‘हरिवंश’ बनने के रास्ते पर चल पड़ें, एनडीटीवी के ‘रवीश कुमार’
भाई सचमुच ये हेडिंग पढ़कर आपको आश्चर्य होगा, कि यह हमने क्या लिख दिया? पर सच्चाई तो यही है। जब से हमने रवीश कुमार के मुखारविन्द से यह बयान सुना कि ‘क्या आप इन ढाई महीने के लिए चैनल देखना बंद नहीं कर सकते।’ मेरा माथा ठनका। भाई एक न्यूज एंकर को यह बात बोलने की आवश्यकता क्यों पड़ गई? तब हमें ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत नहीं पड़ी, समझ में आ गया, अपने रवीश को भी राज्यसभा में जाने की ललक जाग गई है।
ऐसे तो रवीश कुमार के चाहनेवाले भाजपा को छोड़कर, जितने भी राजनीतिक दल हैं, जिनको इनके प्राइम टाइम से परम संतोष प्राप्त होता है, वो कहीं से भी लोकसभा का टिकट दे दें, तो मैं दावे के साथ कहता हूं कि जैसे कभी इलाहाबाद संसदीय सीट से हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे राजनीतिज्ञ को एक अभिनेता अमिताभ बच्चन ने धूल चटा दी थी। ये जनाब भी किसी को भी धूल चटा सकते हैं, क्योंकि हमारे देश में ग्लैमर काफी काम करता हैं, ग्लैमर बिकता भी है, और इस ग्लैमर के चक्कर में आकर लोग भले ही अपना भविष्य दांव पर लगा दे, पर अपने नायक की हार बर्दाश्त नहीं करते।
रवीश एनडीटीवी चैनल पर प्राइम रिपोर्ट लेकर आते हैं, आप इनको सत्तर के समय के अमिताभ बच्चन से इनकी तुलना पत्रकारिता जगत में कर सकते हैं, जैसे अमिताभ बच्चन कलाकार है, वे अपनी कलाकारी से पर्दे पर आकर जनता से तालियां और सीटी बजवा लेते हैं, ठीक उसी प्रकार रवीश कुमार भी आज के युवाओं के दिलों में घर बना चुके है।
मुस्लिम युवा, आदिवासी युवा, वामपंथी विचारक, कांग्रेसी विचारधारा के लोग तो इन्हें अपना आदर्श मानते हैं, पर जो लोग इनके साथ काम कर चुके हैं, वे उन्हें कितना आदर्श मानते हैं, इस बारे में अगर आप जानना चाहे, तो कभी जनसत्ता ने जनसत्ता ऑनलाइन में 2 अक्टूबर 2017 को ‘पूर्व एनडीटीवी पत्रकार का रवीश पर हमला, बताया बीमार और दोहरे व्यक्तित्व का शिकार’ पढ़ लीजिये, इनका सारा आदर्श आपको समझ में आ जायेगा।
इधर जनाब को पत्रकारिता के जगतगुरु शंकराचार्य बनने की लत लग गई है, इसलिए ये आजकल एक सूत्री कार्यक्रम चला रहे हैं, इन्हें जहां भी मौका मिलता है, ये मोदी के खिलाफ, भाजपा के खिलाफ बोलने से नहीं चूकते, ये मोदी के खिलाफ बोले या भाजपा के खिलाफ बोले, उससे हमको कोई मतलब नहीं, पर जनता से ये कहना कि आप ढाई महीने न्यूज चैनल देखना बंद कर दें, ये क्या मजाक हैं भाई, आपने देश की जनता को इतना मूर्ख समझ रखा है, कि उसे पता ही नहीं कि झूठ क्या है और सच क्या है? आजादी के बाद से इन सत्तर सालों तक जनता ने जिस कांग्रेस को माथे बिठाया, अब भाजपा को बिठाया, आगे किसको बिठायेगी, लोकतंत्र में कहना मुश्किल है, आपको क्यों बैचेनी है।
भाई एक पत्रकार का क्या काम है? पत्रकार कब से प्रवचन देने लगा? पत्रकार का काम है, सत्य को प्रतिष्ठित करना, सत्य संबंधी समाचार देना और उसमें उसे लगता है कि थोड़ा व्यूज जोड़ना जरुरी हैं, तो उसके लिए अलग से संपादकीय कॉलम भी बना हैं, वह वहां अपनी बात रख सकता है, पर जनता से अनुरोध कि वह ढाई महीने न्यूज चैनल देखना बंद कर दें, तो फिर क्या देखे ‘रवीश दर्शन’। भाई रवीश स्वयं को महान कहना अच्छी बात है, पर दूसरों को इतना हेय दृष्टि से देखना भी कोई अच्छी बात नहीं। आप अपना काम करें, जो गलत कर रहे हैं, उन्हें ईश्वर या यहां की जनता सजा देगी, आप क्यों अपना गला फाड़ रहे हैं?
आपका यहीं गला फाड़ना बहुत कुछ बता दिया कि आप में भी हरिवंश बनने की लालसा जग गई है। आप जान चुके है कि बहुत हो गई पत्रकारिता, अब सीधे राजनीति में घुसा जाये, आपने नेम–फेम कमा लिया है, यहीं मौका है, इसका फायदा उठाया जाये और आप निश्चित ही इसका फायदा उठाएंगे, मुझे पूरा विश्वास है।
ठीक उसी प्रकार, जैसे हरिवंश ने अपनी सारी पत्रकारिता अपने प्रिय नेता नीतीश कुमार के चरणकमलों में रख दी और अपने प्रिय अखबार में एक बार भी नीतीश के खिलाफ समाचारों को जगह नहीं दी, तथा दूसरों के खिलाफ खूब जगह देते रहे तथा इसी बीच बिहार और झारखण्ड में जब–जब चुनाव का समय आता, वे चल पड़ते भाषण देने, और इसमें भूमिका निभाते, प्रभात खबर के वे स्थानीय संपादक या पत्रकार, जो उन इलाकों में रहा करते, तथा उनके लिए माइक और स्थान तथा लोगों को लाने की व्यवस्था कर देते, और हरिवंश का काम पूरा, बाकी हरिवंश भाषण देंगे, सब कुछ हो जायेगा, जो उनके मन में है।
आपने भी वहीं करना शुरु कर दिया है, एनडीटीवी का प्राइम टाइम तो आपके ग्लैमर से प्रभावित है ही, आपके माइन्ड से मेल खाते बहुत सारे पोर्टल और चैनल भी आपको स्थान दे ही रहे हैं, भाजपा छोड़कर सारे के सारे राजनीतिक दल के लोग आपके कायल है ही तो फिर देर किस बात की मारिये छलांग 2019 में, ताकि सीधे लोकसभा में पहुंच जाये और देखते ही देखते केन्द्र में सूचना एवं प्रसारण मंत्री, क्यों कैसा रहेगा?
आपको हाल ही में बिहार में एक ऐसे चैनल जो एक बिल्डर का है, वहां भाषण करते हमने देखा, चरित्र की बात करते देखा, और यह देख मैं अपनी हंसी नहीं रोक सका। हां भाई एक बिल्डर के चैनल में ही चरित्र की बात हो सकती है, दूसरी जगह आप करेंगे भी कैसे? क्योंकि आपकी बात सुननेवाला भी तो आपका परम गुलाम टाइप का आदमी होना चाहिए, जो हां में हां मिलाता रहे, चाहे वह चरित्र का फलुदा बनानेवाला व्यक्ति ही क्यों न हो?
एक हमारे बगल में ही रहनेवाले युवा है, नाम है –संदीप। एक दिन उसने कहा कि सर आपने एनडीटीवी का प्राइम टाइम देखा है? मैंने पूछा – क्यूं? उसने कहा – देखिये? आप फैन हो जायेंगे, रवीश कुमार के। मैंने कहा – यार मैं किसी का फैन बनने के लिए दुनिया में नहीं आया, तुम्हें बनना हैं बनो। तब उसने कहा कि सर, वे हिन्दू मुसलमान की पत्रकारिता नहीं करते, वे समस्याओं को रखते हैं। मैंने कहा – ऐसा सभी पत्रकार को करना चाहिए, अगर वे करते हैं ऐसा तो उसके लिए उन्हें धन्यवाद।
फिर संदीप ने कहा– सर, आप नहीं जानते, एक ओर सारे चैनल, हिन्दू–मुसलमान, मंदिर–मस्जिद करने में लगे है, और ये युवाओं के बेरोजगारी की बात उठा रहे हैं। मैंने कहा – अच्छा, तब तो एनडीटीवी में जो पत्रकारों की जबर्दस्त छंटनी हुई है, उसकी भी खबर वो दिखायें होंगे, पटना के ब्रजेश पांडे की खबर भी वो दिखाये होंगे, बेचारा के दिमाग की बत्ती ही गुल हो गया। उसने कहा कि ये ब्रजेश पांडे कौन है, और एनडीटीवी में पत्रकारों की छंटनी, मतलब समझा नहीं। हमने कहा कि रवीश कुमार से पूछ लेना, वह जरुर बतायेगा, क्योंकि भारत में उसके जैसा ग्लैमरवाला कोई पत्रकार ही नहीं हैं। समझे संदीप।
कहने का तात्पर्य है, ऐसे चालाक लोगों को समझिये। एक अन्ना हजारे थे, खुब आंदोलन किये, उनके आंदोलन में एक अरविन्द केजरीवाल था जो तिरंगा खुब घुमाता था, आज वह दिल्ली का मुख्यमंत्री है और जो राजेन्द्र यादव उनके साथ थे, आज भी वे झोला ढो रहे हैं, अन्ना हजारे आज भी वहीं है, जहां थे, इसलिए संदीप इन चालाक लोगों से सावधान रहो, अपना काम करों, किसी पर उतना विश्वास न करो, क्योंकि जहां विश्वास होता है, वहीं विश्वासघात होता है, इसलिए इस अविश्वसनीय दुनिया में खुद को विश्वासघात का शिकार मत बनाओ। बहुत चालाक है यह दुनिया, सभी इस दुनिया को मूर्ख बनाने में लगे हैं, और जो लोग आगे बढ़े हैं, उनमें से बहुत कम ही लोगों ने सत्य का सहारा लिया, बाकी ज्यादातर लोग हरिवंश और रवीश कुमार ही निकले हैं। समझे।