अपनी बात

कोरोना झारखण्ड की जनता को क्या मारेगा? सरकार ने ऐसी व्यवस्था कर दी है कि पुलिसवाले ही जीते-जी मार डालेंगे

हमें सरकार की नीयत में खोट नहीं, पर राज्य की जो पुलिस हैं, उस पर विश्वास नहीं। वह जरुर इस नये कानून की धज्जियां उड़ायेंगी। अपने हिसाब से जनता को लूट लेगी। वसूली अभियान चलायेगी। कहेगी कि तुमने मास्क नहीं पहना, इसलिए लाख रुपये जमा करो या दो साल की जेल काटने के लिए तैयार रहो। गरीब जनता लाख रुपये देने से रही, वह इन पुलिसकर्मियों के आगे नाक रगड़ेगी और नाक रगड़ने पर भी बिना पच्चीस-पचास हजार वसूले, यहां की पुलिस गरीब जनता को नहीं छोड़ेगी, और यही कुकर्म सरकार के लिए आगे चलकर एक बहुत बड़ा सर दर्द बन जायेगा। लोग राज्य की हेमन्त सरकार से नफरत करने लगेंगे।

मैं 54 साल का हो गया हूं, और मेरे सिर के बाल ऐसे ही नहीं पके, मैं रांची के सारे थानों और राज्य के सभी थानों में बैठे पुलिसकर्मियों और पेट्रोलिंग में निकले पुलिसकर्मियों तथा इन्हें कंट्रोल करनेवाले मठाधीशों को जानता हूं। ये दावे के साथ कह नहीं सकते, कि इनका घर सिर्फ वेतन के पैसों से चलता हैं, अगर इनका घर सिर्फ वेतन के पैसों से चलता तो किसी पुलिसकर्मी के पास अच्छा घर नहीं होता, यहां तो एक सामान्य पुलिसकर्मी भी एक नहीं, कई बंगलों का मालिक है।

यही नहीं उनके बेटे-बेटियां बंगलौर या अहमदाबाद जैसे महानगरों में पढ़ाई कर रहे तथा घर में प्रत्येक बच्चों के लिए दुपहिये और कार की इन्होंने व्यवस्था कर ली है। अब राज्य सरकार ही बताए कि क्या इन पुलिसकर्मियों को अलादीन का चिराग थमा दिया गया है, या इन्होंने अपने मेहनत के पैसे से ये सब इक्टठे किये हैं, आखिर इतना धन इनके पास कहां से आता है? सच पूछिये तो इन पुलिसकर्मियों की हरकतों की जांच करा ली जाये तो इसमें नब्बे प्रतिशत पुलिसकर्मी खुद ही जेल में होंगे। ये कानून व्यवस्था क्या ठीक करेंगे?

एक घटना का तो मैं खुद ही गवाह हूं। एक युवक को एक राजनीतिक दल के गुंडे ने झूठे केस में फंसा दिया। रांची जिले का ही एक थाना प्रभारी, जो आजकल एक इलाके में डीएसपी पद पर पदोन्नत हो गया हैं, उसने अपने एक उच्चाधिकारी और राजनीतिक दल के गुंडे के कहने पर उस युवक के झूठे केस को सत्य करार दे दिया। जब उक्त युवक ने एसएसपी के पास जाकर, इसकी शिकायत की। तब उक्त एसएसपी ने उक्त युवक को भरोसा दिया कि वह चिन्ता न करें, उसे न्याय मिलेगा।

इसी बीच उक्त एसएसपी की डीआइजी में प्रोन्नति हो गई और फिर वह अपना वायदा ही भूल गया। जब उक्त युवक ने उक्त डीआइजी बने एसएसपी से फोन पर बातचीत करनी चाही, तो वह इस प्रकार से पेश आया कि वह उक्त युवक को नहीं जानता, आज वह युवक इन झूठे-मक्कार पुलिसवालों के चलते तबाह हो गया है, पर इन पुलिसकर्मियों को देखिये, क्या ठाठ-बांट है?

ऐसे में हम झामुमो के सुप्रियो भट्टाचार्य के इस दावे को कैसे स्वीकार कर लेंगे कि अगर इस प्रकार की एक भी शिकायत मिल गई कि किसी के साथ गलत हुआ हैं तो हम देखेंगे। उनका ये कहना कि इस प्रकार की घटना ऐसे ही नहीं दर्ज कर ली जायेगी, उसका एक सिस्टम हैं। क्या सुप्रियो भट्टाचार्य बता सकते है कि जिन्होंने उन्हें वोट दिया है, वे वोटर कितने और कौन-कौन विश्वविद्यालय से पुलिसकर्मियों के शोषण से मुक्त होने में पारंगत है, जो यहां के पुलिस और यहां की सड़ी गली पुलिस व्यवस्था से खुद को बचा लेंगे? अरे जनाब, आपने तो ऐसा कानून इन पुलिसकर्मियों के हाथों थमाने जा रहे हैं कि यहां की जनता  जीते जी मर जायेगी। अरे कोरोना क्या इन्हें मारेगा, यहां की पुलिस ही लाखों रुपये वसूली अभियान चलवाकर सभी को मार डालेगी।

पता नहीं, किस व्यक्ति ने ऐसा दिमाग दे दिया कि मास्क नहीं पहनने पर एक लाख और दो साल की जेल का प्रावधान करने की व्यवस्था कर दी गई, यानी काम-धाम कुछ नहीं, गिलास तोड़ा आठ आना, कोरोना से जनता को बचाने की बेहतर व्यवस्था तो की नहीं, उलटे जनता की नींद हराम जरुर हो गई, और बैठे-बैठाए पुलिसकर्मियों को कमाने की एक और तरकीब दे दी गई, भाई आपने अच्छी व्यवस्था कर दी, इन्हें लूटने को एक औजार दे दिया, पर जनता तो जनता हैं, वह भी इंतजार करेगी, अच्छी व्यवस्था वह भी देगी, चिन्ता क्यों करते हैं?

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  • अदूरदर्शी निर्णय..

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