जिसे संयम कह रहे हो, वो संयम नहीं, दरअसल मछली (भाजपा नेता रवीन्द्र राय) को ज्यादा पानी (दूसरी पार्टियों में जगह) नहीं मिला, नहीं तो कबके गहरे पानी में छलांग लगा दिये होते, याद है न पहले वे झाविमो में क्या थे?
जब पिछले शनिवार को भाजपा ने प्रत्याशियों की सूची जारी की। तब इस सूची को देखकर वे सारे भाजपा नेता/कार्यकर्ता परेशान और सदमें में थें। जिन्होंने इस बार भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बनाया था। पर इस परेशान और सदमें में रहनेवाले नेताओं में सर्वाधिक कोई व्यथित था तो वे थे – भाजपा के डा. रवीन्द्र राय। उन्हें उस रात को नींद नहीं आ रही थी। ऐसी हालात में वे फोन उठाकर अपने राजनीतिक मित्रों से अपना दर्द बयां करना शुरु कर दिये थें। उनके मित्र भी उनके रोग के इलाज के अनुसार उसका निदान बता रहे थे।
शनिवार के दिन वे इतने गहरे सदमें में थे कि वे देर रात तक किसी का भी फोन उठा लेते थें। खुब बाते करते थें। अगर पत्रकार का फोन होता तो वे सीधे कहते कि कल 11 बजे मेरे रांची स्थित आवास पर आइये, बात करते हैं। उनके कट्टर मित्र भी पत्रकारों को बता रहे थे कि रवीन्द्र राय अगले दिन यानी रविवार को कुछ धमाका करनेवाले हैं। लेकिन ये धमाका क्या करेंगे, ये तो बीड़ी पटाखा की तरह फुस्स हो गये।
कई पत्रकारों और राजनीतिक नेताओं ने भी उस दिन कहा था कि रविवार को रवीन्द्र राय ने अपने आवास पर प्रेस कांफ्रेस रखा है। लेकिन जब पत्रकार रविवार को उनके आवास पर पहुंचे या उनसे फोन पर संपर्क करना चाहा तो ये जनाब श्रीमान डा. रवीन्द्र राय ने फोन ही नहीं उठाया। पत्रकारों ने समझा हो सकता है कि सुबह का टाइम है। शौचालय आदि में होंगे या पूजा कर रहे होंगे। इसलिए फोन नहीं उठा रहे हैं। लेकिन ये क्या पूरे दिन भर तो कोई शौचालय में या पूजा रूम में नहीं बैठता न।
खैर, जनाब राजनीति जानते हैं। प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। हाल ही में परिवर्तन यात्रा पर भी निकले थे। तो पत्रकारों को कैसे मूर्ख बनाया जाता है। भला कैसे नहीं जानेंगे। इन्होंने जमकर अपने हिसाब से उन पत्रकारों को मूर्ख बनाया जो मूर्ख बन सकते थे। लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि कई पत्रकार ऐसे भी हैं, जो उनके जैसे राजनीतिबाजों की राजनीतिबाजी का ज्ञान भी खूब अच्छी तरह से जानते हैं कि वै कैसे और कब गुलाटी मारते हैं। जैसे-जैसे रविवार का दिन बीतता गया। डा. रवीन्द्र राय के राजनीतिक मित्रों और उन पत्रकारों को यह समझते देर नहीं लगी कि जनाब अब गुलाटी मारने को तैयार है।
इधर जैसे ही इनके सदमे की खबर पत्रकारों के माध्यम से शनिवार-रविवार की रात भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को पता चला। सुबह ही सुबह केन्द्र के नेताओं के आदेश पर प्रदेश के नेता आ धमके और लगे मनुहार करने। ऐसे भी डा. रवीन्द्र राय जानते थे कि वे निर्दलीय भी चुनाव लड़ेंगे तो हारेंगे। दूसरे दलवाले उनके आगे घास भी नहीं डालेंगे। ऐसे में बगावत करने से क्या फायदा। मकसद तो था कि भाजपा के प्रदेश व केन्द्र के नेताओं को बताना कि उन्हें भी सांपों की तरह फुंफकारना आता हैं। भले ही काट न सकें। इसलिए उन्होंने जो सदमें का खेल शनिवार को खेला था। वो हिट हो चुका था और फिर वे उसी लाइन में आ गये। जो वे भाजपा के नेता करते हैं। जिनकी कोई औकात होती नहीं और समय-समय पर सांपों की तरह फूंफकार कर, अपनी राजनीतिक रोटी सेंकते हुए कभी राज्यसभा तो कभी लोकसभा का मुंह देख आते हैं।
शायद यही कारण रहा कि जैसे ही शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिस्वा सरमा के अपने घर आने का फोटो रवीन्द्र राय ने फेसबुक पर डाला। तो इनकी जाति के लोगों ने तो खुब इनकी आवभगत की। उनकी सराहना की। लेकिन जो इनकी राजनीतिबाजी जानते हैं। उन्होंने उन्हीं की पेज पर उनकी सारी राजनीतिबाजी और हरकतों की पोल खोलकर रख दी। जिसे आप डा. रवीन्द्र राय के फेसबुक पर देख सकते हैं। अगर वे इसे डिलीट करते हैं। तो आप विद्रोही24 के कार्यालय में आकर देख सकते हैं। विद्रोही24 ने वे सारे कमेन्ट्स के फोटोशॉट रख लिये हैं, क्योंकि ये भाजपा के नेता अपने आप को ज्यादा तेज समझते हैं। विद्रोही24 इन भाजपा नेताओं की सारी कलाकारी जानता है। इसलिए देखिये कैसे इनकी क्लास आम जनता ने लगाई है –
विकास मंडल लिखते हैं लगता है कि दीपावली का छुरछुरी और मिठाई मिल गया, अब छुरछुरी जलाइये, मिठाई खाइये और चुनाव का मजा लीजिये चाचाश्री। गोपाल वर्मा लिखते है कि बंद कमरे में क्या प्रलोभन दिया गया महाशय। सुबोध कुमार राणा कहते हैं कि अब खुश हो गये आप, है न। मयंक राय लिखते है कि मामू बना दिया सब मिलकर। सौरभ राय – चॉकलेट दे दिया, आपको टिकट का जरुरी नहीं। सबके ज्यादा मारक लिखा प्रो. सुनील यदुवंशी ने। प्रो. सुनील यदुवंशी लिखते हैं कि ये संयम नहीं है, मछली को ज्यादा पानी नहीं मिल रहा है, नहीं तो कबके गहरे पानी में छलांग लगा दिये होते।