हेमन्त ने दिखाई ताकत, रघुवर को दिया संदेश, 2019 में राज्य में नहीं खिलेगा कमल
इतनी कूबत सत्तापक्ष में किसी नेता के पास नहीं, जो संपूर्ण विपक्ष को एकता के सूत्र में पिरोकर, अपनी बात मनवा लें, जो काम कल नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ने कर के दिखा दिया। भूमि अधिग्रहण को लेकर राज्य सरकार की दोषपूर्ण नीतियों को जन-जन तक पहुंचाकर और उसका खामियाजा विधानसभा के उपचुनावों में सत्तापक्ष को दिला कर हेमन्त सोरेन ने दिखा दिया कि आनेवाला कल सिर्फ और सिर्फ उनका है।
गोमिया और सिल्ली उपचुनाव में संपूर्ण विपक्ष को अपनी ओर मिलाना तथा हर मुद्दों पर संपूर्ण विपक्ष को विश्वास में लेकर एक-एक पग बढ़ाना, हेमन्त सोरेन के राजनीतिक कद को बड़ी तेजी से बढ़ा रहा है। विधानसभा हो या विधानसभा के बाहर, सत्तापक्ष को हर मोर्चों पर विफल करने की कला हेमन्त सोरेन ने बहुत अच्छी तरह सीख ली हैं, शायद ये बात भाजपा के रघुवर एंड कंपनी को मालूम नहीं। राज्य सभा के चुनाव में सत्तापक्ष द्वारा की जा रही मनमानियों पर अपने राजनीतिक चतुराई से सत्तापक्ष को धूल चटाने की प्रवृत्ति आज के नये राजनीतिज्ञों को कम से कम नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन से सीखनी चाहिए।
कल की ही बात हैं, कल हेमन्त सोरेन के आवास पर जो घटना घट रही थी, वह कोई सामान्य घटना नहीं थी। इसकी रुपरेखा तो उसी दिन बनकर तैयार हो गई थी, जब अखबारों में समाचार आया कि राष्ट्रपति ने भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पर अपनी रजामंदी दे दी है। इधर रजामंदी के समाचार और उधर संवाददाताओं को अपने आवास पर बुलाकर सीधे सत्तापक्ष को 24 घंटे के अल्टीमेटम और 18 जून को संपूर्ण विपक्ष की बैठक बुलाकर आंदोलन की रुपरेखा तैयार करने की घोषणा बताता है कि हेमन्त सोरेन नहीं चाहते कि सत्तापक्ष को कोई भी ऐसा मौका मिले, जिसका लाभ वह उठाकर, आनेवाले 2019 के चुनाव में वे फिर से सत्तासीन हो सकें, हालांकि मुख्यमंत्री रघुवर दास को उनकी कनफूंकवों की टीम ने ही कहीं का नहीं छोड़ा हैं, शायद यहीं कारण है कि कल तक जो हेमन्त सोरेन कहा करते थे, अब तो झामुमो और अन्य विपक्षी दलों का एक-एक कार्यकर्ता कहने लगा है कि जितना दिन रघुवर दास मुख्यमंत्री के रुप में बरकरार रहेंगे, उतना ही फायदा 2019 के चुनाव में हेमन्त सोरेन को मिलेगा। वे मुख्यमंत्री पद पर काबिज होंगे।
राज्य में पहली बार देखने को मिला कि राज्य व केन्द्र सरकार एवं भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक के खिलाफ सम्पूर्ण विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने हेमन्त सोरेन पर विश्वास व्यक्त करते हुए कार्डिनेशन कमेटी बनाने की जिम्मेवारी भी हेमन्त सोरेन को सौंप दी। अगर राजनीतिक घटनाक्रमों को ध्यान से देखें तो हेमन्त सोरेन को कार्डिनेशन कमेटी बनाने की जिम्मेवारी मिलना कोई साधारण बात नहीं और जिस अंदाज में हेमन्त सोरेन ने भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक के खिलाफ क्रमानुसार आंदोलन के तिथियों की घोषणा और फिर राजभवन के समक्ष 28 जून को महाधरना और फिर 5 जुलाई को झारखण्ड में महाबंदी की घोषणा की, वह बताता है कि हेमन्त सोरेन का लक्ष्य स्पष्ट हैं, पर सीएम रघुवर दास अपने रास्ते से भटक रहे हैं और उन्हें भटकाने में कनफूंकवों का बहुत बड़ा योगदान है। हम दावे के साथ कह सकते है कि सीएम रघुवर दास के आस-पास जो लोग बैठते हैं, वे राजनीति में नौसिखुवे और आला दर्जे के बेवकूफ हैं, जिसका फायदा हेमन्त सोरेन ने बखूबी उठाया हैं।
फिलहाल वर्तमान में जिस प्रकार हेमन्त सोरेन ने अपनी राजनीतिक कद को तेजी से बढ़ाया है और जिस प्रकार से झारखण्ड के गांव-गांव में तथा अब तो शहरी इलाकों में झामुमो का परचम बढ़ाया हैं, वो बताता है कि वे अब आदिवासी-मूलवासी ही नहीं, बल्कि राज्य के सभी नागरिकों में सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में शीर्ष स्थान पर पहुंच गये हैं।