धर्म

हम ईश्वर के ही अंश हैं, उसी में हमें समाहित हो जाना हैं, इसलिए भजन-गायन को अपने दिनचर्या में शामिल करेंः ब्रह्मचारी शांभवानन्द

याद रखिये, हम ईश्वर के ही अंश हैं और उस ईश्वर में ही हमें समाहित हो जाना है। उस ईश्वर में समाहित हो जाने का एक रास्ता ईश्वर को भजना भी है। ईश्वर का भजन करना, कीर्तन करना, उनका गुणगान करना, ईश्वर में समाहित होने का सरल व सहज मार्ग है। इस बात को आज रांची स्थित योगदा सत्संग मठ में रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए ब्रह्मचारी शांभवानन्द नें कही।

उन्होंने कहा कि प्रत्येक भक्त को चाहिये कि वो ईश्वर को प्राप्त करने के लिये, उस ईश्वरीय आनन्द को प्राप्त करने के लिए नियमित रुप से भजन करें। उन्होंने कहा कि जब आप कोई भजन करते हैं तो कोई जरुरी नहीं कि आप भजन के भावार्थ को समझ जाये। भजन के भाव को भक्त तब समझता है, जब वो उसमें डूबने की कोशिश करता है। जब वो भजन के परमानन्द में होता है, तब जाकर वो भजन के अंदर छूपे गूढ़ रहस्यों के बारे में गहराई से समझ पाता है।

उन्होंने कहा कि भजन गायन के आनन्द में जब तक निमग्न न हो जाये, तब तक गाते रहे, क्योंकि यही ईश्वर की प्रथम अनुभूति होती है। उन्होंने कहा कि भजन गायन में सिर्फ ईश्वर के प्रति आपका समर्पण प्रमुख होता है। जगन्माता को बार-बार स्मरण करते रहना चाहिये। उन्होंने भक्तों के बीच में इसे प्रैक्टिकल करके भी बताया।

“तल्लीन है मन की मधुमक्खी,

नीलकमल चरण पर तेरी जगन्माता,

जगन्माता, मेरी जगन्माता,

जगन्माता, मेरी जगन्माता …”

उन्होंने कहा कि हमें हमेशा यह याद रखना होगा कि हम किसके लिए गाते हैं? ईश्वर के लिए गाते हैं। हम सुर में है या नहीं, ये महत्वपूर्ण भी नहीं, पर मेरे मन के भाव सुर में है या नहीं, यह जरुर महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने कहा कि कभी-कभी ये मान लेने में कोई बुराई नहीं कि भजन गाने के सिवा दूसरा कोई चारा भी नहीं, क्योंकि यह भाव हमें मन को उच्चावस्था में ले जाता है।

शांभवानन्द ने सभी से कहा कि ध्यान व भजन का गायन करने के पहले हमेशा ये मन में भाव रखें कि जिनको आप भज रहे हैं। चाहे वो गुरु हो या ईश्वर। ये आपके समक्ष मौजूद है। यह भाव मन में लाकर अगर आप ध्यान या भजन करेंगे तो उसका फायदा शत प्रतिशत मिलना सुनिश्चित है। उन्होंने यह भी कहा कि ध्यान व भजन गायन के समय आप स्वयं को भी भूला दें। केवल यह ध्यान रखें कि आपका भजन अपने गुरु व ईश्वर को समर्पित है।

उन्होंने कहा कि अच्छा रहेगा कि आप भजन का गायन समूह में करें। इसका फायदा यह है कि अगर आप भाव मे नहीं हैं। लेकिन आपके बगल का व्यक्ति भक्ति में तल्लीन हैं तो उसका स्पनन्दन से आपके अंदर भी वो भाव जगेगा, जो एक भक्त के लिए भजन गायन के समय आवश्यक होता है। उन्होंने इसी दरम्यान परमहंस योगानन्द जी द्वारा बार-बार गाये भजन का स्मरण दिलाया और उसकी प्रैक्टिकल भी कराई। भजन था …

“हृदय का द्वार, खोला है तेरे लिये,

क्या आओगे, तुम आओगे,

एक बार दर्शन दोगे,

क्या जीवन यू ही जायेगा,

बिना दर्शन तरे भगवन्

दिन और रात प्रभु, दिन और रात,

देखूं तेरी बाट दिन और रात …”

शांभवानन्द ने दया माता द्वारा किये गये कथन को भी योगदा भक्तों के समक्ष रखा और भजन की महत्ता को बताया। उन्होंने कहा कि दया माता ने एक बार कहा था कि हिन्दू शास्त्रों में उद्धृत है कि ईश्वर का नाम भजने से मुक्ति मिल जाती है, पर मुझे पूर्व में इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था, कि भला यह कैसे संभव हैं। लेकिन जब हमने इस पर ध्यान दिया तो पता चला कि ईश्वर पाने की भूख जैसे ही जगती है, तो भजन स्वतः उस ईश्वर को पाने का पहला साधन बन जाते हैं और इससे स्वतः मुक्ति भी मिल जाती है। इसमें कोई किन्तु-परन्तु भी नहीं।