क्या है तीज, कब और किसे करना चाहिए, सबसे पहले किसने किया और इसका क्या फल मिलता है?
बिहार और उत्तर प्रदेश की महिलाओं के लिए तीज काफी महत्वपूर्ण त्यौहार है। जैसे उत्तर भारत और पश्चिम भारत में करवा चौथ की मान्यता है, ठीक उसी प्रकार बिहार और उत्तर प्रदेश में तीज की मान्यता है। ज्यादातर सौभाग्यवती-सुहागिनें स्त्रियां इस व्रत को बहुत ही धूमधाम से करती हैं तथा ग्रुप में करती है, कही-कही अविवाहित लड़कियां भी इस व्रत को करती है, क्योंकि मान्यता है कि पार्वती ने शिव को पाने के लिए इस व्रत को तब किया था, जब वो अविवाहित थी।
यह व्रत हिन्दी महीने के भादो (भाद्रपद) महीने के शुक्लपक्ष में जब हस्तनक्षत्र चल रहा होता है, उक्त तृतीया तिथि को मनाया जाता है, ज्यादातर जगहों पर द्वितीया और तृतीया तिथि मिले हुए दिनों को लोग परित्याग करते हैं, और तृतीया तथा चतुर्थी मिले हुए तिथि को ही व्रत करते हैं।
इस व्रत को सर्वप्रथम पार्वती ने अपने सहेलियों के साथ, हिमालय के निर्जन जंगलों में, जहां एक छोटी सी नदी बह रही थी, वहीं पर किया तथा रात भर जागकर, नृत्य गीतादि कर शिव को प्रसन्न किया। कहा जाता है कि पार्वती के इस तपस्या से प्रसन्न होकर शिव उक्त स्थान पर पहुंचे और पार्वती से वर मांगने को कहा, पार्वती प्रसन्न होकर, उन्हें पति के रुप में स्वीकारात्मक वरदान मांग लिया, और फिर उसके प्रभाव से पार्वती, शिव की अर्द्धांगिनी बन गई।
कहा जाता है कि बहुत वर्षों के बाद पार्वती इस प्रकरण को भूल गई थी, और जब पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर बैठी थी, तब पार्वती ने शिव से इस बारें में जानकारी प्राप्त की और शिव ने पुनः पार्वती को बताया, जो तीज व्रत की कथा में लिखित है। कहा जाता है कि चूंकि यह पार्वती के द्वारा किया गया व्रत है, इसलिए यह स्त्रियों के लिए मंगल को देनेवाली तथा समस्त पापों को नष्ट करनेवाली है, इसलिए स्त्रियां व्रत करती है।
भगवान शिव के अनुसार जो स्त्रियां अपने सौभाग्य का कल्याण चाहती हैं, वह इस व्रत को अवश्य करें। इस व्रत का नाम हरितालिका भी है, कहा जाता है कि पार्वती को उनकी सहेलियां अपनी बातों में हर कर हिमालय के उस सुनसान जंगल में ले गई थी, जहां कोई नहीं रहता था, जहां पार्वती ने व्रत को संपन्न किया।