जागो आदिवासियों, नहीं तो तुम्हे ये इज्जत से नहीं रहने देंगे, ट्रैफिक DSP रंजीत लकड़ा प्रकरण से कुछ सीखो
धिक्कार है उस माता–पिता को, जिसने ऐसी बेटी समाज को दी, जो एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी को बेइज्जत कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
धिक्कार है, उस आइएएस अधिकारी और उस महिला के पति को जिसने सत्य का साथ नहीं दिया और अपनी पत्नी की गुलामी को ही प्राथमिकता दी।
धिक्कार है झारखण्ड के उन तमाम ऐसे आइपीएस पुलिस अधिकारियों को जिसने सत्य का साथ न देकर, असत्य के पक्ष में अपना झंडा बुलंद किया।
धिक्कार है, उन कायर अखबारों/चैनलों/पोर्टलों को, जिसने प्रताड़ित पुलिस अधिकारी का नाम तो प्रकाशित/प्रसारित किया, पर उस आइएएस अधिकारी, जो इस कांड का गुनहगार है, उसका नाम तक प्रकाशित/प्रसारित नहीं किया तथा उसकी जी–हुजूरी में लगे रहे और उसकी इज्जत बचाने में लगे रहे और सत्य पर अडिग पुलिस अधिकारी को शर्मसार करने में ज्यादा दिमाग लगाया।
धिक्कार इस राज्य के होनहार मुख्यमंत्री को, जो थाना प्रभारी को निलम्बित करने का तो आदेश देने में तनिक देर नहीं करता, पर ऐसे–ऐसे आइएएस अधिकारियों को संरक्षण देने में ज्यादा दिमाग लगाता है।
बधाई सोशल साइटस् और सोशल मीडिया को जो काम अखबार/चैनल/पोर्टल नहीं कर सकें, उसने अपना धर्म निभाया, तथा उक्त आइएएस अधिकारी और उसकी पत्नी की हरकतों की पोल खोलकर रख दी, जिसके कारण उक्त आइएएस अधिकारी और उसकी पत्नी की सर्वत्र थू–थू हो रही है।
अब सवाल हैं कि क्या ट्रैफिक नियम सिर्फ राज्य की सामान्य जनता पर लागू होगा, या ये ट्रैफिक नियम सभी के लिए हैं, और अगर ये सभी के लिए हैं तो फिर आइएएस की पत्नी पर उक्त नियम को लागू कराने वाले आदिवासी समुदाय से आनेवाले रांची ट्रैफिक डीएसपी रंजीत लकड़ा को मात्र छह महीने में ही तबादला क्यों कर दिया गया, उन्हें सीआइडी क्यों भेजा गया? राज्य के होनहार मुख्यमंत्री रघुवर दास जवाब दें। क्या आइएएस की पत्नी के ड्राइवर को बिना बेल्ट और बिना ड्राइविंग लाइसेंस गाड़ी चलाने का अधिकार है? और अगर उक्त आइएएस की पत्नी के ड्राइवर का नियम के तहत चालान काटा गया तो क्या ये गलत है?
लोग बताते है कि चार फरवरी से 10 फरवरी 2019 तक रांची समेत पूरे राज्य में सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा था, इसी दौरान पांच फरवरी को आइएएस की पत्नी कार से जा रही थी, इसी क्रम में कचहरी चौक पर कंट्रौल रुम के सामने बिना सीट बेल्ट के मारुति की सियाज कार जेएच 01 सीएफ 2083 चला रहे ड्राइवर को ट्रैफिक पुलिस ने रोका, बताया जाता है कि यह गाड़ी सुनील कुमार के नाम से निबंधित था। बाद में वहां तैनात पुलिस अधिकारी ने ड्राइवर से ड्राइविंग लाइसेंस मांगी, वह भी ड्राइवर के पास नहीं था, फिर क्या था 600 रुपये का चालान काटा गया।
इधर इस पूरे प्रकरण पर मैडम तमतमाई, उन्हें गुस्सा आ गया कि भाई, वो तो आइएएस की पत्नी है, उनके ड्राइवर को उनके सामने एक पुलिसवाला कैसे चालान काट सकता है, लीजिये यहीं महंगा पड़ गया, उक्त पुलिस अधिकारी को। जरा अब बेशर्मी देखिये, डीएसपी रंजीत लकड़ा को उसी के विभाग के वरीय पुलिस अधिकारी उसे सलाह देते है कि जाकर उक्त आइएएस अफसर से मिलकर माफी मांगो, उस गुनाह की, जो तुमने किया ही नहीं, अगर वे माफ करेंगे तभी तुम्हारी भलाई है, अन्यथा नहीं। बेचारा रंजीत लकड़ा, कहने को तो डीएसपी है, आइएएस अधिकारी के पास जाता है, पर वह आइएएस अधिकारी उससे कहता है कि तुमने मैडम के साथ बदसलुकी की है, इसलिए उनके पास जाओ।
डीएसपी रंजीत लकड़ा को, इसी बात पर, उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंचती है, वह इनकार करता है, और लीजिये उसे तबादले की चिट्ठी थमा दी जाती है। सूत्र बताते है कि कई आइएएस अधिकारियों ने उक्त आइएएस अधिकारी को मनाने की कोशिश की, पर वे नहीं माने, मानेंगे भी क्यों? भाई आइएएस जो ठहरे। यहां उनके आगे मुख्यमंत्री रघुवर दास झूकते हैं, तो ये डीएसपी की क्या औकात? शायद उक्त आइएएस अधिकारी यहीं सोच रहे होंगे।
सूत्र बताते है कि रांची ट्रैफिक डीएसपी रंजीत लकड़ा ने अब तक राज्य के चार आइएएस अधिकारियों के परिवार के सदस्यों के अब तक चालान काट चुके थे, पर सबने चालान जमा करवाया, पर इस आइएएस की पत्नी ने आइएएस पत्नी का घमंड दिखाया और एक आइएएस की पत्नी क्या कर सकती है? उसका ऐहसास करा दिया। सोशल साइट में इस आइएएस अधिकारी का नाम अजय कुमार सिंह बताया जा रहा है, जरा सोचिये अगर सोशल साइट नहीं होता तो लोगों को पता भी नहीं चलता कि उक्त आइएएस अधिकारी कौन है?
अब जरा देखिये, झारखण्ड आदिवासी बहुल राज्य है, यहां एक आदिवासी वह भी डीएसपी रैंक के अधिकारी को एक आइएएस की पत्नी कैसे नचा देती है, यह घटना एक सुंदर उदाहरण है। यह घटना इस बात की भी जानकारी देती है कि इस राज्य का होनहार मुख्यमंत्री कैसे भ्रष्टाचार को बढ़ावा देनेवाले अधिकारियों के मनोबल को बढ़ावा देता है तथा कर्तव्यनिष्ठ लोगों के मनोबल को नीचे गिराता है, ये घटना बताती है कि एक आइएएस की ही नहीं, एक आइएएस की पत्नी का भी मीडिया में कितना खौफ हैं, जो रंजीत लकड़ा का नाम तो खूब लिखता है, पर जिसने गलत किया, उसका नाम तथा उक्त अधिकारी का नाम लिखने से परहेज करता है, अगर यहीं साधारण व्यक्ति किया होता तो यही झारखण्ड का मीडिया उसकी इज्जत से कब का खेल गया होता।
धिक्कार है, झारखण्ड के आदिवासी समाज को भी, जो अपने ही राज्य मेंआदिवासियों के साथ हो रहे इस प्रकार के दुर्व्यवहार पर चुप्पी साध लेता है, उसका प्रतिकार नहीं करता, अगर वो प्रतिकार करना सीख लेता तो ऐसी नौबत ही नहीं आती, ऐसे भी ये घटना बता देती है कि यहां के दलितों/ आदिवासियों चाहे वह पुलिस अधिकारी हो या प्रशासनिक सेवा में लगे हो, उनकी यहां इज्जत दो कौड़ी की भी नहीं, मैं तो साफ कहूंगा कि अगर राज्य के होनहार मुख्यमंत्री रघुवर दास में तनिक भी शर्म और हया हैं तो रंजीत लकड़ा को सम्मानित करें, उन्हें सम्मान के साथ उक्त स्थान पर पुनः लाएं तथा जिस आइएएस अधिकारी और उसकी पत्नी ने इस प्रकार की हरकत की, उसे सजा दिलवाएं, नहीं तो आम जनता के बीच में राज्य के होनहार मुख्यमंत्री की क्या इज्जत हैं, वो हमसे बेहतर और कौन जान सकता है?
वक्त सबका आता है चुन चुन के ऐसे लोगों को सबक सिखाया जायेगा। सबको चिन्हित कर के रखे बस फिर इनको इनकी औकात बताएंगे।
In Jharkhand there seem to be two different traffic rules.. one for aam aadmi and another for high level officers and their family members.
When the traffic police punishes the guilty as per law, they are hauled up by the high level bureaucrat… and the upright police officer shunted out for performing his duty honestly.
Constitutional right to equality of all citizens is violated.