वासांसि जीर्णानि यथा विहाय… मुझे विश्वास है कि सतीश नये रुप में अपने अधूरे कार्यों को पूरा करने फिर लौटेंगे
पता नहीं क्यों? श्रीमद्भगवद्गगीता पर हमारा अटूट विश्वास या सतीश वर्मा के प्रति मेरी श्रद्धा, मेरा दिल कहता है कि सतीश वर्मा फिर लौटेंगे, वे अपने अधूरे कार्यों को नये सिरे से पूरा करने को। श्रीमद्भगवद्गीता जो लोग पढ़े हैं, वे जानते है कि प्रत्येक जीवात्मा शरीर न होकर एक आत्मा है, जो निरन्तर अपने आपको उच्चतर श्रेणी में ले जाने के लिए नये-नये रुपों में अवतरित होते रहते हैं और ये सिलसिला तब तक चलता रहता है, जब तक आत्मा स्वयं को ब्रह्म में लीन न कर लें, सामान्य जन इसे मोक्ष को प्राप्त करना भी कहते हैं। पुरुषार्थ में मोक्ष भी आता है, इसके बिना पुरुषार्थ पूर्ण भी नहीं।
जिसे आप मृत्यु कहते है, मैं उसे जीवन की शुरुआत कहता हूं और जिसे आप जीवन कहते है, दरअसल वह मृत्यु की शुरुआत है, भगवान कृष्ण ने तो मृत्यु को माना ही नहीं, वे तो कहते है कि शरीर में जो आत्मा रहती है, वह शरीर रुपी नये ठिकाने को प्राप्त करने के लिए जीर्ण-शीर्ण शरीर को छोड़ शीघ्र नया शरीर धारण कर लेती है, ठीक उसी प्रकार जैसे कोई…
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है।
-
श्लोक 22, अध्याय 2, श्रीमद्भगवद्गीता।
सतीश वर्मा, रांची से प्रकाशित दैनिक भास्कर में राजनीतिक संपादक के रुप में कार्यरत थे। आज पता चला कि वे दुनिया में नहीं हैं। वे कैंसर से पीड़ित थे। रांची के रिम्स में इलाजरत थे। आज पता चला कि वे कल ही रात को रिम्स में अंतिम सांस ली। आज सोशल साइट पर जिस प्रकार से उनके चाहनेवालों ने अपने संस्मरण सुनाए, उन संस्मरणों को पढ़कर मेरा दिल भर आया।
शायद ऐसे ही लोगों के बारे में कबीर ने कहा “कबीरा हम पैदा हुए, हम रोए जग हंसे, ऐसी करनी कर चलो, हम हंसे जग रोए।” मेरा मानना है कि तू मरा और तेरे लिए कोई रोया नहीं, तो तेरा जीना ही बेकार है। ठीक इसी प्रकार, कुछ लोग जीवित लाश होते हैं, वे जीवित रहे या मर जाये, उनसे देश व समाज को कोई फर्क नहीं पड़ता, इसलिए काम तो ऐसे ही करने चाहिए, जिससे लोग आपको मरणोपरांत भी याद करें, आपके लिए आसूं बहाए।
मैं सतीश वर्मा को बहुत नजदीक से नहीं जानता, पर उनसे कई बार मुलाकात हुई है। समाचार संकलन के दौरान, वे हमेशा मुस्कुराते नजर आये। जब मुझे आइपीआरडी में कार्य करने का मौका मिला, तो समाचार संबंध में ही उन्होंने एक-दो बार फोन किया, जब मुख्यमंत्री, जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान संवाददाताओं से बातचीत करते, क्योंकि उस वक्त मैं ही पूरा समाचार बनाया करता था, और उन्हें हमारे समाचार का इंतजार रहता, ताकि समाचार और बेहतर ढंग से बनाया जा सकें।
अंतिम मुलाकात, उनसे कांग्रेस भवन में हुई थी, जब तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डा. अजय कुमार संवाददाता सम्मेलन कर रहे थे। उस दौरान उन्होंने विद्रोही24.कॉम के बारे में सकारात्मक टिप्पणी की थी, और कहा था कि पत्रकारिता का मतलब यही है, सही तस्वीर प्रस्तुत करना, अब कोई समझे तो ठीक है, नहीं समझे तो उसकी मर्जी। आज वे दुनिया में नहीं हैं, पर उनकी आवाजे मेरे कानों में गूंज रही है।
साथ ही एक टीस उठती है कि नेता, क्रिकेटर, अभिनेता, धनाढ्य तो कैंसर से बच जाते हैं, पर सतीश वर्मा जैसे पत्रकार कैंसर को मात क्यों नहीं देते, ये पत्रकार वर्ग और राज्य सरकार को इस पर विचार करनी चाहिए। सवाल तो पूर्व की सरकार से भी पूछना चाहिए कि जैसे नई विधानसभा बन कर तैयार हो गई, नई हाईकोर्ट भी बन कर तैयार है, और पत्रकारों के लिए नये प्रेस क्लब भी बन कर तैयार हो गया तो फिर राज्य में जो कैंसर अस्पताल बनने को था, वो बनकर तैयार क्यों नहीं हुआ, आखिर उसका निर्माण कहां तक पहुंचा?
याद रखिये, आज भी लोगों की पहली प्राथमिकता विधानसभा, न्यायालय या प्रेस क्लब का भवन नहीं, बल्कि सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सेवा हैं, पर धिक्कार है कि हमारी सरकार और जन सेवा के व्रत का वचन लेनेवालों ने इन चीजों की ओर आज तक ध्यान ही नहीं दिया और सतीश वर्मा जी जैसे लोग चुपके से निकलते चले गये। ऐसे में हमारी लाचारी की श्रद्धांजलि देने के सिवा और कुछ कर भी नहीं सकते।
भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।
सतीश सर बहुत अच्छे इंसान थे।