ईश्वर से क्या मांगे, कैसे मांगे, क्या ईश्वर से जो मांगे, वह हमें देता है?
मेरे प्यारे बच्चों, आज तुम्हें मैं प्रार्थना के बारे में कुछ बताना चाहता हूं, जैसे – प्रार्थना कब करनी चाहिए? क्यों करनी चाहिए? किसकी करनी चाहिए? इसके क्या फायदे हैं? प्रार्थना कब ईश्वर सुनते हैं? किस हालत में सुनते हैं? उसका क्या प्रभाव पड़ता है? ये जानना तुम्हें बहुत जरुरी हैं, क्योंकि तुम भारत में रहते हो, क्योंकि भारत भोगने का नहीं बल्कि त्यागने का नाम हैं, तुम अपनी जिंदगी में जितना त्याग करोगे, तुम ईश्वर की सर्वोच्च सत्ता की ओर अग्रसर होते जाओगे।
तुम्हें लगता है कि फलां व्यक्ति प्रधानमंत्री बन गया या राष्ट्रपति बन गया, और ऐसा होने से उसका जीवन परमानन्दित हो गया, सुखमय हो गया तो भाई इस सोच को जितना जल्द हो सकें, त्याग दो, क्योंकि वर्तमान में कभी प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी किस अवस्था में हैं? या रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस किस अवस्था में हैं? वह सबको पता हैं, और कभी राष्ट्रपति रहे ए पी जे अब्दुल कलाम, कैसे सामान्य से सर्वोच्च पद पर जाते हुए जीवन को परमानन्दित करते हुए, जब वे इस दुनिया को छोड़े तो सारी की सारी दुनिया, कैसे उनके जीवन जीने का कायल हो गई? वह भी सबको पता है। एपीजे अब्दुल कलाम की सादगी ने ही उन्हें परमानन्दित कर दिया, तथा उनकी सादगी और जीवन जीने की कला ने सभी को अपनी ओर आकर्षित कर दिया।
एक बात और, तुम यह गांठ बांध लो, कि तुम जो भी चाहते हो, वह मिलेगा, उसे प्राप्त होने से कोई रोक नहीं सकता, पर उसे पाने के दो रास्ते हैं – एक अच्छाई का और दुसरी बुराई का। अब ये तुम्हें सोचना है कि तुम उसे प्राप्त करने के लिए अच्छाई का मार्ग अपनाते हो, या बुराई का।
एक बात और, इसी देश में महात्मा गांधी हुए, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, अगर वे चाहते तो भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे, पर उन्हें प्रधानमंत्री बनने की तनिक इच्छा नहीं थी, ऐसे भी अगर वे प्रधानमंत्री बन जाते, तो तुम्हें क्या लगता है कि जो सम्मान आज उन्हें सारा विश्व दे रहा हैं, वह दे पाता, उत्तर होगा – नहीं। इसका अर्थ है, जब आप अपने जीवन का कीमत वसूलते हैं, कुछ प्राप्त कर, तब आपका जीवन ही सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करने की क्षमता खो देता हैं, और अंततः आप स्वयं को सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने का झूठा दंभ भरते हुए अपने जीवन का सत्यानाश कर डालते हैं।
ये मत भूलो कि दुनिया में जितने भी पद या प्रतिष्ठा की चीजें हैं, उन स्थानों पर अच्छे और बुरे दोनों लोगों की पहुंच हुई हैं, पर जो अच्छे मार्गों से उसे पाया, दुनिया ने उनके आगे सर झूकाया और जो गलत मार्ग को अपनाकर, उन चीजों को पाया, उसे ईश्वर ने दंडित भी कराया और वह व्यक्ति मरणोपरांत भी सुख प्राप्त नहीं कर सका और वह भीड़ में खोता चला गया, इसे तुम इस प्रकार सीखने की कोशिश करो, हमारे देश में आजादी के बाद बहुत सारे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति हुए, लोग कितने को जानते हैं? हमारे देश में लोकसभा और राज्यसभा मिलाकर हर पांच साल पर, सात सौ से भी ज्यादा सांसद बनते हैं, इनमें कितने को लोग जानते है? मतलब मैं क्या कहना चाह रहा हूं, वह समझने की कोशिश करो। अब काम की बात…
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प्रार्थना कब करनी चाहिए?
जब भी मन में श्रद्धा व समन्वय स्थापित हो, प्रार्थना करनी चाहिए, प्रार्थना का ऐसे भी कोई समय नहीं होता, पर ब्रह्म मुहूर्त्त में की गई प्रार्थना ईश्वर तक शीघ्र पहुंच जाती हैं, क्योंकि उस वक्त आप रात की नींद से जगते हो, और मन आपका तरोताजा होता है, नई-नई सुबह आपके मन और आत्मा को झंकृत कर देती है और फिर आपको ईश्वर भक्ति में, ध्यान में खूब मन लगता है, इसी प्रकार सोने के पूर्व ईश्वर को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए, कि उसने आपको पूरे दिन भर, अपने साथ रखा, हर बुराइयों से बचाया और आपको बेहतर दिन दिखाये, इसको याद करते हुए, भी प्रार्थना करें।
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प्रार्थना क्यों करनी चाहिए?
शरीर, मन और आत्मा को प्रसन्न करने के लिए, स्वस्थ रखने के लिए प्रार्थना अतिआवश्यक हैं, क्योंकि तन के उपरी भाग को सिर्फ जल स्वच्छ रखते हैं, पर शरीर के अंतःकरण, मन और आत्मा को सिर्फ और सिर्फ प्रार्थना ही स्वस्थ रख सकती है, दूसरा कोई नहीं।
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प्रार्थना किसकी करनी चाहिए?
सिर्फ और सिर्फ ईश्वर की, जिसने हमें सिर्फ और सिर्फ अच्छा इन्सान बनने, दीन-दुखियों की सेवा करने और केवल परम पिता परमेश्वर को याद रखने के लिए इस दुनिया में भेजा।
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प्रार्थना के क्या फायदे हैं?
प्रार्थना के बहुत सारे फायदे हैं, यह प्रार्थना हमें हर बुरी ताकतों तथा गलत रास्तों से हमें बचाती हैं, यह जीने का मकसद सिखाती है, जब हम अकेले होते हैं, हमारे साथ कोई नहीं होता, यह हमें मार्ग दिखाती है, यह अच्छे-बुरे में फर्क करना सिखाती है, हमें यह पद-प्रतिष्ठा के लोभों में पड़ने से भी बचाती है।
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प्रार्थना कब ईश्वर सुनते हैं?
ऐसे तो दुनिया में बहुत सारे लोग प्रार्थनाएं करते हैं, पर सारे लोगों की प्रार्थनाएं नहीं सुनी जाती हैं, दिव्य पुरुषों-स्त्रियों की प्रार्थनाएं ईश्वर द्वारा बहुत जल्द सुन ली जाती हैं, पर ऐसे दिव्य पुरुषों-स्त्रियों की संख्या हमारे संसार में बहुत कम हैं, और ये सांसारिक लोगों जैसे नहीं दिखते, अगर ऐसे दिव्य लोगों के दर्शन हो गये तो समझ लो, जिन्दगी बन गई। कभी ऐसे दिव्य पुरुष परमहंस स्वामी योगानन्द को मिले थे, स्वामी युक्तेश्वर गिरि के रुप में। कभी स्वामी विवेकानन्द को मिले थे, रामकृष्ण परमहंस के रुप में। कभी स्वामी दयानन्द सरस्वती को मिले थे, नेत्रहीन स्वामी विरजानन्द सरस्वती के रुप में।
ऐसे दिव्य पुरुषों/स्त्रियों की काफी संख्या हैं, हमारे यहां, जो अनेक महापुरुषों को महान बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, पर ऐसा नहीं कि तुम ऐसे लोगों से नहीं मिल सकते, ईश्वर ऐसे लोगों को तुम्हारे पास स्वयं पहुंचायेंगे, जब तुम्हारे अंदर ईश्वर की सत्ता के सर्वोच्च शिखर को पाने की ललक होगी? एक बात और ध्यान रखना, ईश्वर उनकी प्रार्थना शीघ्र सुनते हैं, जो चरित्रवान, नीतिवान, तथा कर्मशील होते हैं। अब ये तुम्हारे उपर है कि तुम्हारी प्रार्थना ईश्वर सुने या नहीं।
महात्मा गांधी ने कभी कहा था कि मैंने ऐसी कोई प्रार्थना नहीं की, जिस प्रार्थना को ईश्वर ने सुना ही नहीं, अब तुम्हीं बताओं कि महात्मा गांधी ने कौन सी प्रार्थना की या कौन सी प्रार्थना करते थे, जिस प्रार्थना को ईश्वर सुन लिया करते थे, इसका साफ उत्तर हैं, कि जब आप अपने लिए प्रार्थना न कर, दूसरों के लिए दीन-दुखियों के लिए प्रार्थना करते हो, तो ईश्वर आप पर करुणा बरसाता हैं, और आपकी प्रार्थना को सहर्ष स्वीकार कर लेता है।
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प्रार्थना किस हालत में सुनते हैं, उसका क्या प्रभाव पड़ता हैं?
लोग प्रार्थना तीन प्रकार से करते हैं एक मुख से, दूसरे मन से और तीसरे हृदय/आत्मीयता से। मुख से की गई प्रार्थना का, कोई मूल्य नहीं होता। मन से की गई प्रार्थना थोड़ी-बहुत सुन ली जाती है, पर हृदय/आत्मीयता से की गई प्रार्थना शत प्रतिशत सफल होती है, क्योंकि परमेश्वर का वास हृदय ही होता है।
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ईश्वर से क्या मांगे, कैसे मांगे, क्या ईश्वर से जो मांगे, वो देता है?
ईश्वर से वहीं मांगों, जो जरुरी है, कुछ लोग ऐसी चीजें मांग लेते हैं, जो उनके लिए उपयोगी ही नहीं होता, पर चूंकि उन्होंने ईश्वर से मांगा और ईश्वर देने को उत्सुक हैं तो देंगे ही, जो विद्वान होते हैं, वे कुछ ईश्वर से मांगते नहीं, क्योंकि ईश्वर को पता होता है कि उसके चाहनेवालों को क्या चाहिए? और वे उसे वो चीजें समय पर उपलब्ध करा देते हैं।
ईश्वर से कोई चीज मांगों तो भिक्षुक की तरह नहीं, बल्कि पुत्रवत्, क्योंकि ईश्वर आपका सृजनकर्ता है, वहीं दुनिया में भेजा हैं, उसे भीख कैसी? उस पर तो आपका अधिकार होना चाहिए, आप जो भी कुछ मांगिये, अधिकार के साथ, क्योंकि वो आपको देने को हर पल तैयार हैं, ईश्वर सिर्फ और सिर्फ देता है, लेता नहीं, वो हमारे साथ जो भी कुछ करता हैं, वह हमारे भले के लिए होता हैं न कि कष्ट या दुख के लिए। ये हम हैं, जो ईश्वर द्वारा दी गई हर चीजों को वर्तमान परिस्थितयों के अनुरुप सोच लेते हैं, जिसके कारण हमें दुख/सुख का अनुभव होता है।
अंततः आज भी दुनिया में बहुत उथल-पुथल हो रहे हैं, कोई सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठकर इठला रहा हैं, तो कुछ उस शिखर को पाने के लिए तिकड़म भी कर रहा हैं, पर जान लो, जो भी तिकड़म करके सत्ता के सर्वोच्च शिखर को पायेगा, वो जीवित रहने के बावजूद भी मरा हुआ कहलायेगा, और ईमान, चरित्र तथा नीतियों के तहत उसे पाने की कोशिश करेगा, वह मरने के बाद भी जीवित ही रहेगा, क्योंकि उपनिषद् कहता है – कीर्तियस्य स जीवति।