धर्म

हम सभी ईश्वर की संतान हैं, सभी में वो समाये हुए हैं, वो सभी से समान रूप से प्यार करते हैं, इसलिए कभी भी अपने को असहाय या सर्वशक्तिमान समझने की भूल न करेः स्वामी निर्मलानन्द

हम सभी ईश्वर की संतान हैं। सभी में वो समाये हुए हैं। वो सभी से समान रूप से प्यार करते हैं। इसलिए कभी भी न तो अपने को असहाय या दूसरे को हेय दृष्टि से देखना चाहिए या खुद को सर्वशक्तिमान और दूसरे को बलहीन समझने की भूल करनी चाहिए। ये बातें आज योगदा सत्संग आश्रम में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए स्वामी निर्मलानन्द ने योगदा भक्तों से कही।

उन्होंने सभी से कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को शांतिदूत बनने का प्रयास करना चाहिए। हर व्यक्ति अगर चाहे तो वो शांतिदूत बन सकता है। बशर्तें कि वो स्वयं में सुधार लाये। उन्होंने शांति दूत कैसे बने। इसके लिए कई सूत्र बताएं, जिससे प्रत्येक व्यक्ति में अभूतपूर्व सुधार हो सकता है, जिससे हर व्यक्ति अपना, अपने परिवार, अपने समाज का बेहतर ढंग से कल्याण कर सकता है।

उन्होंने कहा कि कभी भी दूसरों में बुराई ढूंढने की कोशिश मत कीजिये। अच्छा रहेगा कि स्वयं में बुराई ढूंढने और उसमें सुधार के प्रयास किये जाये। उन्होंने कहा कि सत्य बोलना बहुत ही अच्छी बात हैं। लेकिन वो सत्य जो नुकसानदायक हैं, अहितकर हैं। वो नहीं बोली जानी चाहिए। ठीक उसी प्रकार जैसे कोई व्यक्ति नेत्रहीन हैं और उसे अंधा बोला जाये तो उसे बुरा लगेगा।

उन्होंने कहा कि आपकी वाणी में मधुरता होनी चाहिए। आपकी वाणी कल्याणकारी होनी चाहिए। आपकी वाणी दूसरे के लिए हितकर होनी चाहिए। साथ ही वाणी पर नियंत्रण भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति ध्यान के द्वारा, परिवार, जहां वो काम करता है या उसके जीवन में जो लोग बार-बार आते रहते हैं। उनके साथ सामंजस्य बनाकर खुशियों को प्राप्त कर सकता है।

उन्होंने कहा कि हम जिनके साथ रहते हैं। भले ही उनके लिए हमारा ज्यादा समय बीतता हो। पर यह भी याद रखना चाहिए कि जिनके लिए सब कुछ कर रहे हैं। उनके प्रति आपका आदर और उनके द्वारा कही जानेवाली बातों के प्रति आपका सम्मान भी दिखना चाहिए। क्योंकि ज्यादातर देखा जाता है कि हम जिनके साथ रहते हैं, उनका आदर करना और उनकी सुनना बंद कर देते हैं।

हमें हमेशा दूसरों को जो हमसे जुड़े हैं या नहीं जुड़े हैं या सहयोग मांगने आये हैं। उन्हें इनकरेज करना चाहिए। उनकी हर संभव मदद करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि खुशी का रहस्य है -आत्मसुधार। आपने अपने में सुधार कर लिया तो समझिये जिंदगी जी ली। उन्होंने एक बड़ा ही सुंदर उदाहरण दिया कि महात्मा गांधी जिन्होंने अहिंसा के बल पर भारत को स्वतंत्र कराने में सफलता प्राप्त की।

वो महात्मा गांधी कभी भी अहिंसा का प्रचार-प्रसार नहीं करते थे। बल्कि अहिंसा को उन्होंने जिया। लोगों ने देखा कि कैसे महात्मा गांधी अहिंसा द्वारा अपने जीवन को जी रहे हैं और यही उनकी स्वतंत्रता आंदोलन का मूल आधार बना। उन्होंने कहा कि हमेशा याद रखिये कि अहिंसा केवल प्रेम और क्षमा से ही उत्पन्न होती है। जो गांधी में दिखती थी।

उन्होंने कहा कि क्षमा शक्तिशालियों का बल है। इसी से मन को शांति मिलती है। हर व्यक्ति क्षमा नहीं कर सकता। क्षमा करने के लिए एक बड़े आत्मबल की आवश्यकता होती है, जो सभी में नहीं होती। उन्होंने कहा कि हमेशा दूसरों के लिए आपके मन में आदर की भावना होनी चाहिए। जब आपको कोई नुकसान पहुंचाने की कोशिश करें तो आप स्वयं को नियंत्रित करने की कोशिश करिये। स्वयं को शांत रखने की कोशिश करिये और जब इससे भी बात नहीं बनती तो वहां से निकल जाने में ही भलाई समझे। लेकिन आत्मनियंत्रण इसमें बड़ी भूमिका निभाता है। इसे किसी भी परिस्थिति में न भूलें।

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