जो शिव को जान ही नहीं सका, वह वैलेंटाइन क्या मनायेगा?
ऐसे तो हर महीने शिवरात्रि आती है, पर फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी की तिथि महाशिवरात्रि के नाम से जानी जाती है। संयोग से इस बार महाशिवरात्रि वैलेंटाइन डे के दिन पड़ रही है, ऐसे में जिनको वैलेंटाइन डे मनाना हैं, वे वैलेंटाइन डे मनायेंगे ही, पर जिन्हें महाशिवरात्रि में स्वयं को शिवमय बनाना हैं, वे स्वयं को शिवमय बनायेंगे ही। आखिर कोई पर्व या त्यौहार या किसी विशेष महापुरुष का जन्मदिन या जन्मोत्सव क्यों मनाया जाता है? स्पष्ट हैं कि ये सभी हमें संदेश देते हैं कि हमें करना क्या है? क्या करना चाहिए? यह जीवन किसलिये है?
जरा शिव को देखिये, उनके परिवार को देखिये, उनके रहन-सहन को देखिये, आपको पता चलेगा कि शिव तो निर्धनता में भी आनन्द को ढूंढ लेनेवाले देवता है, वे जनसामान्य के देवता हैं, उन्हें कुछ नहीं चाहिए, वे तो एक लोटे जल में प्रसन्न हो जाते हैं, जब देव-दानव समुद्र मंथन के समय अमृत के लिए लड़ रहे होते हैं, तो वे जनकल्याण के लिए सृष्टि की रक्षा के लिए समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल को कंठ में धारण कर, नीलकंठ कहलाते है।
वे अपने भक्तों के लिए सर्वस्व प्रदान करने को तैयार रहते है, जरा इस कथा को सुनिये जो जनसामान्य में खुब प्रचलित है। एक बार पार्वती ने भगवान शिव से अपने लिए सुंदर महल बनाने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने कहा कि उनके लिए महल की क्या आवश्यकता, वे तो साधारण कुटिया में ही आनन्दित रहते हैं, पर पार्वती के बार-बार अनुरोध करने पर उन्होंने विश्वकर्मा से कह अपने लिए सुंदर महल बनवा दिया, जब गृह-प्रवेश की बात आई तो एक विद्वान ब्राह्मण की आवश्यकता पड़ी। उस वक्त रावण से बड़ा विद्वान ब्राह्मण कोई था नहीं, इसलिए रावण को बुलाया गया। रावण ने गृह प्रवेश करा दिया और जब दक्षिणा की बात आई तो रावण ने उस सुंदर महल को ही दक्षिणा के रुप में मांग लिया, जो शिव ने पार्वती के अनुरोध पर बनवाया था, फिर क्या था? पार्वती और शिव, रावण के इस दक्षिणारुपी मांग को देख, एक दूसरे को देखने लगे। अब शिव करते क्या? उन्होंने आखिरकार दक्षिणा के रुप में उक्त सुंदर महल को रावण के हाथ में सौंप दिया।
आधुनिक युवा जो वैलेंटाइन डे के दिन तथाकथित प्रेम में पागल होने का जो दिखावा करते हैं, वे क्या जाने कि प्रेम क्या है? जरा शिव को देखिये, वे अपने राम से बहुत अधिक स्नेह करते हैं, जैसे ही सती के हृदय में राम के प्रति संदेह होता है, वे सती का परित्याग करते हैं, और सती को देखिये, जैसे ही सती को पता चलता है कि शिव को सती में दिलचस्पी नहीं, वह अपने शरीर का परित्याग करना चाहती हैं, सती को यह मौका भी मिलता है, जिसका वह भरपूर लाभ उठाती हैं और अपने ही पिता दक्ष की यज्ञशाला में स्वयं को भष्म कर देती है, और जब पुनः जन्म होता है तो हिमवान के घर में पार्वती के रुप में जन्म लेकर पुनः वह शिव को प्राप्त करती हैं, भला इस प्रेम का कोई सानी हैं, जरा कोई बताये।
शिव का पार्वती के प्रति प्रेम, पार्वती का शिव के प्रति प्रेम, शिव का समाज के प्रति प्रेम, शिव का अपने चाहनेवालों के प्रति प्रेम चाहे वह एक दूसरे के कट्टर शत्रु राम और रावण ही क्यों न हो? भला कौन ऐसा देवता है जो राम के नाम से रामनाथ यानी रामेश्वरम और रावण के नाम से रावणेश्वर वैद्यनाथ जाने जाते हो। हमारा मानना है कि असली वैलेंटाइन मनाना है तो शिव को जानिये, शिवमय हो जाइये, ऐसा आनन्द प्राप्त होगा कि क्या कहा जाये?
आज के दिन मंदिर जाइये, शिव पर जल चढ़ाइये, प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं से उनकी सेवा करिये, पर यह मत भूलिये कि आप को शिवमय बनना है, शिव में समा जाना है, और इसके लिए आपको शिव के गुणों को समाहित करना होगा, आपको समाज निर्माण के लिए आगे आना होगा, जैसे शिव ने जनकल्याण के लिए हलाहल पीया तो आपको भी समाज निर्माण में आनेवाली विकट परिस्थितियों से लड़ना होगा। जैसे शिव सामान्य जीवन जीते हैं, ध्यानमग्न रहते हैं, आपको भी सामान्य स्तर का जीवन जीने का प्रयास करना प्रारंभ करना होगा, जैसे शिव प्रकृति से तारतम्य बनाकर रहते हैं, आपको भी प्रकृति का सम्मान करना होगा, जैसे शिव सभी प्राणियों पर अपनी करुणा बरसाते हैं, आपको भी संसार के सभी प्राणियों के लिए कल्याणमय स्वरुप में आना होगा, तभी आप खुद को शिवभक्त कहलाने के अधिकारी है, शिवमय होने का चरित्र रखते हैं, अन्यथा आप महाशिवरात्रि कैसे मना रहे है? आप खुद अपनी अंतरात्मा से पूछ लीजिये।
सत्यम शिवम सुंदरम