अपनी बात

ठीक है, स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने सरस्वती पूजा की अनुमति रिम्स में दिलवा दी, लेकिन सरस्वती पूजा पर रोक का कार्यालय आदेश निकलवाने की जुर्रत रिम्स के अधिकारियों ने कैसे कर दी?

ठीक है, स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने ट्विट कर रिम्स में सरस्वती पूजा के आयोजन की अनुमति दे दी। लेकिन बात यहां पर ये आती है कि रिम्स (राजेन्द्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) में कार्यरत प्रशासनिक सेवाओं में लगे लोगों को इस प्रकार की बुद्धि कहां से आती है कि सरस्वती पूजा जैसे धार्मिक आयोजन से कटुता पैदा होगा? अरे मान लिया कि कुछ बातों को लेकर छात्रों और बस्तीवालों के बीच कभी मतभेद हुए हो और उसे लेकर लड़ाई भी हुई हो। ऐसे में सरस्वती पूजा को लेकर भी लड़ाई होगी, ये बुद्धि प्रशासनिक सेवाओं में लगे लोगों को कहां से आ गई?

आखिर राजेन्द्र आयुर्विज्ञान संस्थान के संकायाध्यक्ष ने मुर्खतापूर्ण कार्यालय आदेश किसके कहने पर निकाल दिया कि ‘दिनांक 24 जनवरी 2025 को छात्रों एवं बाहरी बस्ती के लोगों के बीच हुए मार-पीट के वारदात को देखते हुए इस वर्ष 2025 को होनेवाले वार्षिक सरस्वती पूजनोत्सव को निरस्त किया जाता है। छात्रों को यह निदेश दिया जाता है कि जो भी चंदा सरस्वती पूजा के नाम पर लिया गया है, उन्हें पैसा वापस कर दिया जाए। इस पर निदेशक महोदय की सहमति प्राप्त है। – संकायाध्यक्ष, राजेन्द्र आयुर्विज्ञान संस्थान।’

और जब इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण कार्यालय आदेश जारी होंगे तो सोशल साइट पर इसको लेकर बवाल लोग काटेंगे ही। जैसा कि लोगों ने बवाल काटा और रिम्स के मूर्खतापूर्ण कार्यालय आदेश का प्रभाव यह पड़ गया कि भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबूलाल मरांडी ने भी इस मामले को राजनीतिक हवा दे दी और एक ट्विट कर दिया कि ‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि इरफान अंसारी जैसे लोगों को रिम्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की जिम्मेदारी दी गई है। उनकी सांप्रदायिक विचारधारा और फैसले सांस्कृतिक सांस्कृतिक और धार्मिक विभाजन को बढ़ावा दे रहे हैं।

ताजा मामला सरस्वती पूजा को लेकर उठाए गए सवालों का है। सरस्वती पूजा कोई साधारण धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, यह हमारी शिक्षा, ज्ञान और संस्कृति की आत्मा है। यह वह परम्परा है जो पीढ़ियों से हमारे समाज को एक सूत्र में पिरोती आई है। लेकिन आज इसे रोकने की कोशिशें हो रही हैं। सवाल यह है कि अगर सरस्वती पूजा पर आपत्ति की जा रही है, तो क्या कल हमारी संस्कृति और देवी-देवताओं के अस्तित्व पर भी सवाल उठाए जाएंगे? मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से अनुरोध है कि वे इस बेहद संवेदनशील मामले का खुद से संज्ञान लें।’

सच्चाई यही है कि राज्य के मुख्यमंत्री खुद धार्मिक मामलों में संवेदनशील रहे हैं। वे हाल ही में स्वयं विभिन्न हिन्दू धार्मिक तीर्थ स्थलों का दौरा कर लौटे हैं। उनके शासनकाल में इस प्रकार का प्रतिबंध का सवाल तो कभी खड़ा हो ही नहीं सकता। यह घटना निश्चय ही रिम्स में कार्यरत कुछ बडे टाइप्ड मूर्खों का जमावड़ा हो जाने का परिणाम है। जो नहीं चाहता कि इस बड़े स्वास्थ्य संबंधी प्रतिष्ठान में सब कुछ ठीक-ठाक चलें। लगता है, इसकी ये शुरुआत है। अच्छा रहा कि सरकार जल्द ही चेत गई और इस पूरे मामले पर विराम लग गया। नहीं तो विश्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् जैसी संस्थाएं आ गई होती, तो निश्चय ही पूरे प्रदेश में बवाल होना तय था।

राज्य सरकार को चाहिए कि इस मामले को हल्के में नहीं लें और जिनके मस्तिष्क की ये उपज हैं। उसकी बेहतर मानसिक इलाज करवा दें, क्योंकि रांची में मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा अस्पताल यहां मौजूद है। राजनीतिक पंडित ठीक ही कहते हैं कि रिम्स के निदेशक और संकायाध्यक्ष क्या बता सकते हैं कि जिस प्रकार का प्वाइंट उठाकर कार्यालय आदेश निकाला गया। वैसी घटना तो रिम्स में हर महीने एक दो दीख जाती हैं। जब कोई मरीज का परिवार, अपने मरीज का बेहतर ढंग से इलाज नहीं होने का आरोप लगाकर बवाल काट देता हैं तो क्या इसी प्रकार का प्रमाण देकर स्वास्थ्य सेवाएं भी खत्म कर दी जायेगी? अरे अगर कुछ गलत हुआ हैं तो उसका इलाज करिये, न कि भारत की परम्परा और विरासत को ही खत्म करने में लग जाइये।

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