वाह री भाजपा, बेटा यूपी का मंत्री और पिता बिहार का गवर्नर, क्या ये परिवारवाद नहीं
बधाई दीजिये लालजी टंडन को, वे बिहार के नये राज्यपाल बनाये गये हैं। 83 वर्षीय लाल जी टंडन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के विश्वासपात्र रहे हैं। कभी वे लखनऊ संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत कर, सांसद भी बने हैं और अब बिहार के राज्यपाल की भूमिका में नजर आयेंगे।
हम आपको बता दें कि लाल जी टंडन के बेटे आशुतोष टंडन उर्फ गोपाल जी टंडन, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा विभाग के कैबिनेट मंत्री हैं। वे लखनऊ पूर्व विधानसभा से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते हैं। चूंकि लाल जी टंडन भाजपा में एक हस्ती का नाम रहा है, इसलिए आशुतोष टंडन को इसका लाभ भी मिला और वे योगी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री के रुप में शामिल हुए।
यानी पुत्र मंत्री, पिता गवर्नर। क्या बात हैं, कल तक दूसरे दलों के नेताओं को राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा देनेवाले का तमगा देनेवाले, आज परिवारवाद का भी रिकार्ड तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ने जा रहे। अभी हाल ही में पटना के एक जातीय रैली में भाग लेकर, झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बिहार के लालू प्रसाद, केन्द्र की सोनिया गांधी और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को इसी बात को लेकर जमकर कोसा था, पर जनाब रघुवर दास को अपना गिरेबां देखने की फुर्सत नहीं, ऐसे भी अपना गिरेबां देखने की किसी को फुर्सत कहां, क्योंकि वे जैसे ही अपना गिरेबां देखेंगे तो उन्हें असलियत पता चलने का खतरा जो होगा।
अब सवाल उठता है कि क्या बिहार-झारखण्ड या देश की संपूर्ण जनता, इतनी बेवकूफ है कि उसे भाजपा में चल रही परिवारवाद की इस शृंखला पर उसकी नजर नहीं, हमें तो नही लगता, नजर तो उसकी भी हैं, पर चूंकि जनता को तो जवाब, सिर्फ चुनाव में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन के बटन दबाकर देने होते हैं, तो शायद यहां की जनता, उसी की इंतजार कर रही हैं।
ये तो जनता के साथ क्रूर मजाक है, कि दूसरा कोई यहीं हरकत करें तो वो गलत और भाजपा करें तो सहीं, क्या भाजपा में सही लोगों की कमी हैं, जो एक परिवार के लोगों से ही मंत्री, गवर्नर बनाने की नई परंपरा की शुरुआत की जा रही है, ऐसे भी सामान्य लोग 60 वर्ष में सरकारी सेवा में अवकाश प्राप्त कर जाते हैं, इसलिए 83 वर्षीय लाल जी टंडन को राज्यपाल बनाने की क्या जरुरत? लाल जी टंडन को तो स्वयं इस प्रकार की राजनीति से सन्यास ले लेनी चाहिए, पर गवर्नर बनने का आनन्द फिर वे कैसे ले पायेंगे? इसलिए ये आनन्द भी उतना ही जरुरी है, यानी बेटा मंत्री बन जाये और पिता गवर्नर, आम लोगों से उन्हें क्या मतलब?