वे अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेन्द्र मोदी को सवाल दाग रहे हैं, अगर आप विद्रोही24.कॉम के नियमित पाठक है तो “अपनी बात” कॉलम में 7 दिसम्बर को लिखी हमारी आर्टिकल “एक्जिट पोल के अनुसार राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ की जनता ने भाजपा को बाहर का रास्ता दिखाया” को पढ़े, स्पष्ट पता चल जायेगा।
हमने साफ लिखा था कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से जैसी रिपोर्ट आ रही है, इन राज्यों से भाजपा का सफाया सुनिश्चित लग रहा है, और अगर ऐसा होता है, तो ये भाजपा के लिए एक बहुत बड़ा मुसीबत लायेगा, क्योंकि ऐसे लोग उस वक्त फिर से सिर उठाने की कोशिश करेंगे, जिन्होंने अपनी जीत और सीटों की लालच में 2014 में बिना शर्त समझौता कर, अपनी स्थिति मजबूत कराई थी, इस परिणाम के बाद ये अनाप-शनाप बयान जारी करेंगे, सवालों की झरियां लगायेंगे और हार की ठीकरा भाजपा की नीतियों को ठहरायेंगे।
आखिर ऐसे कौन लोग है, जाहिर है, इसमें बिहार के नेता ज्यादा होंगे, क्योंकि मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भाजपा की सीधी टक्कर कांग्रेस से होती है, और ऐसे प्रदेशों में इन जैसे छुटभैये और अक्ल के अंधे जैसे नेताओं की चलती भी नहीं, पर चूंकि बिहार में जितनी जाति, उतने नेता हैं, भले ही उनके जाति के लोग उनके नाम पर वोट दे या न दें, पर ये अपनी जाति का नेता तो खुद ताल ठोककर बता देते हैं।
अब जरा उपेन्द्र कुशवाहा को देख लीजिये, ये खुद को कोईरी नेता बताते है, कुछ दिन पहले तक उन्हें मोदी में महानायक दीखता था, पर जैसे ही इन तीन राज्यों में भाजपा की हार दिखी और भाजपा के लोगों द्वारा उन्हें भाव मिलता नहीं दिखा, लीजिए लगे भाजपा और उनके नेताओं के खिलाफ राग भैरवी गाने।
ठीक इसी प्रकार बिहार में एक मौसमी नेता है, जिनका नाम है राम विलास पासवान, एक समय भाजपा को गरियाने में ही इनका समय बीतता था, बाद में जब इन्हें 2014 में मोदी लहर दिखा तो ये मोदी के साथ हो लिये और चूंकि अब तीन राज्यों में भाजपा की हार हो गई, तो इन्हें और इनके इकलौते होनहार पुत्र चिराग पासवान को भी मोदी में बहत्तर छेद दिखाई पड़ने लगे हैं, और जीतन राम मांझी हो या शरद यादव, उन्हें खुद पता है कि ये कितने बड़े नेता हैं, और इनकी औकात क्या है?
शायद इसीलिये एक लोकोक्ति है कि उगते सूर्य को सभी प्रणाम करते है, पर शायद इन दीदा खोये हुए नेताओं को पता ही नहीं कि बिहार में डूबते सूर्य को भी प्रणाम करने की मान्यता है, और लोग करते भी है। इन्हें लगता है कि नरेन्द्र मोदी की हालत खराब हो गई है, इन्हें लगता है कि भाजपा का सूर्य ढलान पर है, पर इन्हें नहीं पता कि अभी लोकसभा के चुनाव होने में चार महीने देर है, और मोदी हर हार को जीत में तब्दील करने की कला खूब जानता है।
ऐसे भी इन दीदा खो चुके नेता को पता ही नहीं कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जिस भाजपा को वो हारा हुआ मान रहे हैं, वहां आज भी कांग्रेस अपनी बहुमत के लिए किसी दूसरे पर टिकी है और भाजपा आज भी वहां एक बहुत बड़ी और मजबूत विपक्ष के रुप में खड़ी है, जबकि इन सारे नेताओं की किसी अन्य प्रदेशों में औकात भी नहीं, कि किसी को जीता सकें या हरा सकें या इनकी इतनी भी औकात नहीं कि ये बिहार में अपनी सीट भी बचा सकें।
रामविलास पासवान, उपेन्द्र कुशवाहा, शरद यादव, जीतन राम मांझी, नीतीश कुमार जैसे नेताओं ने बिहार की राजनीति की वो मिट्टी पलीद की है, जिसकी जितनी भर्त्सना की जाय कम है, एक अकेले लालू यादव ही रहे, जिसने कभी भाजपा के साथ समझौता नहीं किया और वे अंतिम सांस तक भाजपा के खिलाफ लडने को तैयार है, ये अलग बात है कि जब वे पहली बार बिहार में सत्ता संभाले थे, तो भाजपा का साथ लिया था, पर ये नहीं भूलना चाहिए कि उन्होंने बिहार में सत्ता कांग्रेस से छीनी थी, और उस वक्त पूरे देश में एकछत्र कांग्रेस का शासन हुआ करता था।
उस वक्त लोगों की एक ही चाहत होती थी कि कांग्रेस को हराया जाय, ठीक उसी प्रकार जैसे आज इन दीदा खोये नेताओं ने महागठबंधन बनाकर भाजपा को चुनौती देने में ज्यादा दिमाग लगा रहे हैं, एक समय ऐसा भी था कि यहीं स्थिति कांग्रेस के लिए हुआ करती थी और इसी में जनता पार्टी का गठन भी हुआ, दरअसल ये जनता पार्टी भी नहीं था, बल्कि आज का महागठबंधन था, जिसमें कई पार्टियां शामिल थी, जो बाद में फिर से अलग-अलग अपने अस्तित्व में आ गई, पर जिस कांग्रेस यानी इंदिरा गांधी को चुनौती देने के लिए जनता पार्टी का गठन हुआ, इन्दिरा जब तक रही, जनता पार्टी के लोग उनके सामने टिक नहीं सके, और यहीं हाल आज नरेन्द्र मोदी की भी है।
इन्दिरा और मोदी में कुछ चीजों में समानता आप देख सकते हैं, जैसे इंदिरा गांधी किसी को नहीं समझती थी, ठीक उसी प्रकार नरेन्द्र मोदी भी किसी को नहीं समझते, वे जिस चीज को सही मान लेते है, उस पर अडिग रहते है, चाहे उसके लिए कुछ भी क्यों न करना या सहना पड़े, ये एक निडर और साहसी पुरुष की निशानी है, जो कायर होंगे, वे खराब समय आने पर अपना असली कुरुप चेहरा अवश्य दिखायेंगे, आप पर सवाल अवश्य दागेंगे, क्योंकि ये कायरों के महत्वपूर्ण लक्षण है, पर जो वीर होते है, वे सवाल नहीं पुछते, थोड़े देर के लिए चुपी लगा देते है, क्योंकि उन्हें शर्म होता है कि लोग क्या कहेंगे?
हमें याद है कि गुजरात में जब 2002 में सांप्रदायिक दंगे हुए, तब उस दंगे के मुद्दे पर रामविलास पासवान, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से अलग हो गये, जब 2004 के लोकसभा चुनाव में हमारी मुलाकात रामविलास पासवान से हुई और हमने अटल बिहारी वाजपेयी से संबंधित कुछ सवाल दागे तब उनका कहना था कि वे वाजपेयी जी की सरकार में शामिल रहे हैं और वैसे नेता के खिलाफ मैं कभी टिप्पणी नहीं करना चाहुंगा, पर आज रामविलास पासवान के ही बेटे चिराग पासवान द्वारा नोटबंदी पर सवाल खड़ा करना और चुनाव परिणाम के समय हिन्दू देवी-देवता के मसले उठाने से भाजपा हार गई, इस प्रकार की टिप्पणी करना, बता देता है कि चिराग पासवान राजनीति में कितने परिपक्व है, आश्चर्य तो और हुआ, जब उन्हें तेजस्वी में बहुत कुछ नजर आने लगा, पता नहीं ऐसे नेता, जो अपना दीदा खो चुका है, वो बिहार को क्या देगा?
यह सीधा बिहार का दुर्भाग्य है कि बिहार में एक नेता नीतीश कुमार हुए, जिसने खुद को पलटू कुमार बना दिया, जो कब किसके साथ मिल जायेगा, कहा नहीं जा सकता, ठीक उसी प्रकार बिहार में सभी नेता हो गये, जिनकी औकात नहीं कि वे एक सीट जीत सकें, वे अपनी-अपनी जातियों के प्रधान बन गये, ये बिहार के सम्मान के साथ खेलनेवाले नेताओं को सबक जब तक जनता नहीं सिखायेंगी, बिहार कभी आगे नहीं बढ़ सकता, पर इन नेताओं की राजनीति और आर्थिक शक्ति जरुर मजबूत हो जायेगी, इसलिए बिहार की जनता जितनी जल्द जग जाये, उतना अच्छा है।
भाजपा के लिए तो मैं यहीं कहूंगा कि अब भी वक्त हैं, लालची, स्वार्थी, मौकापरस्त राजनीतिबाजों से वह दूरियां बनाये, ये जो अन्य दलों के पलटीमार नेताओं को चुनावी मौसम में अपनी पार्टी में शामिल करने का जो उसके यहां फैशन चल गया है, उससे दूरियां बनाये, नहीं तो ऐसे बरसाती मेंढकों को झेलते रहे, ये तो खैर कहिये कि 2014 में भाजपा को जनता ने पूर्ण बहुमत से कुछ ज्यादा सीटें, लोकसभा में दे दी, जिसमें बिहार की जनता की भी प्रमुख भूमिका थी, नहीं तो ये बिहार के लालची, स्वार्थी, मौकापरस्त नेता, भाजपा और मोदी के सामने इतनी मुसीबत खड़ी कर देते कि एक कदम भाजपा के लिए चलना मुश्किल होता, तथा देशहित में निर्णय लेने में भी मुसीबत होती।
इसलिए भाजपा जितनी जल्दी समझ जाये, वह भी लोकसभा चुनाव के पहले, उतना ही अच्छा है, यहीं बात कांग्रेस के लिए भी है, कांग्रेस के नेताओं को जो इन लालची, स्वार्थी और मौकापरस्त नेताओं में जो भविष्य दीख रहा है, अच्छा है एकला चलो के नारे के साथ, चुनावी समर में कूदे, नहीं तो ये कांग्रेस को भी नहीं छोड़ेंगे, अरे जब ये खुद को नहीं छोड़ते तो किसी को क्या छोड़ेंगे?