CM रघुवर दास की अमर्यादित भाषा और उनका राजनीतिक दिव्य ज्ञान
शायद किसी ने ठीक ही कहा है कि बहुत कम लोगों को ही सत्ता पचती है, ज्यादातर लोग तो सत्ता मिलते ही उलटी करने लगते है। जब से रघुवर दास ने मुख्यमंत्री पद संभाली है, तब से लेकर आज तक न तो जनता में, न बुद्धिजीवियों में और न ही राजनीतिक क्षेत्रों में इनकी भाषा और बोलचाल की प्रशंसा हुई है, ज्यादातर जगहों में इन्होंने अपनी भाषा से, अपनी बोलचाल से खुद की तथा भाजपा जैसी पार्टी की किरकिरी करा दी है।
अभी ज्यादा दिनों की बात नहीं है, जनाब हाल ही रांची के कांके के गागी गाव में कह दिया कि सोरेन परिवार ने सबसे ज्यादा लूटा है। एक-एक दिन में मां, पत्नी, बेटा और बहूओं के नाम पर छः-छः रजिस्ट्री करा ली है, क्या इनके पास पैसे छापने की मशीन है, इन लोगों ने कहा-कहा नही लूटा, दुमका, संताल परगना, बोकारो, धनबाद में सोरेन परिवार के लोगों ने सीएनटी एक्ट का उल्लंघन किया, ये लोग कंबल ओढ़कर घी पी रहे हैं। इसी दिन इन्होंने जामताड़ा में कह दिया कि 1993 में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने झारखण्ड को बेचा।
अब सवाल उठता है कि अगर मुख्यमंत्री रघुवर दास की यही भाषा है और उनका यहीं राजनीतिक दिव्य ज्ञान है तो एक तरह से नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ने ठीक ही कहा कि राज्य में आप, केन्द्र में भी आप, तब ऐसी हालात में आपको कार्रवाई करने से रोका किसने है? और सवाल नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ही क्यों? आम जनता सीएम रघुवर दास से पुछती है कि जब 1993 में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने झारखण्ड को बेचा तो आप उसी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की सहायता से झारखण्ड मे 2010 में सरकार क्यों बनाया, वहीं शिबू सोरेन के नेतृत्व में आपने उपमुख्यमंत्री का पद क्यों संभाला? जब सोरेन परिवार ने आदिवासियो को सबसे ज्यादा लूटा तो आप वहीं, आपके अनुसार लूटनेवाले के साथ आपने 2010 में सत्ता का स्वाद क्यों चखा? यानी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में कड़वा-कड़वा थू-थू और मीठा-मीठा चप-चप।
मुख्यमंत्री रघुवर दास जी, आप अपने राजनीतिक विरोधियों पर जमकर बरसिये, राजनीति में सब चलता है, पर इतना जरुर बचा कर रखिये कि जब कभी मिले तो आंख से आंख मिलाकर बात कर सकें, ऐसा नहीं कि आप अपनी मर्यादा ही खो दे और लोग आपको सम्मान करना ही भूल जाये। जैसा कि नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ने कल आपको यह कहकर अच्छा जवाब दिया कि घोर कलियुग है भाई, चीलम का धुआं, आंदोलन की आग को चुनौती दे रहा है।
अंत में सीएम रघुवर दास, आपको हम बता देते है कि अपने विरोधियों के प्रति भाषा कैसी होनी चाहिए? आप केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान से सीखिये। सन् 2002 में जब गुजरात में दंगा हुआ तब उस वक्त पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में कैबिनेट मंत्री राम विलास पासवान थे, जिन्होंने खुद को केन्द्र सरकार से अलग कर लिया और इस्तीफा दे दिया। हमारी मुलाकात जब 2004 में धनबाद में लोकसभा चुनाव के दौरान राम विलास पासवान से हुई तब उन्होंने कभी भी कोई ऐसी बात नहीं की, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान को ठेस पहुंचता हो।
आपको मालूम होना चाहिए कि जिन शिबू सोरेन के बारे में आप आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग कर रहे हैं, उन्हीं शिबू सोरेन को कभी आपकी ही पार्टी ने राज्यसभा जाने में सहयोग भी किया था, पर आप तो अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को सम्मान नहीं देते, कार्यकर्ताओं पर आंख तरेरते हैं तो आप दूसरे दलों के नेताओं को क्या सम्मान देंगे? इसलिए आप से मर्यादा, भाषा, बोलचाल और राजनीतिक सम्मान की आशा रखना ही मूर्खता को सिद्ध करने के बराबर है।